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कपास भारत की प्रमुख खेती में से एक है। इसे भारत की आदि फसल भी कहते हैं। इसकी खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। कपास का इतिहास काफी पुराना है। इसका यूनान में लगभग 327 ईसवी पूर्व इसके पौधे के प्रचार की शुरुआत हुई। सर्वप्रथम Cotton भारत में वोया गया। इसके बाद यह चीन अमेरिका रूस आदि देशों में पहुंचाया गया। सर्वप्रथम हड़प्पा के नागरिकों ने कपास का उत्पादन शुरू किया।
कपास की खेती की मांग बढ़ती जा रही है. कपास मानव जीवन के लिए आवश्यक बन गया है। इसका महत्व लगातार बढ़ता जा रहा है. कपास को अंग्रेजी में कॉटन Cottonकहते हैं। जिस का वनस्पतिक नाम गोसीपियम स्पीशीज है। यह मालवेसी कुल का सदस्य है। Kapas को सफेद सोना भी कहा जाता है। यह कपास का दूसरा नाम है। कपास जो कि रेशों के रूप में कार्य में लिया जाता है।
जिससे वस्त्र बनाए जाते हैं। भारत में कपास की दो प्रजाति पाई जाती है। यह दोनों प्रजाति भारत में मृदा तथा जलवायु एवं आवश्यकता अनुसार लगा सकते हैं। Kapas Ki Fasal कम लागत में अच्छा उत्पादन देने में सक्षम है।
कपास की उन्नत खेती कैसे करें?
कपास की खेती करने का समय आ रहा है। आप भी Cotton की बुवाई कर सकते हैं। यह कम लागत में अच्छा उत्पादन देने वाली फसल है। जिसे आप अपने खेत में लगा सकते हैं। कपास को गुजरात, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश आदि राज्यों में प्रमुखता से करते हैं।
इसकी खेती के लिए कई तरह के बीज आते हैं। जिनसे अच्छा उत्पादन मिल सकता है। जिसमें बीटी कॉटन की प्रजाति को अच्छा माना जाता है। यह प्रजाति अच्छा उत्पादन देती है। इसमें रोग प्रतिरोधक क्षमता भी है। लेकिन कीट एवं रोगों से बचाव आवश्यक है।
इसकी शुरुआत से पहले बीज उपचार अवश्य करना चाहिए। बीज उपचारित करके रोगों से बचाव हो सकता है। साथ ही बुवाई के समय उचित नमी एवं तापमान होना आवश्यक है। यह लम्बी अवधि की नगदी फसल है। इसके लिए उपयुक्त मिट्टी की बात की जाए, तो मिट्टी का पीएच 7 से 8.5 तक वाली पीएच की मिट्टी में इसकी खेती कर सकते हैं।
जो मिट्टी काली तथा दोमट मिट्टी या काली दोमट मिट्टी कपास के लिए उपयुक्त रहती हैं। कहीं-कहीं तो इसकी खेती बंजर पड़ी भूमि पर खास तकनीक का उपयोग से करते हैं। इससे उत्पादन पर सीधा असर देखने को मिलता है।
कपास की खेत की तैयारी के समय ही नाइट्रोजन,फास्फोरस, पोटाश, सल्फर आदि पोषक तत्व की सही मात्रा देना आवश्यक है।इसको आगे बताया गया है। कपास की बुवाई कतार विधि से बेड बनाकर करनी चाहिए। खेत में खरपतवार की रोकथाम करना जरूरी है।
यह फसल की वृद्धि पर सीधा प्रभाव डालते हैं। कीटनाशक दवा का प्रयोग अवश्य करें। कपास लम्बी अबधि की फसल है। जिसपर अनेक हानिकारक कीटों का प्रभाव देखने को मिलता है।
सफेद मक्खी, गुलाबी सुंडी, बेल्ट और प्लाइट कीट फसल को अधिक हानि पहुंचाते हैं। इसके लिए कीटनाशक दवा का कपास को सिचाई की आवश्यकता हो सकती है। आवश्यक होने पर बीज के अंकुरण के 30 दिन के बाद सिंचाई करनी चाहिए।
कपास का उत्पादन अक्टूबर से दिसंबर तक होता है। अगर पछेती बुबाई की है, तो यह फरवरी तक उत्पादन मिलता है।
कपास की चुनाई दोपहर से शुरू करनी चाहिए। तथा पूर्ण विकसित सूखे घेटों की चुनाई करें। कपास की रुई में किसी प्रकार की गंदगी नहीं होना चाहिए।
कपास के प्रकार
विश्व में कपास तीन प्रकार के पाए जाते है।
- लम्बे रेशे वाला कपास - इसे उच्च कोटि का कपास कहते है। इसकी लम्बाई 5 से.मी. होती है।
- सामान्य रेशे वाला कपास - यह मिश्रित कपास जिसकी लम्बाई 3.5 - 5 CM तक होती है।
- छोटे रेशे वाला कपास- इस कपास का रेशा सबसे छोटा होता है। इसकी लम्बाई 3 से.मी. होती है।
कपास की प्रजाति- अगर आप कपास की खेती कर रहे है, तो उन्नत प्रजाति का चयन करना चाहिए। कपास की BT प्रजाति किसान अधिक पसंद करते हैं। BT कपास की लगभग 250 प्रजाति GEC द्वारा स्वीकृत है। उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश तथा राजस्थान में सभी तरह की प्रजातियाँ लगाई जा सकती है।
बी टी कपास की दो प्रजातियाँ आती है।
- BG-1
- BG-2
यह प्रजाति रोग एवं कीटों के प्रति दूसरों तुलना में अधिक तहसील है। किसान अपनी सुविधानुसार इसका चयन कर सकते हैं।
कपास की प्रमुख किस्में
- संकर किस्म - DCH-32, H-8, बन्नी बी टी, डब्लू एच एच 09 बी टी, जे के एच -1, जे के एच बाई -2 (जीरोटिलेज), जे के एच -3, जी कॉट हाई 10,एल एच 144, धनलक्ष्मी, एच 8 आदि उन्नत संकर किस्म है।
- देशी कपास- एल डी 230, एल डी 327, एल डी 694, डी एस 5 आदि उन्नत किस्म है।
- अमेरिकन कपास- एफ 286, एफ 414, एफ 846, बीकानेरी नरमा, एल एस 886, पूसा 8, पूसा 6, एच 1117, एच1098, आदि उन्नत किस्म है।
खेत की तैयारी - कपास की बुबाई करने से पहले खेत की तैयारी करना आवश्यक है। एक गहरी जुताई डिस्क हैरो या कल्टीवेटर से करना आवशयक है।
इसके बाद खेत में पानी भर देना चाहिए। कुछ दिनों बाद दो गहरी जुताई कल्टीवेटर से करना चाहिए इसी समय खेत में उर्वरको का प्रयोग करना चाहिए। बाद दो हलकी जुताई करके खेत को समतल कर दे। फिर वैड विधि से बुबाई करे।
खाद एवं उर्वरक की मात्रा - कपास की फसल में उर्वरक का प्रयोग करने से पहले मृदा परीक्षण कराना आवश्यक है।
- कपास की फसल में 3 ट्रॉली / हेक्टेयर गोबर की खाद का प्रयोग करना आवश्यक है। 60 -80 किलोग्राम/ हेक्टेयर नाइट्रोजन का प्रयोग करें।
- 50 -60 किलोग्राम/ हेक्टेयर फास्फोरस का प्रयोग करें।
- 25 -30 किलोग्राम/ हेक्टेयर पोटास का प्रयोग करें।
- 20 किलोग्राम/ हेक्टेयर गंधक का प्रयोग करें।
कपास की बुबाई करते समय गोबर की खाद के साथ नाइट्रोजन फास्फोरस पोटाश सल्फर आदि उर्वरक मिट्टी में आवश्यकतानुसार मिला देना चाहिए। पूर्ण लाभ के लिए यह सभी खाद एवं उर्वरक खेत तैयारी के समय ही प्रयोग करें। जिससे फसल को पोषण प्राप्त हो सके।
कपास की रोपाई - कपास की बुवाई कतार विधि से कर सकते हैं। या छीटकाव विधी से कर सकते हैं। कपास की बुबाई करने के लिए पंक्ति विधि को अपनाना अच्छा रहता है।
कतार विधि से बुवाई करने पर फसल की देखरेख में सुविधा रहती है। इसके साथ ही उत्पादन भी अच्छा मिलता है। कतार विधि से करने पर कतार से कतार की दूरी 3.5 से 4 फिट रख सकते हैं। तथा पौधे से पौधे की दूरी 2 फीट रखने से पौधा अपनी वृद्धि आसानी से कर सकता है।
बीज बोते समय बेड बनाकर बुबाई करनी चाहिए। बुबाई के 72 घंटे के भीतर खरपतवार नाशक दवाई का छिड़काव अवश्य कर दें। इससे खरपतवार की रोकथाम में मदद मिलेगी।
जलवायु -कपास की खेती के लिए शुष्क बताबरण अधिक उपयोगी रहता है। यह खरीफ सीजन की नकदी फसल है। जिसकी अगेती खेती अप्रैल की शुरुआत से मध्य मई के बीच तक भी कर सकते हैं। अगर पछेती फसल कर रहे हैं।
तो वह जून के प्रथम सप्ताह तक बुवाई कर सकते हैं। साथ ही उचित जल निकास वाली भूमि Kapas ki kheti के इक्षित नमी प्रदान करने में सहायक होती है। कपास की अच्छी पैदावार के लिए काली मिट्टी जिसका पीएच 6.5 से 8 तक हो कपास की बुवाई कर सकते हैं।
फसल में सिचाई- अगर आप अगेती कपास लगा रहे है तो 3 -4 सिचाई की आवश्यकता हो सकती है। कपास की फसल में प्रथम सिचाई 40 से 50 दिन में करनी चाहिए। यदि वर्षा में देरी हो रही है। तो 30 दिन में सिंचाई करते रहें। साथ ही खरपतवारओं को निकालते रहें। साथ ही फल एवं फूल आने पर सिचाई अवश्य करें।
बीज की मात्रा- कपास की फसल 6 महीने की होती है। कपास की बुवाई के समय 800 ग्राम से 1 किलो / एकड़ बीज की मात्रा की आवश्यकता होती है।
- अमेरिकन कपास की बीज की मात्रा की बात की बात की जाय तो 15kg - 17kg प्रति हेक्टेयर बीज की मात्रा की आवश्यकता होती है।
- देशी कपास की बीज की मात्रा की बात की बात की जाय तो 10kg - 12kg प्रति हेक्टेयर बीज की मात्रा की आवश्यकता होती है।
- संकर कपास की बीज की मात्रा की बात की बात की जाय तो 3kg - 4kg प्रति हेक्टेयर बीज की मात्रा की आवश्यकता होती है।
इसकी कीमत लगभग ₹1000/kg तक हो सकती है। अगेती फसल का उत्पादन अक्टूबर से शुरू हो जाता है। जो लगभग दिसंबर तक होता रहता है। एवं उन्नत तकनीक से कपास की खेती करने पर आपकी पैदावार पर सीधा असर देखने को मिलता है। यह आपकी इनकम बढ़ा सकता है।
निराई गुड़ाई एवं खरपतवार नियंत्रण
निराई गुड़ाई किसी भी फसल के लिए महत्वपूर्ण है। खेत में साफ सफाई होना आवश्यक है। कपास को निराई गुड़ाई की आवश्यकता है। इसमें पहली निराई गुड़ाई अंकुरण के 30 दिन बाद तथा पहली सिंचाई से 7 दिन पहले करना चाहिए।
जिससे फसल को वायु संचार प्राप्त हो सके तथा मिट्टी में वायु संचार सुचारू रूप से होता रहे।इससे नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ जाती है। सिंचाई करने पर मिट्टी जल को अवशोषित कर लेती है। साथ ही पौधे का पूर्ण विकास शुरू हो जाता है।
यह निराई गुड़ाई का सबसे अधिक फायदा होता है। इस तरह खरपतवार नियंत्रण में आसानी होती है। कपास में खरपतवार की रोकथाम के लिए दवा, पायरेटोब्रेक सोडियम 750 ग्राम प्रति हेक्टेयर या फ्लूक्लोरिंग / पेंडामैथेलिन1 किलो को बुवाई से पूर्व प्रयोग कर सकते हैं।
कीट प्रबंधन
कपास अधिक अवधि की खेती होती है। इसमें कई बार मौसम, जलवायु और तापमान परिवर्तन हो जाता है। ऐसे में रोग एवं कीट का प्रकोप होता है।
यह कीट पूरी तरह फसल को नष्ट करने की क्षमता रखते हैं। इसमें कई तरह के कीट अपनी भूमिका निभाते हैं। जिससे कुछ कीट फसल को नुकसान पहुंचाते हैं। कुछ कीट पत्तों को नुकसान पहुंचाते हैं।
कुछ कीट फूल व फल को नुकसान पहुंचाते हैं। इनमें से कुछ कीट रस सूचक होते हैं। जो पूरी फसल को बर्बाद कर देते हैं। इसमें इनकी पहचान कर इनका समय रहते बचाव करना आवश्यक है।
प्रमुख कीट
कपास में लगने वाले प्रमुख कीट इस प्रकार हैं।
- हरा तेला
- सफेद मक्खी
- गुलाबी सुंडी
- माहो
- मिलीगब
नियंत्रण
अगर खेत में इनमें से किसी भी कीट का प्रकोप है। या किसी एक कीट का भी असर देखने को मिलता है। तो नीम तेल 5 मिली. प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें। हरातेला का प्रकोप अधिक है। तो यूपीएल उलैला 5 ग्राम प्रति लीटर की दर से छिड़काव करें।
कीटनाशक दवा थायोमीथाक्जम 25w जी 100 ग्राम प्रति हेक्टेयर, एसिटेमीप्रिड 20 एसपी 20 ग्राम प्रति हेक्टेयर, इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल 200ml / हे. का प्रयोग करें।
सफेद मक्खी का अधिक प्रकोप है। तो जीएसपी एसएलआर 525 इंसेक्टिसाइड 25 एमएल का 15 लीटर की दर से छिड़काव करें। गुलाबी सुंडी का प्रकोप होने पर Dow delegate इंसेक्टिसाइड 15 मिलीलीटर / ली. छिड़काव करें। अगर फसल पर फंगस का प्रयोग दिख रहा है। तो फंगीसाइड का प्रयोग करें।
इन सब कीटनाशक का प्रयोग फसल पर एक बार ही करना चाहिए।
रोग एवं कीट नियंत्रण - अगर कपास की अधिक पैदावार के लिए अपने क्षेत्र की आवश्यकता अनुसार कीट एवं रोगों से निपटने के लिए तैयार रहैं। इसमें रस चूसक कीटों के साथ अन्य कीट भी फसल को हानि पहुंचाते हैं।
इसके लिए अपने क्षेत्र के दवाई विक्रेता से संपर्क कर सकते हैं। याद रखें फसल के लिए कीटनाशक खरीदते समय भरोसेमंद व्यक्ति से ही कीटनाशक खरीदें।
कीटनाशकों के लिए जिले के कृषि विज्ञान केंद्र में संपर्क कर सकते हैं। कपास की फसल को रोग एवं कीटों से मुक्त रखना आप की फसल के लिए अति महत्वपूर्ण होता है।
कपास की फसल के लिए सावधानियां
- फसल चक्र अपनाएं सूखे खेत की अच्छी गहराई में जुदाई करें।
- खेत में गोबर की सड़ी खाद अवश्य डालें।
- उर्वरकों का प्रयोग खेत की तैयारी के समय करें।
- अपने खेत की मिट्टी की जांच करावे।
- कपास के बीज का चयन करते समय कम समय वाली किस्म को भी जगह दें।
- अच्छा उत्पादन लेने के लिए बेड विधि से बुबाई करें।
- कम समय वाली किस्म का चयन करने पर पौधे से पौधे की दूरी कम रख सकते हैं।
- साथ ही लंबे समय वाली किस्म के लिए यह दूरी दोगुना कर दी जाती है।
- खरपतवार नाशक दवा पेन्डामेथिलीन का प्रयोग अवश्य करें।
बीज उपचार
किसी भी बीज का उपचार उसमें लगने वाले रोग बीमारी से बचाव करने के लिए होता है। कपास का बीज उपचार करना आवश्यक है। कपास का 1 किलो बीज 5 ग्राम डाईकोडरमा से उपचार करें। तथा लगभग 40 से 50 मिनट छांव में सुखाकर बिजाई करनी चाहिए।
कपास की उपज
कपास की उपज की बात करें, तो यह आपको अच्छी इनकम दे सकती है। देसी कपास की उपज 10 से 15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तथा संकर किस्में जिनकी चुनाई दिसंबर तक होती है।13 से 18 कुंतल प्रति हेक्टेयर और बीटी किस्म की चुनाई जनवरी या फरवरी तक होती है। जिन्हें 15 से 20 कुंतल प्रति हेक्टेयर उपज प्राप्त होती है।
कपास की खेती कौन से महीने में होती है ?
अगर आपने कपास की बुवाई करने की सोच रहे हैं तो उसके लिए अनुकूल समय का होना अति आवश्यक है। कोई भी फसल सही समय पर बुवाई करने से उसकी पैदावार पूरी मिलती है। साथ ही रोग एवं कीट का प्रकोप कम होता है। अगर आप कपास की बुवाई कर रहे हैं।
तो उसके लिए उचित समय का चयन करने से पहले मौसम एवं तापमान पर भी ध्यान देना आवश्यक है इसके बारे में अभी बात करेंगे। कपास की बुवाई कर रहे हैं। तो उसके लिए 10 अप्रैल से 10 मई तक का समय उचित रहता है। इससे बीज का अंकुरण अच्छा होता है।
पौधा निकलने में आसानी होती है। बुबाई का यह समय कम तापमान वाला छोटे पौधों के लिए अनुकूल रहता है।पछेती कपास की बुबाई जून के प्रथम सप्ताह से शुरू कर सकते हैं। तथा जितना जल्दी हो सके बुबाई कर दे । इस समय तक तापमान में बढ़ोतरी हो जाती है।
इस समय खेत में पर्याप्त नमी होना अति आवश्यक है। अगर खेत में पर्याप्त नमी हो तभी कपास की बुवाई करें। कपास बोने का यह समय अनेक रोग एवं कीट को आकर्षित करता है।
कपास की खेती के लिए सबसे उत्तम भूमि कौन सी है ?
कपास की kheti के लिए Uttam Mitti भूमि की बात की जाए, तो यह लगभग सभी प्रकार की भूमि में उन्हें क्षमता रखता है। भारत में कपास की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। इसके लिए उपयुक्त मिट्टी का चयन करके बुवाई करते हैं।
तो इसकी वृद्धि एवं उत्पादन बढ़ सकता है। कपास के लिए उपयुक्त मिट्टी तथा सबसे उत्तम भूमि का चयन करने से पहले इस के पेड़ के बारे में जान लेते हैं। कपास का पेड़ झाड़ीनुमा बहुवर्षीय एक लघु बृक्ष के समान होता है। जिसकी लम्बाई लगभग 8 फ़ीट तक हो सकती है।
यह पेड़ घना हरा भरा जिसपर हलके सफ़ेद ,पीले रंग के पुष्प आते है। जिन्हे फल बॉल्स कहते है। जिसे कपास का पेड़ कहते हैं। अधिक संख्या में इसकी बुवाई करने पर इसे खेती का दर्जा दिया गया है। यह एक वृक्ष के समान मजबूत तना तथा जड़ वाला लघु पेड़ होता है।
इसकी जड़ सीधी नीचे की तरफ जाती है।और कुछ अन्य सहायक जड़ होती है। जिससे इस पेड़ को खड़े रहने में मदद मिलती है। kapas ki kheti ke liye mitti की बात करें तो
इसे सख्त भूमि की आवश्यकता होती है। जहां पर जल भराव मुक्त भूमि कपास के लिए उत्तम है। भूमि की बात की जाए तो यह काली मिट्टी वाली भूमि तथा दोमट मिट्टी तथा कुछ खास तकनीक से यह बंजर भूमि पर भी लगाया जा सकता है।
कपास के लिए मिट्टी का पीएच 7 से 8 तक हो तथा चिकनी मिट्टी में खेती कर सकते हैं। इसके लिए चिकनी मिट्टी उपयुक्त रहती है।
भारत में सबसे ज्यादा कपास की खेती कहां होती है ?
हम सभी जानते हैं। भारत में कपास की फसल बड़ी मात्रा में की जाती है कपास उत्पादन में भारत दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है। भारत में कपास को कई राज्यों में उगाया जाता है। गुजरात राजस्थान महाराष्ट्र मध्य प्रदेश उत्तर प्रदेश हरियाणा पंजाब तमिलनाडु राज्य कपास की फसल की बुवाई करते हैं। इसके साथ ही अन्य राज्य भी इस ओर बढ़ रहे है।
विश्व में कपास का उत्पादन
भारत कपास का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है। इसके साथ ही कपास का सबसे बड़ा उपभोक्ता भी है। अगर उत्पादन की बात करें तो भारत प्रतिवर्ष लगभग 1 मिलियन कपास उत्पादन करता है। जो विश्व में कपास उत्पादन होता है। भारत दुनिया का प्रमुख उत्पादक बन गया है। अभी चीन से आगे है। भारत में कपास का क्षेत्रफल अन्य देश की अपेक्षा कम है।
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