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सूरजमुखी की खेती |
सूरजमुखी की उन्नत खेती कैसे करें ? Sunflower Farming
सूरजमुखी की खेती से फायदे | How profitable is sunflower farming
खेत का चुनाव
सूरजमुखी की खेती करने के लिए पानी की उचित व्यवस्था होनी चाहिए | जिससे जरूरत होने पर पानी दिया जा सके | सूरजमुखी की खेती में पानी के निकास का भी प्रबंध होना चाहिए | फसल में पानी का भराव नहीं होना चाहिए |सूरजमुखी की खेती में खेत का चुनाव करते समय ध्यान रहे कि उसमें जल निकासी का उचित प्रबंध हो। ज्यादा पानी फसल को नुकसान पहुंचा सकता है|खेत की तैयारी तथा पोषक तत्वों की मात्रा
सूरजमुखी की खेती करते समय ध्यान रहे कि उसकी जड़ें नीचे कीओर जाती है इसलिए खेत को अच्छी तरह तैयार करें | खेत को अच्छी तरह तैयार करने से खरपतवार कम होते हैं जड़ों का विकास अच्छा होता है जिससे पैदावार अच्छी होती है| इसमें एक अच्छी तरह गहरी जुताई जरूर करे |सूरजमुखी की खेती के लिए बीज का चयन
सूरजमुखी की किस्में
सूरजमुखी में दो प्रकार की किस्में होती है- सामान्य किस्म
- शंकर किस्म
जबकि शंकर किस्म के बीज को हर साल नया लेने की जरूरत होती है जिससे पैदावार अधिक होती है
- सामान्य किस्म में मध्य भारत में इन किस्मों को लगा सकते हैं
- GAUSUF 15
- TNAUSUF
- KBSHA
- ज्वालामुखी
- PAC 36
- PAC 109
- GAUSUF 15
- TNAUSUF 7
- के वी एस एच ए (KVSHA )
- ज्वालामुखी
- पीएसी 36 (PAC 36)
- पीएसी 109(PAC 109)
भारत में सूरजमुखी की खेती करने के लिए अलग-अलग प्रजातियां है जो उनके वातावरण के हिसाब से विकसित की गई है
पश्चिमी भारत में राजस्थान ,गुजरात के क्षेत्र में भी वही लगा सकते हैं जो मध्य में लगती है यानी,
- MDERN
- GAUSUF 15
- TNAUSUF 7
दक्षिण भारत में कई और किस्मे लगा सकते हैं
- C O -1
- C O -2
- मॉडर्न
- TNAUSUF -7
- के वी एस एस -1 (KBSH -1 )
- ज्वालामुखी
- बीएसई 38 (BSE -३८ )
- पीएसी109 (PAC -109 )
- FSFH - 8
- MSFH -17
- BSH - 1
- TCSH -1
इन किस्मों में अच्छी पैदावार मिल सकती है अच्छी पैदावार के लिए हाईब्रिड प्रजाति भी लगा सकते हैं| बीजों का चुनाव करने से पहले विशेषज्ञों की सलाह लेना फायदेमंद रहता है |
बसंत ऋतु के लिए तीन प्रजाति का हाइब्रिड बीज इस्तेमाल कर सकते हैं|
- PSH- 569
- DRSH -1
- KBSH -1
यह तीन प्रजाति उत्तर भारत के लिए सही है इसके लिए वातावरण अनुकूल होना चाहिए | अगर वातावरण अनुकूल नहीं है तो पैदावार पर असर पड़ता है
कुछ अच्छी किस्म के बीज प्राइवेट कंपनीयों मैं भी मिल जाते हैं| उनका भी प्रयोग कर सकते हैं बीज लेने से पहले अच्छी तरह जांच परख कर लेना चाहिए | हर बीज की अपनी कुछ खासियत होती है| हाइब्रिड बीज को केवल एक बार ही प्रयोग कर सकते हैं जबकि संकुल बीज का इस्तेमाल आप दो बार कर सकते हैं| बीजों की प्रजाति के हिसाब से ही पैदावार प्राप्त होती है|
संकुल प्रजाति का फूल छोटा होता है तथा उसकी पैदावार कम होती है| उसका बीज दो बार बो सकते हैं | हाइब्रिड प्रजाति का बीज एक ही बार बोया जाता है तथा पैदावार अधिक होती है |
सूरजमुखी की बुवाई की मात्रा
सूरजमुखी की बुवाई लाइन से करनी चाहिए | लाइन से लाइन की दूरी डेढ़ फीट तथा पौधे से पौधे की दूरी 1 फीट होनी चाहिए | इससे पैदावार अच्छी होती है तथा उसमें पानी का ध्यान रखना चाहिए पानी बहुत जरूरी है| इसमें दो से तीन पानी बहुत जरूरी होते हैं|
पानी की कमी कभी भी फूल आने के बाद दाना बनते समय नहीं होनी चाहिए | पहला पानी फसल उगने के 40 दिन की अवस्था में तथा दूसरा 65 दिन में पानी देना चाहिए | इस समय फसल को पानी की कमी नहीं होनी चाहिए
खाद तथा उर्वरक
सूरजमुखी की खेती मेअधिक लाभ-उत्पादन लेने के लिए जरूरी होता है कि संतुलित मात्रा में पोषक तत्वों का प्रयोग करें |
सबसे पहले मिट्टी की जांच जरूर कराएं | मिट्टी की जांच के अनुसार ही खाद की मात्रा कम लगती है तथा लागत में कमी आती है| पैदावार पूरी मिलती है |
अगर किसी कारण मिट्टी की जांच नहीं हो पाए तो साधारण निर्धारित मानकों के आधार पर उर्वरकों का प्रयोग कर सकते हैं जिसमें
- 40 - 50 KG नाइट्रोजन
- 40 KG फास्फोरस
- 40 KG पोटाश
जिसमे से 20 KG नाइट्रोजन, 40 KG पोटाश, 40 KG फास्फोरस बुबाई के समय देना चाहिए | 20 KG नाइट्रोजन पहले पानी पर देना चाहिए | जिससे काफी अच्छी पैदावार मिल सकती है|
इसमें एन पी के 60- 40- 40 के हिसाब से दी जाती है | यह तिलहनी फसलों में सल्फर का बड़ा उपयोग है | इसमें 2KG सल्फर प्रति हेक्टेयर की दर से देना जरूरी है| ताकि इसमें तेल की मात्रा अधिक हो|सूरजमुखी का बीज उपचार
सूरजमुखी की खेती मे बुबाई से पहले सूरजमुखी के बीज का उपचार करना जरूरी है | इससे बीज की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है तथा फसल रोगमुक्त रहती है|
इसका बीजोपचार दो तरह से किया जाता है- फफूंदी नाशक दवाई
- जीवाणु खाद का टीका
जीवाणु खाद का टीका लगाने से कम लागत में ज्यादा फायदा होता है| तथा मिट्टी की उर्वरा शक्ति अच्छी बनी रहती है | रासायनिक खाद की मात्रा कम प्रयोग करनी पड़ती है|
- फफूंदी नाशक दवाई से पौधों का जमाव अच्छा होता है| पौधा खेत में मरता नहीं है
- बीज उपचार के लिए दवाई भरोसेमंद दुकान से ही लें|
- बीज उपचार करते समय सबसे पहले फफूदी नाशक दवाई से बीज का उपचार करना चाहिए
- जिसमें थायरस का प्रयोग करें
- 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से थायरस का प्रयोग करें
- सबसे पहले अच्छी तरह बीज उपचार करने के बाद जीवाणु खाद से खाद का टीका करना चाहिए
500 ML (आधा लीटर) पानी में 50 ग्राम गुड़ अच्छी तरह उवाल लेना है| इसके बाद उसे ठंडा करके एक टीका ऐसेटोमेक्टर का, एक टीका पीएसबी का अच्छी तरह घोल लेना है इसके बाद बीजोपचार करते हैं
इस तरह बीज उपचार करने से फसल अच्छी होती हैबीज को बोने के लिए यह आवश्यक है कि पहले बीज को भिगो दे फिर उसे छाया में रख दें | तथा बोते समय ध्यान रखना है कि जो खेत तैयार किया था उसमें पर्याप्त नमी है कि नहीं | बीज बोने से पहले खेत में पर्याप्त नमी होना अत्यंत आवश्यक है फिर बीज की बुवाई करें
बीज की बुबाई करते समय लाइन से लाइन की दूरी 45 सेंटीमीटर , पौधे से पौधे की दूरी 15 सेंटीमीटर के हिसाब से बुबाई करें| इसे हल के पीछे-पीछे बो सकते हैं| पंछी सूरजमुखी के बीज को बड़े चाव से खाते हैं इसलिए पक्षियों तथा अन्य जीवो से सूरजमुखी के बीच को बचाना चाहिए| इसमें नीलगाय का प्रकोप भी अधिक रहता है|
सूरजमुखी मे बीमारी तथा रोगों से बचाव
सूरजमुखी की खेती में बीमारियों का खतरा भी रहता है इससे भी फसल को बचाना चाहिए जिसमें एक बीमारी आती है जिसका नाम है डाउनी मिलड्यू | इस बीमारी से बचने के लिए रेडोमिला का प्रयोग करें | उसका उपचार बीच के समय कर सकते हैं |अगर उसमें कोई बीमारी नहीं है तो कोई भी दवाई का प्रयोग न करें।
सूरजमुखी बसंत सीजन में पानी का ध्यान रखना अति आवश्यक है अगर पानी की कमी हुई तो पौधे का विकास रुक जाएगा तथा फूल आने में देरी होगी और ज्यादा गर्मी होने के कारण बीज का विकास नहीं होगा तथा तेल की मात्रा पर असर पड़ता है और भाव भी कम मिलता है|
सूरजमुखी की खेती में पानी का प्रबंध का खास खयाल रखना चाहिए अगर इसमें सही समय पर पानी नहीं दिया गया तो बीच में तेल की मात्रा कम हो जाती है| सूरजमुखी की खेती मे स्प्रिकल विधि से पानी देना अच्छा रहता है |क्योंकि सूरजमुखी में ज्यादा पानी की आवश्यकता नहीं होती है| जैसे जैसे तापमान बढ़ता जाता है सिंचाई का अंतराल कम हो जाता है प्रारंभ में 10 से 15 दिन में तथा फूल आने पर 6 से 8 दिन में सिंचाई करनी चाहिए |
खरपतवार निवारण
सूरजमुखी की खेती करते समय ध्यान रखना चाहिए कि इसमे किसी भी तरह का खरपतवार ना हो तो उसके लिए अच्छा रहता है इसके साथ ही सूरजमुखी का फूल बड़ा होता है| उसमें वजन हो जाता है | इसलिए पौधे पर मिट्टी चढ़ाना बहुत जरूरी है| इससे हमारा पौधा गिरता नहीं है
सूरजमुखी में एक और काम बहुत जरूरी है जिससे आपको बहुत लाभ मिलेगा वह है पॉलिनेशन | यानी अगर सूरजमुखी की खेती के बगल अगर मधुमक्खी का भी पालन करे तो या फिर आस पास मधुमक्खी हो तो इससे भी उत्पादन मै बढ़ोत्तरी होती है | मधुमक्खी पॉलिनेशन का काम करती है
सूरजमुखी में पॉलिनेशन होगा तो पैदावार में वृद्धि होगी| अगर किसी कारणवश मधुमक्खी की व्यवस्था ना हो तो कृत्रिम पॉलिनेशन भी कर सकते हैं सूरजमुखी का तेल जल्दी खराब होने वाला होता है अगर बीज में से तेल नहीं निकाला गया तो बीज से निकलने वाला तेल खराब हो जाएगा हमें ध्यान रखना चाहिए कि 2 से 4 महीने में बीज से तेल निकाल लेना चाहिए |
अगर सूरजमुखी की खेती से पैदावार की बात करे तो यह फसल 90 - 105 दिनों मै पककर तैयार हो जाती है | और इसमे 16 -20 कुंतल प्रति हेक्टेयर की उपज मिल सकती है | सूरजमुखी के बीज की कीमत लगभग 60/- प्रति किलो ग्राम है
1 किलो सूरजमुखी के बीज स्वास्थ्य परिस्थितियों में 1/1.398 लीटर सूरजमुखी तेल = 0.71 लीटर सूरजमुखी तेल = 715 मिलीलीटर सूरजमुखी तेल का उत्पादन कर सकते हैं।
सूरजमुखी कब लगाया जाता है ?अगर आपका खेत आलू के बाद या गन्ने के बाद खाली हुआ है तो उस समय आप सूरजमुखी की खेती कर सकते हैं | यह एक तेल वाली फसल है जिससे किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं| इस समय सूरजमुखी को लगाने का सही समय है | जिसे आप 15 मार्च से पहले जरूर लगा दे | देर से लगाने पर उसे पकने में देरी हो जाएगी| देर से पकने की वजह से उत्पादन अच्छा नहीं मिलेगा|
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