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मखाना की खेती खोल रही कमाई के नए द्वार

मखाने की खेती कैसे होती है?, makhana ki kheti kaise karen?, foxnut farming?

मखाना, जिसे फॉक्स नट्स के रूप में भी जाना जाता है, भारत में एक लोकप्रिय स्नैक है और इसका उपयोग पारंपरिक आयुर्वेदिक दवाओं में भी किया जाता है। मखाना बीज द्वारा उत्पादित किया जाता है और मुख्य रूप से तालाबों, झीलों और आर्द्रभूमि के स्थिर पानी में पाया जाता है।

मखाने की खेती कैसे करें

मखाना और इसकी उन्नत खेती के लिए अधिकतम मात्रा में जल उपलब्ध होना चाहिए। निम्नलिखित तरीकों से Foxnuts Farming की जा सकती है। मखाना एक बहुत ही लोकप्रिय खाद्य पदार्थ है। भारत में खुशखबरी है। क्योंकि यहां इसकी खेती के लिए उचित जलवायु और मृदा है। इसकी खेती भारत के अनेक हिस्सों में की जाती है।

मखाना की फसल जलजमाव वाली जमीन पर अच्छी पैदावार देता है। इसके फायदे को जानकर जमींदार लोग अपने खेत को मखाना उत्पादन के लिए कुछ साल के लिए किराए पर दे रहे हैं। जिन खेतों में पिछले कई सालों से खेती नहीं हो रही है। उन खेतो से मखाना उत्पादन करके आमदनी की जा रही है।

इसकी खेती के लिए व्यापक ज्ञान, समय और धैर्य की जरूरत होती है क्योंकि फोक्स नट्स की फसल में कई प्रकार की समस्याएं हो सकती हैं जैसे कीटों और बीमारियों से निपटना इत्यादि।

देश में मखाना का सर्वाधिक उत्पादन

मखाना की खेती का सर्वाधिक उत्पादन बिहार, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, असम, जम्मू-कश्मीर, मणिपुर और मध्यप्रदेश, राज्य में की जाती है। भारत के अलावा विदेश के कुछ अन्य देशों में भी मखाना की खेती होती है।

जिनमें चीन, रूस, जापान, उत्तरी कोरिया में इसकी खेती की जाती है। मखाना की सबसे अच्छी क्वालिटी की बात की जाए तो मिथिलांचल का मखाना काफी पसंद किया जाता है। जो खाने में अधिक स्वादिष्ट होता है। यहां का मखाना लोगों के बीच अधिक लोकप्रिय है।

मौसम और जलवायु

  • फॉक्स नट्स की खेती अक्सर ऐसे जलवायु वाले क्षेत्रों में की जाती है। इसके लिए अधिकतम तापमान 35-40 डिग्री सेल्सियस हो | फोक्स नट्स के लिए उपयुक्त मृदा में मिट्टी को गर्म और नम करना चाहिए|
  • जिससे बीज बेहतरीन ढंग से उग सकें। ये बीज दिसंबर से मई के बीच बोए जा सकते हैं। सभी फसल के बोने का एक समय है।
  • जिस समय के अंतराल में फसल बोई जाती है। मखाना को बोने का सही समय दिसंबर से जुलाई है।इस समय अवधि के दौरान मखाना की बुबाई कर सकते हैं।
  • खेती की नई तकनीक तथा उन्नत किस्मों की बदौलत किसान एक साल में दो फसल ले सकते हैं। मखाना की फसल की समय अवधि लगभग 11 महीने होती है।
  • लेकिन वैज्ञानिक विधि से मखाना की खेती करने पर यह 1 साल में दो बार उत्पादन लिया जा सकता है। मखाना की खेती करने के लिए कम छिछले पानी वाले तालाब उपयुक्त होते हैं।
  • मखाना बुवाई के लिए दिसंबर से जनवरी का मौसम उत्तम रहता है।

मखाना की बुवाई

मखाना एक खाद्य पदार्थ है। जिसे तालाब में बोया जाता है। इसकी बुबाई करने से पहले निर्धारित जगह से खरपतवार की सफाई कर लेनी चाहिए। साथ ही तालाब में जलीय पदार्थों की सफाई कर लें।जिससे फसल पर खरपतवार का कोई प्रभाव न पड़े। 

मखाना बोने के लिए मखाना बीज की आवश्यकता होती है। इन मखाना बीजो को कीचड़ युक्त जमीन में बोया जाता है। मखाना बीज को पानी के नीचे मिट्टी की सतह पर डेढ़ मीटर की दूरी पर बोया जाता है।

बीज की मात्रा

मखाना बुवाई के साथ ही मखाना के बीज की मात्रा का ध्यान रखना चाहिए। मखाना की बुवाई करने के लिए 80 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज की बुवाई की जाती है। मखाना को बोने के लिए इस की पौध भी तैयार कर सकते हैं। मखाना की फसल पानी में ही पैदा होती है।

इसकी खेती को किसी भी तरह की खाद की आवश्यकता नहीं होती। इसे बिना खाद उर्वरक के भी इसकी खेती की जाती है। यह एक उर्वरक तथा रासायन मुक्त खेती है। यह पानी में उगने वाली प्राकृतिक खेती है।

जो स्वयं ही अपने लिए प्राकृतिक खाद का निर्माण कर लेती है। यह तालाब में सड़ने वाली प्राकृतिक वस्तुओं वनस्पति आदि से पोषक तत्व ग्रहण कर लेती है। जो उसके लिए खाद का काम करते हैं। इससे किसान की लागत भी बचती है।

मखाना कैसे बनता है

मखाना में अप्रैल में फूल की शुरुआत हो जाती है। जिसका रंग पीला, नीला, गुलाबी होता है। जिनको नीलकमल के नाम से जानते हैं। यह फूल 2 से 4 दिन तक पानी के ऊपर दिखाई देते हैं। इसके बाद बीज बनने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। 

जो की लगभग 2 महीने में फल बनने की शुरुआत हो जाती है। जिनमें 15 से 20 फल हर पौधे से प्राप्त होते हैं। तथा इनसे 12 से 16 बीज प्रति फल प्राप्त होते हैं।

कुछ समय बाद यह पानी की सतह पर आ जाते हैं। जो की २-3 दिन बाद पानी की निचली सतह में चले जाते हैं। जिनमें कांटे पाए जाते हैं। जो लगभग 2 महीने में खत्म हो जाते हैं। कांटे खत्म होने के बाद सितंबर अक्टूबर में उन्हें निकाला जाता है।

किसान इन्हे पानी की निचली सतह से इकट्ठा कर लेते हैं। इन्हें बिहार के लोग गोरिया कहते हैं। इन गोरियों को पानी से निकलने के बाद मखाना की प्रोसेसिंग का काम शुरू हो जाता है।

मखाना का प्रसंस्करण कैसे करें?

मखाना प्रोसेसिंग करते समय बीजों को फूलों से अलग कर दिया जाता है। तथा इन गोरियों को सुखाने के लिए धूप में रख देते हैं। सूखने के बाद अलग-अलग आकार में रख देते हैं। इन सब बीजों को फोड़ कर उबाल लिया जाता है। इसके बाद हल्की आंच पर भून कर मखाना तैयार किया जाता है।

मखाना की प्रोसेसिंग में प्रशिक्षित मजदूर गोरिया से लावा निकलने का काम करते हैं। यह काम बहुत ही सावधानी से किया जाता है। जो कि लावा निकालते समय 20 से 25% लावा खराब हो सकता है। Makhana Ki Processing करते समय 3 किलो गोरयों से 1 किलो मखाना निकलता है।

ऐसे किसान जिनकी जमीन में अधिक जलभराव एवं बंजर है। जो इस जमीन पर कोई भी फसल नहीं उगा पा रह है। उनके लिए मखाना की खेती किसी वरदान से कम नहीं है। वह अपनी जमीन पर Makhana ki kheti करके अपने लिए आय अर्जित कर सकते हैं।

पिछले कुछ समय की बात की जाए तो किसान धान की खेती के बजाय मखाना को ज्यादा पसंद कर रहे हैं। क्योकि मखाना कम लागत में अधिक मुनाफा दे रहा है। वहीं धान की खेती में किसानों को अधिक लागत लगानी पड़ती है।

मखाना बुवाई के समय खेत में कम से कम 8 से 10 इंच पानी होना चाहिए। अगर यह पानी कम हो रहा है तो मखाना से फल निकालने तक पानी की व्यवस्था करनी चाहिए।

मखाना की वैज्ञानिक पद्धति

कृषि वैज्ञानिक मखाना की खेती करने के लिए नई तकनीक विकसित कर रहे हैं। जिसके फलस्वरूप मखाना उत्तरप्रदेश में भी बोया जा रहा है। मखाना उगने के लिए दरभंगा से उत्तर प्रदेश के किसान बीज लेकर भी कर रहे हैं।

उत्तर प्रदेश में मखाना पूर्वांचल ,तराई तथा ऐसे क्षेत्र जहां पर अधिक जलभराव होता है। वहां पर Foxnut Farming कर रहे हैं। मखाना को हर साल बोने की आवश्यकता नहीं होती। इसलिए इसकी खेती में कोई ज्यादा परेशानी नहीं आती।

मखाना को भारत के अलावा अन्य देश भी मखाना को मांगते हैं। इसलिए अंतरराष्ट्रीय बाजार में मखाना की अच्छी मांग रहती है। इस समय भारत में लगभग 22000 हेक्टेयर में खेती की जाती है। जो कि आसानी से बाजार में बिक जाता है।

मखाना की उन्नत किस्में

मखाना की खेती करने के लिए उन्नत किस्मों का चयन करना अति आवश्यक है। कुछ मखाना किस्में कम लागत में अच्छा उत्पादन देने में सक्षम है।

जिससे अधिक पैदावार प्राप्त होती है। मखाना की उन्नत किस्म मखाना अनुसंधान केंद्र दरभंगा बिहार से ले सकते हैं।

मखाना की भरपूर पैदावार देने वाली प्रजातियां - स्वर्ण वैदेही ,सबौर मखाना -1 कुछ किस्में है। इसमें लगभग 28 से 30 कुंतल प्रति हेक्टेयर औसत उपज दे सकती हैं।

पानी की आवशयकता

फोक्स नट्स की खेती ताल या कुएं के पास होनी चाहिए क्योंकि इसे अधिक से अधिक पानी की जरूरत होती है। फोक्स नट्स की फसल का समय लगभग 4 से 5 महीने होता है और फसल की उपज दिसंबर से अगले साल के मई-जून के बीच होती है।

अगर पानी कम है तो इसमें दोबारा सिंचाई कर देनी चाहिए। इसके बाद पानी भरे खेत की जुताई कर लेनी चाहिए। ध्यान रखें खेत में पानी की कमी ना रहे। खेत में पानी कम है तो उसकी पूर्ति कर लेनी चाहिए।

खेत की तैयारी

मखाना को तालाब एवं खेत में भी उगा सकते हैं। इसकी खेती छिछले पानी तथा जलभराव वाली जमीन में की जाती है। अगर आप समतल जमीन या खेत में मखाना की खेती कर रहे हैं। तो इसके लिए खेत की तैयारी करना अति आवश्यक है। मखाना के लिए जलभराव वाली भूमि उत्तम रहती है।

खेत की तैयारी करते समय सबसे पहले खेत की गहरी जुताई कर लेनी चाहिए। तथा पाटा लगाकर मिट्टी को भुरभुरा एवं समतल कर देना चाहिए। मखाना बुवाई से पहले खेत में ऊंची मेड बनाकर उसमें लगभग 2 फीट पानी भर देना चाहिए।

खरपतवार नियंत्रण

इस समय खेत में खरपतवार का भी उगना शुरू हो जाता है। इसके लिए नीम का तेल तथा 2-4-D दवा 3 ग्राम प्रति लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें। इससे खरपतवार नियंत्रण हो सके। इसके साथ ही खेत में काई की समस्या भी आती है। 

हरि काई के नियंत्रण के लिए कॉपर सल्फेट 50 ग्राम की पोटली बनाकर खेत में काई वाली जगहों पर लगभग 6 से 7 जगहों पर रख सकते हैं। इससे कई नियंत्रण में सुविधा होगी।

खाद एवं उर्वरक

अगर आप खेत में मखाना की खेती कर रहे हैं। तो इसके लिए खाद तथा उर्वरक का ध्यान रखना आवश्यक है। हालांकि मखाना में खाद तथा उर्वरक की आवश्यकता बहुत ही कम होती है। मखाना में खाद का उपयोग करने से फसल को बढ़ने में सुविधा होती है।

मखाना में खाद का उपयोग जुताई के समय किया जाता है। जब आप खेत की गीली जुताई करते हैं। तो जुदाई के साथ ही खाद का प्रयोग करना चाहिए। इस समय प्रयोग करने से पूरी तरह मिट्टी में मिल जाता है। जिससे खाद अपना काम सही तरीके से करता है।

Makhana ki kheti में 10 टन प्रति हेक्टेयर गोबर की खाद, महुआ खली 6 कुंटल प्रति हेक्टेयर, नीम की खली 7 कुंटल प्रति हेक्टेयर , 6 कुंटल प्रति हेक्टेयर करंज की खली गीली जुताई के साथ मिट्टी में मिला देना चाहिए|

रासायनिक उर्वरक की मात्रा

अगर आप रासायनिक उर्वरक का इस्तेमाल करना चाहती हैं। तो 15 किलो प्रति हेक्टेयर यूरिया, 12 किलो प्रति हेक्टेयर डीएपी तथा 5 किलो प्रति हेक्टेयर पोटाश का इस्तेमाल कर सकते हैं। जिससे पौधों का विकास पूर्ण हो सके।

रोपाई का तरीका

मखाना की रोपाई करने से पहले खेत की तैयारी करें, बाद में रोपाई करें। रोपाई करते समय पौधे से पौधे की दूरी 1.24 मीटर तथा लाइन से लाइन की दूरी 1.25 मीटर होनी चाहिए। इसके साथ किसान इसमें मछली डालकर अतिरिक्त आमदनी कर सकती हैं। जो कि 4 कुंतल प्रति हेक्टेयर उत्पादन प्राप्त होता है।

सुखाना

मखाना को तब तक कई घंटों के लिए धूप में सुखाया जाता है जब तक कि वह पूरी तरह से सूख न जाए। यह मखाना को संरक्षित करने और इसे भंडारण और परिवहन के लिए अधिक टिकाऊ बनाने में मदद करता है।

प्रसंस्करण

सूखे मखाना को उसके कठोर बाहरी आवरण को हटाने के लिए संसाधित किया जाता है, जिससे अंदर खाद्य गिरी प्रकट होती है। यह रोस्टिंग, पॉपिंग या फ्राइंग सहित विभिन्न तकनीकों का उपयोग करके किया जा सकता है।

पैकेजिंग

एक बार संसाधित होने के बाद, मखाना को वितरण और बिक्री के लिए पैक किया जाता है। इसे अक्सर स्वस्थ नाश्ते के रूप में बेचा जाता है या खाना पकाने में इस्तेमाल किया जाता है।

मखाना की कीमत

मखाना की पैदावार करने के बाद बाजार में बेचने की बारी आती है। मखाना की कई प्रजातियां होती है। जिनका भाव बाजार में अलग-अलग होता है। मकाना कई गुणों से भरपूर स्वादिष्ट फल होता है। जिसका उपयोग लगभग सभी मनुष्य करते हैं।

मखाने का उपयोग सर्वाधिक खीर बनाने में किया जाता है।इसकी मांग देश-विदेश तक है। भारत में मखाना की कीमत बादाम से भी ज्यादा है। बिहार में मखाना करीब 13000 हेक्टेयर पर उगाया जाता है। जहां से 25000 टन मखाना प्राप्त होता है। जिसका बाजार मूल्य ₹500 करोड़ होता है।

मखाना से आमदनी

मखाना का पौधा एक जलीय पौधा है। इसकी खेती मुख्य तालाबों में की जाती है। खेत में Makhana ki kheti के बाद सिंघाड़े की खेती की जा सकती है।

अगर जमीन में करते हैं तो बरसीम की खेती कर सकते हैं। मखाने के साथ मछली पालन भी कर सकते हैं। मखाने के साथ इन सभी की खेती करके अच्छा लाभ कमा सकते हैं।

अगर आप सिर्फ मखाना की खेती करते हैं तो ₹48000 की Net Income होती है | इसके साथ अगर सिंघाड़े की खेती की जाए तो ₹100,000 की इनकम होती है और मखाने के साथ चावल गेहूं की खेती करने पर ₹125000 की प्रॉफिट होती है।

बिहार में मखाना की खेती कहाँ होती है?

इसकी खेती बिहार में सर्वाधिक क्षेत्रफल पर की जाती है। Makhana ki khti की शुरुआत दरभंगा बिहार से हुई। यहाँ से सहरसा, पूर्णिया, कटिहार, किशनगंज होते हुए पश्चिम बंगाल में मालगाजरी तक इसकी खेती की जाती है। यहां पर कुल मखाना उत्पादन का 90% तक उत्पादन किया जाता है।

क्या मखाना और कमल के बीज एक ही होते हैं?

अधिकतर लोग कहते हैं कि मखाना कमल से प्राप्त होता है। लेकिन यह कमल से नहीं बनता। कमल का बीज मखाने जैसा होता है। हमारे प्रयोग में आने वाला मखाना खेती करके प्राप्त किया जाता है। जो पानी में उगायी जाने वाली घास होती है। और इस घास को कुरूपा अखरोट कहते हैं। यह घास बिहार में लगाई जाती है। जो वह पानी वाले तालाबों में लगाई जाती है।

थोक व्यापारी मखाना कहां से खरीदते हैं

मखाना की आवश्यकता के चलते विभिन्न केंद्रों को शुरू किया गया है। जहां पर किसानों को मखाना का सही दाम मिल रहा है। तथा समय पर भुगतान किया जा रहा है। अगर आप मखाना उत्पादन करना चाहते हैं। तो बैंक भी इसके लिए आपको लोन देने को तैयार है। साथ ही सरकार भी मखाना उत्पादन को प्रोत्साहन कर रही है।

मखाना संक्षेप में

मखाना की खेती में पौधे को उथले पानी में उगाना, फूलों को परागित करना, बीज की फली की कटाई करना, मखाना को सुखाना और उसके बाहरी आवरण को हटाने के लिए प्रसंस्करण करना और फिर वितरण और बिक्री के लिए इसकी पैकेजिंग करना शामिल है। अगर आप फोक्स नट्स की खेती के बारे में और अधिक जानना चाहते हैं तो आप स्थानीय जानकारी अवश्य लें।

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