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संधारणीय कृषि: एक जिम्मेदार भविष्य का निर्माण

सतत कृषि का मतलब है फसल को इस तरह उगाना जो अभी और भविष्य में भी पर्यावरण के लिए अनुकूल हो, किसानों के लिए सही हो, और समुदायों के लिए सुरक्षित हो। हानिकारक रसायनों का उपयोग करने या मिट्टी को नुकसान पहुँचाने के बजाय यह फसलों को बदलने, खाद का उपयोग करने और पानी बचाने जैसे प्राकृतिक तरीकों पर ध्यान केंद्रित करता है। यह दृष्टिकोण न केवल प्रकृति की रक्षा करने में मदद करता है, बल्कि किसानों की लागत कम करके और उन्हें एक स्थिर आय अर्जित करने में भी मदद करता है। इसका मतलब यह भी है कि हम जो खाना खाते हैं वह ताज़ा, स्वस्थ और अधिक जिम्मेदारी से उत्पादित हो सकता है। ऐसी दुनिया में जहाँ जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण और खाद्य असुरक्षा वास्तविक समस्याएँ हैं, टिकाऊ कृषि एक बेहतर, दीर्घकालिक समाधान प्रदान करती है जो सभी को लाभान्वित करती है - हमारी फसल को उगाने वाले लोगों से लेकर इसे खाने वाले लोगों तक। छात्रों सहित युवा लोगों को यह सीखकर महत्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए कि उनका भोजन कहाँ से आता है और ऐसे विकल्प चुनें जो एक स्वस्थ ग्रह का समर्थन करते हैं। संधारणीय कृषि क्या है? मृदा अपरदन, जलवायु परिवर्तन और खा...

मिट्टी की जांच का आसान तरीका

जानकारी का अभाव कहें या कुछ और। किसान उर्वरकों का अंधाधुंध प्रयोग कर रहे हैं। जिसके फलस्वरूप मृदा में केमिकल रसायन की मात्रा बढ़ रही है। जो अधिक लागत का एक प्रमुख कारण भी है। इसके साथ ही मृदा स्वास्थ्य खराब हो रहा है। प्रकृति कीटों का विलय हो रहा है। पर्यावरण प्रदूषण में इजापा हो रहा है। मानव स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव देखने को मिलते हैं। उर्वरकों के अधिक प्रयोग से मृदा का स्वाथ्य लगातार ख़राब हो रहा है। इसलिए किसानों को मृदा परीक्षण करना अत्यंत आवश्यक है। एक स्वस्थ, उच्च उत्पादन फसल लेने के लिए मिट्टी में 16 पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है। जिसमें किसान तीन पोषक तत्व मृदा को देता है नाइट्रोजन फास्फोरस और पोटाश। मृदा में इन सोलह पोषक तत्वों की आवश्यकता को पूरा करने से पहले उनकी कमी का स्तर जांचना चाहिए। जिसके लिए मिट्टी की जांच करना आवश्यक है। 

मृदा परीक्षण क्या है?

SOIL-TESTING

मृदा परीक्षण (Soil Testing) एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है, जिसका उद्देश्य मृदा की गुणवत्ता, उसके पोषक तत्वों, और उसकी संरचना का मूल्यांकन करना है। इससे यह जानकारी मिलती है कि मृदा में कौन से पोषक तत्व मौजूद हैं, और उन तत्वों की कमी या अधिकता का स्तर क्या है। मृदा परीक्षण के आधार पर किसानों को उचित उर्वरक और कृषि प्रबंधन उपायों की सलाह दी जा सकती है, जिससे फसल की उपज में सुधार होता है और भूमि की उपजाऊ क्षमता बनाए रखी जा सकती है।

मृदा परीक्षण क्यों कराना चाहिए?

मृदा परीक्षण मिट्टी की उर्वरकीकरण को जानने का आसान उपाय है। यह उन सभी पोषक तत्वों के बारे मृदा में मौजूद है या इनकी आवश्यकता है। यह मिट्टी के विभिन्न आवश्यकताओं को समझने का आसान तरीका है। उर्वरकों का प्रयोग करने से पहले मिट्टी की जांच कराना अति आवश्यक है। जिससे आवश्यकतानुसार पोषक तत्वों की पूर्ति की जाए। मिट्टी की जांच कराने से उपस्थित पोषक तत्वों की पूरी जानकारी प्राप्त हो जाती है। जिससे आगे की रणनीति तैयार की जा सकती है। किसी भी फसल में उर्वरक का प्रयोग अनुमानित करने से आपकी जेब पर भारी पड़ सकता है।

जांच कराने का उद्देश्य

मृदा परीक्षण से पोषक तत्वों का आकलन करने में मदद मिलती है। जिससे फसल को पोषक तत्वों की उचित मात्रा प्राप्त हो सके। अगर आप भी अपने खेत की मिटटी का परीक्षण कराना चाहते है तो यह आपको अतिरिक्त खर्चे से बचा सकता है। इसलिए हम आपको मिट्टी परीक्षण करने की विधि के बारे में बात करेंगे। परीक्षण कराने के लिए प्रयोगशाला में खेत की मिट्टी का नमूना की आवश्यकता होती है। जिसे खेत से प्राप्त किया जाता है। मिट्टी का सैंपल लेने के लिए खेत की विभिन्न जगहों से मिट्टी एकत्र किया जाता है। फसल एवं बागबानी में सफलता हेतु एवं सही उर्वरकीकरण का पता लगाने के लिए मिट्टी का सैंपल लेना आवश्यक है। यह परीक्षण आपको मृदा की बहुमूल्य जानकारी दे सकता है। जिससे आप फसल प्रवंधन, मृदा स्वाथ्य तथा अच्छी फसल के लिए जरूरी पोषक तत्व के बारे में निर्णय ले सकते है।

मृदा मापन का महत्त्व

  1. खेत में पोषक तत्वों की कमी होना: खेत में पोषक तत्वों की कमी की पहचान करके उचित कार्यवाही की जा सकती है। मिटटी में आवश्यक तत्वों की कमी से फसल के विकास में रुकावट पैदा हो सकती है, फसल की पैदावार में भारी कमी देखने को मिलती है। यह पौधों के स्वास्थ्य एवं जीवन चक्र को प्रभावित कर सकता है।
  2. अनावश्यक पोषक तत्व की अधिकता होना: फसल में अत्यधिक पोषक तत्व विषाक्तता, अधिक खर्चों के मुद्दों और पर्यावरणीय चिंताओं और अन्य उपयोगी फसलों के उत्पादन में समस्याओं को जन्म दे सकते हैं।
  3. मिट्टी का पीएच संतुलन करना: खेत में इष्टतम पोषक तत्वों की उपलब्धता को संतुलित और पौधों के विकास के लिए आवश्यक श्रम से खेत की मिट्टी का पीएच निर्धारित करना आवश्यक है।
  4. मिट्टी की संरचना: फसल बुबाई से खेत की मिट्टी की संरचना का आकलन करना जरुरी है। समतल बुबाई करने से सामान फसल बृद्धि तथा अतिरिक्त जल निकासी और जल धारण में सुधार करने में मदद मिल सकती है।
  5. मृदा में हानिकारक संदूषक का प्रभाव: मृदा परीक्षण से हानिकारक संदूषकों का पता लगाया जा सकता है जो फसल चक्र, पौधों के जीवन एवं स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकते हैं। यह मानव स्वास्थ्य के लिए जोखिम पैदा कर सकते हैं।

मिट्टी का नमूना लेने का तरीका

अपने खेत से मिट्टी का सैंपल लेने के लिए निरंतर उपयोग की गयी भूमि का चुनाव करें। जिसका उपयोग विभिन्न फसल चक्र के लिए किया जाता हो। मिट्टी का सैंपल लेने के लिए खेत में Z आकार का चिन्ह की तरह क्षेत्र निर्धारित करते हैं। यह क्षेत्र खेत में 8 से 10 जगह चयन किया जाता है।

मृदा के ऊपर की 6 सेंटीमीटर की सतह से नीचे की मिट्टी का नमूना एकत्र किया जाता है। यह नमूना खेत में निर्धारित जगह से 8 से 10 जगहों से लिया जाता है। ऐसी भूमि में 6*4*6*" का तिकोना गड्ढा बनाया जाता है। जहां से मिट्टी का नमूना लिया जाता है। यह मिट्टी का सैंपल अलग-अलग स्थानों से इकट्ठा किया जाता है। जिसे आपस में मिलाकर 4 छोटे-छोटे ढेर बना दिए जाते हैं।

इस मिटटी को बार-बार मिलकर,अंत में जांच युक्त मिट्टी को निर्धारित किया जाता है। जो कि लगभग 500 ग्राम तक हो सकती है। इस मिट्टी को छांव में सुखाकर अगले दिन पैक की जाती है। जिस पर किसान का नाम, गांव का नाम, मोबाइल नंबर, खेत की पहचान आदि लेवल के साथ नजदीक प्रयोगशाला में भेज सकते हैं

मृदा परीक्षण कराने से लाभ

  • पोषक तत्वों के बारे में जानना: मृदा में मौजूद उर्वरकों की जानकारी कैल्शियम, नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम आदि जैसे आवश्यक पोषक तत्वों को माप कर उनका स्तर ज्ञात कर सकते है।
  • मिट्टी का पीएच ज्ञात करना: मिट्टी में उपलब्ध अम्लता या क्षारीयता का स्तर निर्धारित करता है।
  • खेत की बनावट का विश्लेषण करना: मिट्टी में रेत की मात्रा, गाद की उपलब्धता और मिट्टी के वर्तमान अनुपात का मूल्यांकन करता है।
  • मृदा में कार्बनिक पदार्थ सामग्री विश्लेषण करना: खेत की मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ की उपलब्धता को मापता है।
  • मिट्टी में उपलब्ध लवणता की मात्रा: खेत की मिट्टी में नमक की मात्रा का आकलन करके उनका स्तर ज्ञात कर सकते है।
  • मृदा में धातु परीक्षण करना: खेत में हानिकारक भारी धातुओं की उपस्थिति को जान सकते है।

मिट्टी की जाँच कराने का उपयुक्त समय

छाँवदार जगह से मिट्टी का नमूना ना लें। खेत की मेड से मिट्टी न मिले। खेत में ढलान वाली जगह से मिट्टी न ले।प्रयोगशाला में मिट्टी ले जाते समय उस पर अपना विवरण लिखे। किसान साल में दो बार खेत की मिटटी की जाँच करा सकते है। खेत से धान या गेहूं की फसल कटने के बाद मिट्टी की जाँच करा सकते है। मिटटी की जाँच का उपयुक्त समय मई और जून का महीना उपयुक्त माना जाता है। इस अवधि के दौरान मृदा परीक्षण करना लाभप्रद रहता है।

प्रयोगशाला केंद्र

जब भी आप मिट्टी की जांच कराना चाहते हैं। अपने जिले के कृषि विज्ञान केंद्र में संपर्क करें। जहां पर 20 से 30 दिनों में पूरी प्रक्रिया के बाद जांच की रिपोर्ट की जानकारी मिल जाती है।

भारत में कृषि के प्रकार

निष्कर्ष

मृदा परीक्षण एक आवश्यक कार्य है जो किसानों को अपनी भूमि की स्थिति को समझने में मदद करता है और फसल उत्पादन बढ़ाने के लिए सही निर्णय लेने में सहायक होता है। इससे मृदा की सेहत बनी रहती है, और किसानों की आर्थिक स्थिति में भी सुधार होता है।

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