सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संधारणीय कृषि: एक जिम्मेदार भविष्य का निर्माण

सतत कृषि का मतलब है फसल को इस तरह उगाना जो अभी और भविष्य में भी पर्यावरण के लिए अनुकूल हो, किसानों के लिए सही हो, और समुदायों के लिए सुरक्षित हो। हानिकारक रसायनों का उपयोग करने या मिट्टी को नुकसान पहुँचाने के बजाय यह फसलों को बदलने, खाद का उपयोग करने और पानी बचाने जैसे प्राकृतिक तरीकों पर ध्यान केंद्रित करता है। यह दृष्टिकोण न केवल प्रकृति की रक्षा करने में मदद करता है, बल्कि किसानों की लागत कम करके और उन्हें एक स्थिर आय अर्जित करने में भी मदद करता है। इसका मतलब यह भी है कि हम जो खाना खाते हैं वह ताज़ा, स्वस्थ और अधिक जिम्मेदारी से उत्पादित हो सकता है। ऐसी दुनिया में जहाँ जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण और खाद्य असुरक्षा वास्तविक समस्याएँ हैं, टिकाऊ कृषि एक बेहतर, दीर्घकालिक समाधान प्रदान करती है जो सभी को लाभान्वित करती है - हमारी फसल को उगाने वाले लोगों से लेकर इसे खाने वाले लोगों तक। छात्रों सहित युवा लोगों को यह सीखकर महत्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए कि उनका भोजन कहाँ से आता है और ऐसे विकल्प चुनें जो एक स्वस्थ ग्रह का समर्थन करते हैं। संधारणीय कृषि क्या है? मृदा अपरदन, जलवायु परिवर्तन और खा...

खेती-बाड़ी क्या है

किसान मित्रों आप सभी कई सालों से खेती कर रहे हैं। लेकिन खेती से जुड़ी सही जानकारी होने से आप कम लागत में अधिक उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं। आज हम कृषि के बारे में बात करने जा रहे हैं। इसके साथ ही हम खेती की आवश्यकता और मिट्टी की उपयोगिता के बारे में भी बात करेंगे। फसल उत्पादन में विभिन्न प्रकार के अनाज, सब्जियां और फलों की रोपाई और कटाई शामिल है

कृषि क्या होता है?

इस लेख में हम कृषि के बारे में बात करेंगे। कृषि की बढ़ती उपयोगिता को देखते हुए इसका महत्व बढ़ता जा रहा है। कृषि (कृषि) का मतलब होता है खेती-बाड़ी करना। यह एक ऐसा कार्य है जिसमें मनुष्य भूमि को जोतता है और उसकी मिट्टी में फसल के बीज बोता है। और निरंतर निगरानी में वे बीज फसलों का रूप लेते हैं। और अपनी क्षमता के अनुसार उत्पादन देते हैं। इस प्रक्रिया को कृषि कहा जाता है और इस कार्य को करने वाले व्यक्ति को किसान कहा जाता है। किसान उनकी देखभाल करते है और उनका उत्पादन प्राप्त करते है। इसमें अनाज, फल, सब्जी, और काफी सारे और उपज वाले कार्य किये जाते हैं। इसके अलावा कृषि में पशुपालन, मछली पालन, और जैविक खेती जैसी किसी अन्य क्षेत्र का भी समावेश होता है।

कृषि की परिभाषा

कृषि एक ऐसी क्रिया है जिसमें मनुष्य पृथ्वी पर उगने वाले पौधे (जैसे अनाज, सब्जी, फल) और पशुपालन (जैसे गाय, भैंस, बकरी, आदि) के माध्यम से अपना जीवन यापन करता है। इसमे खेती-बारी, पौधों की देखभाल, उनका उत्पादन, और उनसे प्राप्त होने वाले सामान का व्यावसायिक उपयोग किया जाता है। इसका मूल उद्देश्य खाना, कपड़ा की जरुरत पूरा करना है जिससे समाज और अर्थव्यवस्थ का विकास हो सके।

भारतीय कृषि की परिभाषा

भारतीय कृषि की परिभाषा को समझने के लिए हमें ये समझना होगा कि भारत में कृषि एक प्राचीन और महत्त्वपूर्ण क्षेत्र है। जो देश की अर्थव्यस्था का मूल स्तंभ है। भारतीय कृषि को इस प्रकार परिभाषित किया जा सकता है।

भारतीय कृषि: "भारत खेती-बाड़ी और पशुपालन से संबंधित सभी गतिविधियों का विस्तृत समूह है जो देश के लोगों की रोजी-रोटी का एक मुख्य साधन है। इसमे अनाज, फल, सब्जियां, काले-पछे, और अन्य कृषि उत्पादन को उगाया जाता है उनका संस्कार और उनका व्यावसायिक उपयोग किया जाता है।” भारत में कृषि एक विशाल क्षेत्र है जो अनेक प्रकृतियों, संस्कृतियों और संस्कृतियों से जुड़ा है। कृषि के माध्यम से लाखों लोग अपना परिवार चलाते हैं और इस देश के विकसित होने में एक मूल योगदान देता है।

कृषि का अर्थ

बीज से फसल उगाने, उत्पादन, पशुपालन, फसल सुरक्षा और मशीनरी की नई तकनीक विकसित करने की प्रक्रिया को कृषि कहा जाता है। भारत में कृषि की जरूरतों को पूरा करने के लिए हाईटेक मशीनों की मदद से कृषि कार्य तेजी से किया जाता है। कृषि में भूमि में उगाए जाने वाले अनाज, फल, फूल, सब्जियां, पशुपालन और खाद उर्वरक आदि भी शामिल हैं। इन सभी का उपयोग करके प्राप्त फसल को कृषि कहा जाता है। भारत में कृषि की जरूरतों को पूरा करने के लिए हाईटेक मशीनों की मदद से कृषि कार्य तेजी से किया जाता है।

कृषि का इतिहास

कृषि के इतिहास के बारे में कई मत हैं। सभी शोधकर्ता अपने-अपने अनुभव और प्रमाण के अनुसार अलग-अलग विचार व्यक्त करते हैं। कुछ शोधकर्ताओं का मानना ​​है कि ईसा के जन्म से पहले ही कृषि शुरू हो गई थी। कुछ शोधकर्ता कृषि की शुरुआत को सिंधु घाटी सभ्यता से जोड़ते हैं। इस पर कोई सटीक प्रमाण नहीं है।

जिससे कृषि के इतिहास को पूरी तरह से साबित किया जा सके। अगर भारत में कृषि की उत्पत्ति की बात करें तो ऐसा कहा जाता है कि इसकी शुरुआत 9000 साल पहले हुई थी। तब तक मनुष्य ने पेड़-पौधे लगाना, उगाना और मानसून में बदलाव के हिसाब से एक से ज़्यादा फ़सल उगाना सीख लिया था।

भारत में पाषाण युग में कृषि का विकास कैसे और कितना हुआ, इस बारे में कोई ठोस प्रमाणित जानकारी नहीं है। लेकिन सिंधु सभ्यता से कृषि के अवशेष मिले हैं। कहा जाता है कि शोधकर्ताओं को मोहनजोदड़ो में गेहूँ और जौ बोए जाने के पहले प्रमाण मिले थे।

कृषि की आवश्यकता

कृषि किसी भी देश की नींव होती है। भारत एक कृषि प्रधान देश है। भारत की कुल आबादी का लगभग 70% हिस्सा कृषि पर निर्भर है। देश में कृषि की अहम भूमिका है। कृषि से उत्पादित खाद्य उत्पादों को विदेशों में भेजकर अधिक आय अर्जित की जा सकती है। जिससे देश की जीडीपी में सुधार होगा। कृषि की आवश्यकता जीव के जन्म से ही शुरू हो जाती है। किसी भी जीव को भोजन की आवश्यकता होती है। कृषि एक ऐसा माध्यम है जिसके माध्यम से खाद्य समस्या का समाधान किया जा सकता है।

कृषि से हम खाने योग्य अनाज, फल, फूल, सब्जियां आदि प्राप्त कर सकते हैं। पशुपालन में कृषि की अहम भूमिका होती है। कृषि के माध्यम से पशुपालन आसान हो जाता है। कृषि के माध्यम से पशुओं के लिए हरे चारे की आवश्यकता को पूरा किया जा सकता है। जिससे हमें शुद्ध और ताजा दूध मिलता है। जो मानव शरीर के लिए बहुत फायदेमंद होता है। साथ ही पशुओं का मलमूत्र खेत की मिट्टी और फसलों के लिए अमृत से कम नहीं होता है। पशुओं के गोबर से हमें जैविक खाद मिलती है। इससे फसल उत्पादन बढ़ता है और खेत की मिट्टी स्वस्थ और उपजाऊ रहती है। और हमें पर्यावरण प्रदूषण से मुक्ति मिलती है।

कृषि के जनक

"कृषि के जनक" की उपाधि अक्सर अमेरिकी कृषि विज्ञानी और पादप वैज्ञानिक नॉर्मन बोरलॉग को दी जाती है। वे "हरित क्रांति" में अपने काम के लिए प्रसिद्ध हैं जहाँ उन्होंने गेहूँ की उच्च उपज देने वाली किस्में विकसित कीं। जिसने 20वीं शताब्दी के दौरान विकासशील देशों विशेष रूप से भारत और मैक्सिको में भूख और गरीबी से लड़ने में मदद की।

हालाँकि यह उपाधि जेथ्रो टुल को भी संदर्भित कर सकती है जो एक अंग्रेज कृषि अग्रणी थे। जिन्होंने 1700 के दशक में बीज ड्रिल का आविष्कार किया था। उनके आविष्कार ने बीजों को अधिक कुशलता से लगाकर खेती में क्रांति ला दी। जिससे आधुनिक कृषि पद्धतियों में योगदान मिला।

भारत में एम.एस. स्वामीनाथन को भारत में हरित क्रांति लाने में उनके नेतृत्व और खाद्य सुरक्षा में सुधार के उनके प्रयासों के कारण "भारतीय कृषि का जनक" माना जाता है।

कृषि की खोज कब हुई

माना जाता है कि कृषि की खोज लगभग 10,000 से 12,000 साल पहले हुई थी। जिसे नवपाषाण क्रांति के रूप में जाना जाता है। इस समय मनुष्य अपना जीवन खानाबदोश, शिकारी-संग्रहकर्ता के रूप में जीवनशैली से स्थायी कृषि पद्धति समुदायों की तरफ बढ़ रहा था। खेती का पहला साक्ष्य उपजाऊ क्रीसेंट (मध्य पूर्व में) जैसे क्षेत्रों में मिलता है। जहाँ लोगों ने गेहूँ, जौ और फलियाँ जैसी फ़सलें उगाना शुरू किया और भेड़, बकरी और मवेशी जैसे जानवरों को पालतू बनाना शुरू किया। इस परिवर्तन ने सभ्यताओं को बढ़ने और विकसित होने में सहायता दी। जिससे गाँवों, कस्बों और अंततः जटिल समाजों की शुरुआत हुई। यह अविश्वसनीय है कि मानव इतिहास में इस बदलाव ने आधुनिक सभ्यता की नींव रखी।

भारत में खेती कब शुरू हुई

माना जाता है कि भारत में खेती की शुरुआत लगभग 8,000 से 10,000 साल पहले, नवपाषाण काल ​​(नव पाषाण युग) के दौरान हुई थी। भारत में कृषि का सबसे पहला साक्ष्य सिंधु घाटी सभ्यता (लगभग 3300-1300 ईसा पूर्व) से मिलता है, जो दुनिया की सबसे पुरानी शहरी संस्कृतियों में से एक है, जो भारतीय उपमहाद्वीप (वर्तमान पाकिस्तान और भारत के कुछ हिस्सों) के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों में फली-फूली।

भारत में कृषि के प्रकार

  1. स्थानांतरित कृषि
  2. निर्वाह कृषि
  3. गहन कृषि
  4. व्यापक कृषि
  5. वाणिज्यिक कृषि
  6. वागवानी कृषि
  7. रोपड़ कृषि
  8. मिश्रित कृषि

इसमें घर सदस्य भी काम कर सकते है तथा पूरी साल काम मिलता रहता है। इसमें एक से अधिक फसल पैदा की जा सकती है।जिन क्षेत्रो में पानी की पूर्ण सुविधा होती है वहां पर धन की खेती की जा सकती है। तथा पानी के आभाव में अन्य फसलों की बुबाई कर सकते है। किसान की जमीन अपने बढ़ते परिवार सदस्यों में विभाजित होती जाती है।

कृषि में उपयोग होने बाले प्रमुख उपकरण

किसान कृषि में फसल की तैयारी से फसल की कटाई तक आवश्यकतानुसार बहुत से कृषि उपकरण से कार्य करता है जैसे फावड़ा, ट्रैक्टर, कल्टीवेटर, मिटटी पलट हल, हैरो, रोटावेटर, बीज बुबाई तथा बिजाई की मशीन आदि। किसान खेती में ड्रोन का उपयोग भी कर रहे है। खेती में ड्रोन की तकनीक किसानों को लाभ दे रही है। अपनी अद्भुद क्षमता के कारण ड्रोन का उपयोग निगरानी, द्रव्य छिड़काव आदि कार्य सुलभ हो गए है। अपनी आवश्यकतानुसार किसान बाजार से ड्रोन खरीद सकते है। यह उपकरण लगभग सभी तरह की खेती में उपयोग किये जाते है।

कृषि में अधिक मेहनत एवं उपकरण की आवश्यकता होती है।जिसे किसान लम्बे समय से करते आ रहे है। समय समय पर कृषि में विकास एवं बदलाब होता रहा है। हरित क्रांति के बाद तो मनो कृषि में क्रांति ही आ गयी। किसानो ने अपने खेतो में लगन और मेहनत से पुरे देश का पेट भरा है।

इसी के साथ सरकार ने किसानो का पूरा साथ दिया। सारकर ने समय समय पर पैसा और मशीन की आवश्यकता को पूरा किया साथ ही खेती के लिए ऋण योजनाए लाकर खेती के खर्चे में योगदान दिया है। साथ ही साथ उन्नत एवं सफल खेती के लिए मकिसनो को खेती उपकरण भी मुहैया कराती है। जिससे किसान कम मेहनत में अच्छी तैयारी कर सके। उपकरण पर किसानो को छूट भी दी जाती है। जिससे किसानो को कृषि उपकरण खरीदने में परेशानी न हो।

कृषि में बोने वाली फसल

कृषि में फसल बोई जाती है। किसान उस फसल को बोने के बाद निरंतर उसकी देखरेख करता है। तथा उसी फसल से वहअपने परिवार की सभी आवश्यकताओ की पूर्ति है। किसान के परिवार की सभी जरूरते इसी फसल पर निर्भर करती है। इसलिए किसान हमेशा अपने क्षेत्र में अच्छी उपज देने बाले बीजों का चयन करता है। गेहूँ, धान, मक्का, आलू, बाजरा,सरसों, तिलहनी एवं दलहनी फसल,कपास,बागवानी,सब्जियाँ आदि फसल किसान अपने खेत में बुबाई करता है।

कृषि से आमदनी

किसानो का सबसे प्रमुख एवं पसंदीदा काम है कृषि। खेती करने वाला व्यक्ति किसान कहलाता है। कृषि से सभी व्यक्ति किसी न किसी तरह जुड़े हुए है। आज के समय में कृषि एक व्यवसाय बनकर उभर रहा है। जिससे गाँव व शहर में व्यावसायिक गतिविधियाँ की रही है।

कृषि को हम वंशवाद प्रक्रिया कह सकते है जो पीढ़ी दर पीढ़ी चलती रहती है। वंशवाद व्यापारिक काम है। व्यवसाय से निश्चित आमदनी में उतार चढ़ाव देखने को मिलते है। एव समय उत्पादन माँग के अनुसार भाव में तेजी या मंडी देखने को मिलती है।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

कृषि में सेस्बेनिया क्या है?

सेस्बनिया फलियों के फैबेसी परिवार से संबंधित फूलों के पौधों की एक प्रजाति है। सेस्बेनिया अपने कई सुझाए गए अनुप्रयोगों के कारण कृषि में महत्वपूर्ण है। ये पौधे जिन्हें कभी-कभी सेस्बेनिया प्रजाति के रूप में जाना जाता है मिट्टी को बेहतर बनाने, चारा उपलब्ध कराने और नाइट्रोजन को स्थिर करने की अपनी क्षमता के कारण टिकाऊ खेती के तरीकों में उपयोगी हैं। सेस्बेनिया(Sesbania in agriculture) मिट्टी की उर्वरता और नाइट्रोजन स्थिरीकरण नाइट्रोजन-फिक्सिंग पौधे के रूप में सेस्बेनिया वायुमंडलीय नाइट्रोजन को ऐसे रूप में बदल सकता है जिसका उपयोग अन्य पौधे कर सकते हैं। यह विधि पौधे की जड़ की गांठों में नाइट्रोजन-फिक्सिंग बैक्टीरिया (जैसे राइजोबियम) के साथ मिलकर काम करती है। सेस्बेनिया नाइट्रोजन को स्थिर करके मिट्टी की उर्वरता बढ़ाता है, जिससे सिंथेटिक नाइट्रोजन उर्वरकों की मांग कम हो जाती है, जो बेहद महंगे और पर्यावरण के लिए हानिकारक हो सकते हैं। इस वजह से, यह फसल चक्र प्रणालियों में एक उपयोगी पौधा है, जहाँ इसे अन्य पौधों के जीवन चक्रों के बीच मिट्टी के नाइट्रोजन स्तर को फिर से भरने के लिए लगाया जा सकता है...

राष्ट्रीय बांस मिशन योजना (पीएमएनबीएमबाई)

आज बांस एक ऐसा माध्यम बन गया है। जिसके बिना हमें अधूरापन महसूस होता है। इसके अभाव से एक कमी महसूस होती है। क्योंकि बांस के महत्व को पूरी दुनिया समझ चुकी है। हर कोई इसका इस्तेमाल किसी न किसी जरूरत को पूरा करने के लिए करता है। इसलिए इन दिनों बांस की मांग बढ़ गई है.क्योंकि इनका उपयोग हम खाने से लेकर पहनने और अपने दैनिक कार्यों में करते हैं। बांस मिशन योजना क्या है? हम बात करेंगे कि राष्ट्रीय बांस मिशन क्या है। इसकी शुरुआत कैसे हुई? बांस मिशन के तहत सरकार देश के किसानों को सब्सिडी भी दे रही है. पीएम मोदी ने किसानों को उज्ज्वल भविष्य देने और उनकी आय दोगुनी करने के उद्देश्य से इस योजना की शुरुआत की थी. इस योजना के लाभ और आवेदन की पूरी जानकारी यहां दी गई है।बांस की जरूरत को देखते हुए सरकार भी किसानों को बांस की खेती के लिए प्रोत्साहित कर रही है. सरकार यह सुनिश्चित करने की कोशिश कर रही है कि किसान अन्य फसलों के साथ-साथ बांस की भी खेती करें। बांस उगाने के लिए सरकार ने राष्ट्रीय बांस मिशन योजना शुरू की। जिसके तहत किसान बांस उगाकर उसे बाजार में बेच सकते हैं. बांस उगाना किसानों के लिए कमाई का अच्छ...

भारत में नींबू की खेती देगी आपको भरपूर उत्पादन

नींबू गोल एवं पकने पर पीले रंग का दिखाई देता है इसका पौधा होता है इसे खेत में आसानी से लगाया जा सकता है तथा कुछ दिनों की देखरेख के बाद यह फल देना शुरू कर देता है यह नींबू पकने की प्रक्रिया है जब हम घर के गमले में नींबू का पेड़ लगाते हैं तो उसे निजी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए उपयोग किया जाता है। नींबू की खेती कैसे करें? इसके साथ ही खेत में नींबू की बागवानी करने से व्यावसायिक उद्देश्य भी पूरे होते हैं। नींबू सिट्रस परिवार से संबंधित है, इसका उपयोग औषधीय और पोषण संबंधी उद्देश्यों के लिए किया जाता है। नींबू के पेड़ की खेती किसानों के लिए एक अच्छा विकल्प है। यह विटामिन सी से भरपूर होने के साथ-साथ त्वचा के लिए भी बहुत फायदेमंद है। नींबू के अनेक लाभों के कारण किसान नींबू की खेती को अपना रहे हैं। नींबू के पेड़ के लाभों के कारण इसकी खेती किसान को बहुत लाभ दे सकती है। यह फल खाने में खट्टा और हल्का मीठा होता है, जिसे लोग खट्टा-मीठा भी कहते हैं। नींबू की खेती को नींबू की बागवानी भी कहा जा सकता है। जो कि व्यावसायिक उत्पादन पैमाने पर नींबू के पेड़ लगाने की प्रक्रिया है। इसे सबसे खट्टे फलों में गिन...