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संधारणीय कृषि: एक जिम्मेदार भविष्य का निर्माण

सतत कृषि का मतलब है फसल को इस तरह उगाना जो अभी और भविष्य में भी पर्यावरण के लिए अनुकूल हो, किसानों के लिए सही हो, और समुदायों के लिए सुरक्षित हो। हानिकारक रसायनों का उपयोग करने या मिट्टी को नुकसान पहुँचाने के बजाय यह फसलों को बदलने, खाद का उपयोग करने और पानी बचाने जैसे प्राकृतिक तरीकों पर ध्यान केंद्रित करता है। यह दृष्टिकोण न केवल प्रकृति की रक्षा करने में मदद करता है, बल्कि किसानों की लागत कम करके और उन्हें एक स्थिर आय अर्जित करने में भी मदद करता है। इसका मतलब यह भी है कि हम जो खाना खाते हैं वह ताज़ा, स्वस्थ और अधिक जिम्मेदारी से उत्पादित हो सकता है। ऐसी दुनिया में जहाँ जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण और खाद्य असुरक्षा वास्तविक समस्याएँ हैं, टिकाऊ कृषि एक बेहतर, दीर्घकालिक समाधान प्रदान करती है जो सभी को लाभान्वित करती है - हमारी फसल को उगाने वाले लोगों से लेकर इसे खाने वाले लोगों तक। छात्रों सहित युवा लोगों को यह सीखकर महत्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए कि उनका भोजन कहाँ से आता है और ऐसे विकल्प चुनें जो एक स्वस्थ ग्रह का समर्थन करते हैं। संधारणीय कृषि क्या है? मृदा अपरदन, जलवायु परिवर्तन और खा...

ग्रामीण विकास में महिला स्वयं सहायता समूह की भूमिका

देश में सरकार कई तरह के मानव निर्मित समूह को मान्यता दे रही है जिसमें महिला एवं पुरुष अपनी भागीदारी से योगदान दे सकते हैं। यह समूह लोगों का ग्रुप बनाकर एक संस्था के रूप में कार्य करते हैं। अधिकतर लोगों को इस स्वयं सहायता समूह (SHG) के बारे में जानकारी नहीं होती। किन्ही जगह पर इसे एनजीओ के तौर पर जानते हैं। इस समय सबसे अधिक प्रचलित किसान उत्पादक संगठन और महिला स्वयं सहायता समूह है। किसान उत्पादक संगठन किसानों का समूह है जो खेती-बाड़ी से संबंधित है। महिलाएं स्वयं सहायता समूह एक महिलाओं का समूह जो समाज में महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देता है।

महिला स्वयं सहायता समूह(Wooman Self Help Group)

महिलाओं का हमेशा से ही देश समाज में बड़ा योगदान रहा है। महिलाएं अपनी मेहनत और लगन से किसी भी काम को अपने लक्ष्य तक पहुंचा सकती है। महिला स्वयं सहायता समूह एक ऐसा महिला संगठन है जिसमें 15 से 20 महिला सम्मिलित होकर एक व्यावसायिक गतिविधि का निर्माण कर सकती हैं। यह महिला संगठन बनाकर आजीविका के द्वार खोल सकती है। समूह में अध्यक्ष, सचिव एवं कोषाध्यक्ष पद वित्तीय कार्यों को संभालता है। यह ग्रामीण महिलाओं का संगठित समूह है जो महिलाओं को आजीविका प्रदान करता है। स्वयं सहायता समूह (SHG) 90 के दशक में बांग्लादेश से शुरू हुआ था। अपनी पहली सफलता के वाद यह भारत में प्रवेश हुआ और सरकार की तमाम सुविधाओं के साथ अपना विकास सुनिश्चित करता हुआ भारत में लोगों के बीच प्रसिद्ध हुआ। स्वयं सहायता समूह की मदद से सदस्यों को रोजगार की ट्रेनिंग की सुविधा दी जाती है।

समूह की उपलब्धि

महिला समूह एक एनजीओ की तरह काम करता है। यह महिलाओं को कौशल प्रदान करने में सक्षम है। महिला समूह अपने शुरुआती दिनों में महिला उत्पीड़न, सामाजिक मुद्दे पर संगठन का निर्माण होता था। बाद में यह सशक्तिकरण पर केंद्रित हुआ। इसके बाद स्टार्टअप और इसमें विभिन्न गतिविधियां भी शामिल होने लगी। वर्तमान में स्वयं सहायता समूह महिलाओं के लिए उत्तम साधन भी बन गया है। जिसमें कुछ घंटे काम करके महिला आमदनी भी कर सकती है। यह महिलाओं के बीच जीविकोपार्जन का माध्यम बन गया है। SHG अक्सर समुह में विवादों में मध्यस्थता करने में मदद करते हैं। यह चर्चा और समस्या-समाधान के लिए एक तटस्थ आधार प्रदान करके शांति और सद्भाव को बढ़ावा देते हैं।

समूह में सदस्यों की भूमिका

समूह को चलाने के लिए सम्मिलित सदस्यों की भूमिका निर्धारित होती है। हर समूह के लिए नियम होते हैं। जिसके तहत सदस्य अपना कार्यभार उठाते हैं। सहायता समूह में काम से कम 15 महिला सदस्यों का होना अनिवार्य है। इसके कुछ नियम होते हैं। समूह में तीन मुख्य पद निर्धारित होते हैं। जिनकी अपनी जिम्मेदारियां होती है।

  1. अध्यक्ष- समूह में सबसे महत्वपूर्ण पद अध्यक्ष का होता है। जो समूह की बाहरी एवं भीतरी गतिविधि का निर्णय कर लेता है। अध्यक्ष की निगरानी में समूह संचालन से वित्तीय तक की जिम्मेदारी होती है।
  2. सचिव- सचिव को समूह के सदस्यों की गतिविधि एवं सम्मिलित सदस्यों के बारे में जानकारी रखने की जिम्मेदारी होती है।
  3. कोषाध्यक्ष- समूह का कोषाध्यक्ष सदस्यों द्वारा दिए गए अपने वित्तीय योगदान को व्यवस्थित करके नई वित्तीय आवश्यकताओं के लिए कार्य करता है। समूह के सभी तरह के वित्तीय लेनदेन समूह के बैंक खाते के द्वारा किये जाते है।

महिला स्वयं सहायता समूह को सरकार द्वारा निर्धारित व्यावसायिक कार्यों के लिए ट्रेनिंग की सुविधा दी जाती है। महिलाओं का समूह मिलकर सरकार भी सहायता से अपना रोजगार शुरू कर सकते हैं। इन सब लोगों को सरकार द्वारा सब्सिडी प्रदान की जाती है। जिसका फायदा लेकर महिला अपना रोजगार आगे बढ़ा सकती है। महिला द्वारा शुरू किए गए लघु उद्योग (कुटीर उद्योग) के लिए बहुत ही क्या कम ब्याज दरों पर बैंक द्वारा लोन की सुविधा भी प्रदान की जाती है। जिसमें सबसे आगे नाबार्ड का नाम आता है।

सरकार से मदद

समूह द्वारा बनाई गई सामग्री को बेचने के लिए सरकार मदद करती है। जिसमें घर से बनी सामग्री अचार, पापड़, शहद आदि की मार्केटिंग के लिए निर्धारित सरकारी अभिकर्ता महिलाओं की मदद करते हैं।

निष्कर्ष

स्वयं सहायता समूह(SHG) ग्रामीण विकास परिदृश्य में एक शक्तिशाली केंद्र हैं। वे आर्थिक आत्मनिर्भरता, सामाजिक सशक्तिकरण और सामुदायिक जीवन में सक्रिय भागीदारी को बढ़ावा देते हैं। इस प्रकार ग्रामीण समाज के समग्र सुधार में यह समूह योगदान करते हैं। गरीबी, लिंग असमानता और बुनियादी सेवाओं जैसे कई मुद्दों को संबोधित करके SHG ग्रामीण भारत और अन्य विकासशील क्षेत्रों को बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

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