सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संधारणीय कृषि: एक जिम्मेदार भविष्य का निर्माण

सतत कृषि का मतलब है फसल को इस तरह उगाना जो अभी और भविष्य में भी पर्यावरण के लिए अनुकूल हो, किसानों के लिए सही हो, और समुदायों के लिए सुरक्षित हो। हानिकारक रसायनों का उपयोग करने या मिट्टी को नुकसान पहुँचाने के बजाय यह फसलों को बदलने, खाद का उपयोग करने और पानी बचाने जैसे प्राकृतिक तरीकों पर ध्यान केंद्रित करता है। यह दृष्टिकोण न केवल प्रकृति की रक्षा करने में मदद करता है, बल्कि किसानों की लागत कम करके और उन्हें एक स्थिर आय अर्जित करने में भी मदद करता है। इसका मतलब यह भी है कि हम जो खाना खाते हैं वह ताज़ा, स्वस्थ और अधिक जिम्मेदारी से उत्पादित हो सकता है। ऐसी दुनिया में जहाँ जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण और खाद्य असुरक्षा वास्तविक समस्याएँ हैं, टिकाऊ कृषि एक बेहतर, दीर्घकालिक समाधान प्रदान करती है जो सभी को लाभान्वित करती है - हमारी फसल को उगाने वाले लोगों से लेकर इसे खाने वाले लोगों तक। छात्रों सहित युवा लोगों को यह सीखकर महत्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए कि उनका भोजन कहाँ से आता है और ऐसे विकल्प चुनें जो एक स्वस्थ ग्रह का समर्थन करते हैं। संधारणीय कृषि क्या है? मृदा अपरदन, जलवायु परिवर्तन और खा...

सूरजमुखी की उन्नत खेती से कैसे करें जबरदस्त कमाई ?

सूरजमुखी की खेती कैसे करें | surajmukhi ki kheti kaise ki jati hai
सूरजमुखी की खेती

सूरजमुखी की उन्नत खेती कैसे करें ? Sunflower Farming

आज हम जानकारी लेकर आये है सूरजमुखी की खेती से संबंधित जानकारी देने वाले है। सूरजमुखी की खेती कब और कैसे होती है। और सूरजमुखी कब बोया जाता है। इसके साथ ही बहुत जरूरी जानकारी की sunrajmukhi ki kheti कहाँ होती है। और भी जानकारी आपको मिलने वाली है। 

सूरजमुखी की खेती की शुरआत भारत मे पंतनगर (उत्तराखंड )से १९६९ मै की गई थी। सूरजमुखी रवि ,खरीफ ,तथा जायद तीनो मौसम मे कर सकते है | सुरजमुखी तिलहनी फसलों में से एक है | हमारे देश में तिलहनी खेती की कमी हो रही है| जिससे हर साल तेल की कमी हो रही है

देश में तेल की मांग को पूरा करने के लिए विदेशों से भारी मात्रा में तेल काआयात किया जाता है ऐसे में सूरजमुखी की खेती से फायदा कमा सकते हैं और देश में तेल का उत्पादन बढ़ सकता है |

सूरजमुखी की खेती से फायदे | How profitable is sunflower farming

सूरजमुखी की खेती बहुत फायदेमन्द रहती है। इसकी खेती से उत्पादन तो अच्छा मिलता है साथ ही यह स्वास्थ्य के लिए बहुत फायदेमंद रहता है। साथ ही इसमें बहुत सारे औषधीय गुण पाए जाते है। जिससे अनेक रोगो का इलाज होता है। इसका सेवन तेल के रूप मे करने से लिवर से संबंधित रोगो मे फायदा होता है। तथा हड्डियों को मजबूत करता है। इससे त्वचा संबंधित रोगो मे फायदा होता है। सुरजमुखी के बीज खाने से हार्डअटैक का खतरा कम होता है और बाल घने होते है।

खेत का चुनाव

सूरजमुखी की खेती करने के लिए पानी की उचित व्यवस्था होनी चाहिए | जिससे जरूरत होने पर पानी दिया जा सके | सूरजमुखी की खेती में पानी के निकास का भी प्रबंध होना चाहिए | फसल में पानी का भराव नहीं होना चाहिए |सूरजमुखी की खेती में खेत का चुनाव करते समय ध्यान रहे कि उसमें जल निकासी का उचित प्रबंध हो। ज्यादा पानी फसल को नुकसान पहुंचा सकता है|

खेत की तैयारी तथा पोषक तत्वों की मात्रा

सूरजमुखी की खेती करते समय ध्यान रहे कि उसकी जड़ें नीचे कीओर जाती है इसलिए खेत को अच्छी तरह तैयार करें | खेत को अच्छी तरह तैयार करने से खरपतवार कम होते हैं जड़ों का विकास अच्छा होता है जिससे पैदावार अच्छी होती है| इसमें एक अच्छी तरह गहरी जुताई जरूर करे |

सूरजमुखी की खेती के लिए बीज का चयन

सूरजमुखी की खेती में बीज का चयन अपने क्षेत्र तथा जलवायु के हिसाब से करें | इससे आपको किसी भी तरह की समस्या ना हो

सूरजमुखी की किस्में

सूरजमुखी में दो प्रकार की किस्में होती है
  1. सामान्य किस्म
  2. शंकर किस्म
सामान्य किस्म का बीज आप 2 साल तक प्रयोग कर सकते हैं

जबकि शंकर किस्म के बीज को हर साल नया लेने की जरूरत होती है जिससे पैदावार अधिक होती है
  1. सामान्य किस्म में मध्य भारत में इन किस्मों को लगा सकते हैं
  • GAUSUF 15
  • TNAUSUF
      2.शंकर किस्मों में प्रमुखों किस्म
  • KBSHA
  • ज्वालामुखी
  • PAC 36
  • PAC 109
यह किस्मे आपको अच्छी पैदावार दे सकती है
  1. GAUSUF 15
  2. TNAUSUF 7
शंकर के सबसे पहले वाली को लगा सकते हैं जो अच्छी पैदावार दे सकती है
  • के वी एस एच ए (KVSHA )
  • ज्वालामुखी
  • पीएसी 36 (PAC 36)
  • पीएसी 109(PAC 109)
यह प्रमुख किस्मे हैं

भारत में सूरजमुखी की खेती करने के लिए अलग-अलग प्रजातियां है जो उनके वातावरण के हिसाब से विकसित की गई है

पश्चिमी भारत में राजस्थान ,गुजरात के क्षेत्र में भी वही लगा सकते हैं जो मध्य में लगती है यानी,
  • MDERN
  • GAUSUF 15
  • TNAUSUF 7 
 यह किस्मे काफी अच्छी पैदावार देती है|

दक्षिण भारत में कई और किस्मे लगा सकते हैं
  • C O -1
  • C O -2
  • मॉडर्न
  • TNAUSUF -7 
यह सामान्य किस्मे है|

संकर किस्मों में

  • के वी एस एस -1 (KBSH -1 )
  • ज्वालामुखी
  • बीएसई 38 (BSE -३८ )
  • पीएसी109 (PAC -109 )
  • FSFH - 8
  • MSFH -17
  • BSH - 1
  • TCSH -1

यह प्रमुखों किस्म दक्षिण भारत में लगाई जाती है|

इन किस्मों में अच्छी पैदावार मिल सकती है अच्छी पैदावार के लिए हाईब्रिड प्रजाति भी लगा सकते हैं| बीजों का चुनाव करने से पहले विशेषज्ञों की सलाह लेना फायदेमंद रहता है |

बसंत ऋतु के लिए तीन प्रजाति का हाइब्रिड बीज इस्तेमाल कर सकते हैं|

  • PSH- 569
  • DRSH -1
  • KBSH -1

यह तीन प्रजाति उत्तर भारत के लिए सही है इसके लिए वातावरण अनुकूल होना चाहिए | अगर वातावरण अनुकूल नहीं है तो पैदावार पर असर पड़ता है

कुछ अच्छी किस्म के बीज प्राइवेट कंपनीयों मैं भी मिल जाते हैं| उनका भी प्रयोग कर सकते हैं बीज लेने से पहले अच्छी तरह जांच परख कर लेना चाहिए | हर बीज की अपनी कुछ खासियत होती है| हाइब्रिड बीज को केवल एक बार ही प्रयोग कर सकते हैं जबकि संकुल बीज का इस्तेमाल आप दो बार कर सकते हैं| बीजों की प्रजाति के हिसाब से ही पैदावार प्राप्त होती है|

संकुल प्रजाति का फूल छोटा होता है तथा उसकी पैदावार कम होती है| उसका बीज दो बार बो सकते हैं | हाइब्रिड प्रजाति का बीज एक ही बार बोया जाता है तथा पैदावार अधिक होती है |

सूरजमुखी की बुवाई की मात्रा

सूरजमुखी की बुवाई लाइन से करनी चाहिए | लाइन से लाइन की दूरी डेढ़ फीट तथा पौधे से पौधे की दूरी 1 फीट होनी चाहिए | इससे पैदावार अच्छी होती है तथा उसमें पानी का ध्यान रखना चाहिए पानी बहुत जरूरी है| इसमें दो से तीन पानी बहुत जरूरी होते हैं|

पानी की कमी कभी भी फूल आने के बाद दाना बनते समय नहीं होनी चाहिए | पहला पानी फसल उगने के 40 दिन की अवस्था में तथा दूसरा 65 दिन में पानी देना चाहिए | इस समय फसल को पानी की कमी नहीं होनी चाहिए 

खाद तथा उर्वरक

सूरजमुखी की खेती मेअधिक लाभ-उत्पादन लेने के लिए जरूरी होता है कि संतुलित मात्रा में पोषक तत्वों का प्रयोग करें |

सबसे पहले मिट्टी की जांच जरूर कराएं | मिट्टी की जांच के अनुसार ही खाद की मात्रा कम लगती है तथा लागत में कमी आती है| पैदावार पूरी मिलती है |

अगर किसी कारण मिट्टी की जांच नहीं हो पाए तो साधारण निर्धारित मानकों के आधार पर उर्वरकों का प्रयोग कर सकते हैं जिसमें

  • 40 - 50 KG नाइट्रोजन
  • 40 KG फास्फोरस
  • 40 KG पोटाश

जिसमे से 20 KG नाइट्रोजन, 40 KG पोटाश, 40 KG फास्फोरस बुबाई के समय देना चाहिए | 20 KG नाइट्रोजन पहले पानी पर देना चाहिए | जिससे काफी अच्छी पैदावार मिल सकती है|

इसमें एन पी के 60- 40- 40 के हिसाब से दी जाती है | यह तिलहनी फसलों में सल्फर का बड़ा उपयोग है | इसमें 2KG सल्फर प्रति हेक्टेयर की दर से देना जरूरी है| ताकि इसमें तेल की मात्रा अधिक हो|

सूरजमुखी का बीज उपचार

सूरजमुखी की खेती मे बुबाई से पहले सूरजमुखी के बीज का उपचार करना जरूरी है | इससे बीज की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है तथा फसल रोगमुक्त रहती है|

इसका बीजोपचार दो तरह से किया जाता है

  • फफूंदी नाशक दवाई
  • जीवाणु खाद का टीका

जीवाणु खाद का टीका लगाने से कम लागत में ज्यादा फायदा होता है| तथा मिट्टी की उर्वरा शक्ति अच्छी बनी रहती है | रासायनिक खाद की मात्रा कम प्रयोग करनी पड़ती है|

  • फफूंदी नाशक दवाई से पौधों का जमाव अच्छा होता है| पौधा खेत में मरता नहीं है
  • बीज उपचार के लिए दवाई भरोसेमंद दुकान से ही लें|
  • बीज उपचार करते समय सबसे पहले फफूदी नाशक दवाई से बीज का उपचार करना चाहिए
  • जिसमें थायरस का प्रयोग करें
  • 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से थायरस का प्रयोग करें
  • सबसे पहले अच्छी तरह बीज उपचार करने के बाद जीवाणु खाद से खाद का टीका करना चाहिए

सूरजमुखी का बीज उपचार करने का तरीका

500 ML (आधा लीटर) पानी में 50 ग्राम गुड़ अच्छी तरह उवाल लेना है| इसके बाद उसे ठंडा करके एक टीका ऐसेटोमेक्टर का, एक टीका पीएसबी का अच्छी तरह घोल लेना है इसके बाद बीजोपचार करते हैं

इस तरह बीज उपचार करने से फसल अच्छी होती है

बीज को बोने के लिए यह आवश्यक है कि पहले बीज को भिगो दे फिर उसे छाया में रख दें | तथा बोते समय ध्यान रखना है कि जो खेत तैयार किया था उसमें पर्याप्त नमी है कि नहीं | बीज बोने से पहले खेत में पर्याप्त नमी होना अत्यंत आवश्यक है  फिर बीज की बुवाई करें

बीज की बुबाई करते समय लाइन से लाइन की दूरी 45 सेंटीमीटर , पौधे से पौधे की दूरी 15 सेंटीमीटर के हिसाब से बुबाई करें| इसे हल के पीछे-पीछे बो सकते हैं| पंछी सूरजमुखी के बीज को बड़े चाव से खाते हैं इसलिए पक्षियों तथा अन्य जीवो से सूरजमुखी के बीच को बचाना चाहिए| इसमें नीलगाय का प्रकोप भी अधिक रहता है|

सूरजमुखी मे बीमारी तथा रोगों से बचाव

सूरजमुखी की खेती में बीमारियों का खतरा भी रहता है इससे भी फसल को बचाना चाहिए जिसमें एक बीमारी आती है जिसका नाम है डाउनी मिलड्यू | इस बीमारी से बचने के लिए रेडोमिला का प्रयोग करें | उसका उपचार बीच के समय कर सकते हैं |अगर उसमें कोई बीमारी नहीं है तो कोई भी दवाई का प्रयोग न करें।

सूरजमुखी बसंत सीजन में पानी का ध्यान रखना अति आवश्यक है अगर पानी की कमी हुई तो पौधे का विकास रुक जाएगा तथा फूल आने में देरी होगी और ज्यादा गर्मी होने के कारण बीज का विकास नहीं होगा तथा तेल की मात्रा पर असर पड़ता है और भाव भी कम मिलता है|

पानी का प्रबंध

सूरजमुखी की खेती में पानी का प्रबंध का खास खयाल रखना चाहिए अगर इसमें सही समय पर पानी नहीं दिया गया तो बीच में तेल की मात्रा कम हो जाती है| सूरजमुखी की खेती मे स्प्रिकल विधि से पानी देना अच्छा रहता है |क्योंकि सूरजमुखी में ज्यादा पानी की आवश्यकता नहीं होती है| जैसे जैसे तापमान बढ़ता जाता है सिंचाई का अंतराल कम हो जाता है प्रारंभ में 10 से 15 दिन में तथा फूल आने पर 6 से 8 दिन में सिंचाई करनी चाहिए |

खरपतवार निवारण

सूरजमुखी की खेती करते समय ध्यान रखना चाहिए कि इसमे किसी भी तरह का खरपतवार ना हो तो उसके लिए अच्छा रहता है इसके साथ ही सूरजमुखी का फूल बड़ा होता है| उसमें वजन हो जाता है | इसलिए पौधे पर मिट्टी चढ़ाना बहुत जरूरी है| इससे हमारा पौधा गिरता नहीं है

सूरजमुखी में पालीनेशन

सूरजमुखी में एक और काम बहुत जरूरी है जिससे आपको बहुत लाभ मिलेगा वह है पॉलिनेशन | यानी अगर सूरजमुखी की खेती के बगल अगर मधुमक्खी का भी पालन करे तो या फिर आस पास मधुमक्खी हो तो इससे भी उत्पादन मै बढ़ोत्तरी होती है | मधुमक्खी पॉलिनेशन का काम करती है 

सूरजमुखी में पॉलिनेशन होगा तो पैदावार में वृद्धि होगी| अगर किसी कारणवश मधुमक्खी की व्यवस्था ना हो तो कृत्रिम पॉलिनेशन भी कर सकते हैं सूरजमुखी का तेल जल्दी खराब होने वाला होता है अगर बीज में से तेल नहीं निकाला गया तो बीज से निकलने वाला तेल खराब हो जाएगा हमें ध्यान रखना चाहिए कि 2 से 4 महीने में बीज से तेल निकाल लेना चाहिए |

कमाई | Profit Per Acer

अगर सूरजमुखी की खेती से पैदावार की बात करे तो यह फसल 90 - 105 दिनों मै पककर तैयार हो जाती है | और इसमे 16 -20 कुंतल प्रति हेक्टेयर की उपज मिल सकती है | सूरजमुखी के बीज की कीमत लगभग 60/- प्रति किलो ग्राम है

सूरजमुखी के बीज से कितना तेल आता है?

1 किलो सूरजमुखी के बीज स्वास्थ्य परिस्थितियों में 1/1.398 लीटर सूरजमुखी तेल = 0.71 लीटर सूरजमुखी तेल = 715 मिलीलीटर सूरजमुखी तेल का उत्पादन कर सकते हैं।

सूरजमुखी की खेती से जुड़ी कुछ जरूरी जानकारी

सूरजमुखी कब लगाया जाता है ?अगर आपका खेत आलू के बाद या गन्ने के बाद खाली हुआ है तो उस समय आप सूरजमुखी की खेती कर सकते हैं | यह एक तेल वाली फसल है जिससे किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं| इस समय सूरजमुखी को लगाने का सही समय है | जिसे आप 15 मार्च से पहले जरूर लगा दे | देर से लगाने पर उसे पकने में देरी हो जाएगी| देर से पकने की वजह से उत्पादन अच्छा नहीं मिलेगा|

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

कृषि में सेस्बेनिया क्या है?

सेस्बनिया फलियों के फैबेसी परिवार से संबंधित फूलों के पौधों की एक प्रजाति है। सेस्बेनिया अपने कई सुझाए गए अनुप्रयोगों के कारण कृषि में महत्वपूर्ण है। ये पौधे जिन्हें कभी-कभी सेस्बेनिया प्रजाति के रूप में जाना जाता है मिट्टी को बेहतर बनाने, चारा उपलब्ध कराने और नाइट्रोजन को स्थिर करने की अपनी क्षमता के कारण टिकाऊ खेती के तरीकों में उपयोगी हैं। सेस्बेनिया(Sesbania in agriculture) मिट्टी की उर्वरता और नाइट्रोजन स्थिरीकरण नाइट्रोजन-फिक्सिंग पौधे के रूप में सेस्बेनिया वायुमंडलीय नाइट्रोजन को ऐसे रूप में बदल सकता है जिसका उपयोग अन्य पौधे कर सकते हैं। यह विधि पौधे की जड़ की गांठों में नाइट्रोजन-फिक्सिंग बैक्टीरिया (जैसे राइजोबियम) के साथ मिलकर काम करती है। सेस्बेनिया नाइट्रोजन को स्थिर करके मिट्टी की उर्वरता बढ़ाता है, जिससे सिंथेटिक नाइट्रोजन उर्वरकों की मांग कम हो जाती है, जो बेहद महंगे और पर्यावरण के लिए हानिकारक हो सकते हैं। इस वजह से, यह फसल चक्र प्रणालियों में एक उपयोगी पौधा है, जहाँ इसे अन्य पौधों के जीवन चक्रों के बीच मिट्टी के नाइट्रोजन स्तर को फिर से भरने के लिए लगाया जा सकता है...

राष्ट्रीय बांस मिशन योजना (पीएमएनबीएमबाई)

आज बांस एक ऐसा माध्यम बन गया है। जिसके बिना हमें अधूरापन महसूस होता है। इसके अभाव से एक कमी महसूस होती है। क्योंकि बांस के महत्व को पूरी दुनिया समझ चुकी है। हर कोई इसका इस्तेमाल किसी न किसी जरूरत को पूरा करने के लिए करता है। इसलिए इन दिनों बांस की मांग बढ़ गई है.क्योंकि इनका उपयोग हम खाने से लेकर पहनने और अपने दैनिक कार्यों में करते हैं। बांस मिशन योजना क्या है? हम बात करेंगे कि राष्ट्रीय बांस मिशन क्या है। इसकी शुरुआत कैसे हुई? बांस मिशन के तहत सरकार देश के किसानों को सब्सिडी भी दे रही है. पीएम मोदी ने किसानों को उज्ज्वल भविष्य देने और उनकी आय दोगुनी करने के उद्देश्य से इस योजना की शुरुआत की थी. इस योजना के लाभ और आवेदन की पूरी जानकारी यहां दी गई है।बांस की जरूरत को देखते हुए सरकार भी किसानों को बांस की खेती के लिए प्रोत्साहित कर रही है. सरकार यह सुनिश्चित करने की कोशिश कर रही है कि किसान अन्य फसलों के साथ-साथ बांस की भी खेती करें। बांस उगाने के लिए सरकार ने राष्ट्रीय बांस मिशन योजना शुरू की। जिसके तहत किसान बांस उगाकर उसे बाजार में बेच सकते हैं. बांस उगाना किसानों के लिए कमाई का अच्छ...

भारत में नींबू की खेती देगी आपको भरपूर उत्पादन

नींबू गोल एवं पकने पर पीले रंग का दिखाई देता है इसका पौधा होता है इसे खेत में आसानी से लगाया जा सकता है तथा कुछ दिनों की देखरेख के बाद यह फल देना शुरू कर देता है यह नींबू पकने की प्रक्रिया है जब हम घर के गमले में नींबू का पेड़ लगाते हैं तो उसे निजी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए उपयोग किया जाता है। नींबू की खेती कैसे करें? इसके साथ ही खेत में नींबू की बागवानी करने से व्यावसायिक उद्देश्य भी पूरे होते हैं। नींबू सिट्रस परिवार से संबंधित है, इसका उपयोग औषधीय और पोषण संबंधी उद्देश्यों के लिए किया जाता है। नींबू के पेड़ की खेती किसानों के लिए एक अच्छा विकल्प है। यह विटामिन सी से भरपूर होने के साथ-साथ त्वचा के लिए भी बहुत फायदेमंद है। नींबू के अनेक लाभों के कारण किसान नींबू की खेती को अपना रहे हैं। नींबू के पेड़ के लाभों के कारण इसकी खेती किसान को बहुत लाभ दे सकती है। यह फल खाने में खट्टा और हल्का मीठा होता है, जिसे लोग खट्टा-मीठा भी कहते हैं। नींबू की खेती को नींबू की बागवानी भी कहा जा सकता है। जो कि व्यावसायिक उत्पादन पैमाने पर नींबू के पेड़ लगाने की प्रक्रिया है। इसे सबसे खट्टे फलों में गिन...