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ड्रैगन फ्रूट की खेती: एक खेत में अधिक फसलें

ड्रैगन फ्रूट मध्य अमेरिका का एक उष्णकटिबंधीय फल है, लेकिन अब दुनिया भर के विभिन्न क्षेत्रों में व्यापक रूप से ड्रैगन फ्रूट उगाया जाता है। अपने खेत में ड्रैगन फ्रूट उगाने के लिए इसकी खेती आपके लिए कमाई का जरिया ही सकता है। इस सुपर फ्रूट ड्रैगन फ्रूट को रोजगार की तरह अपना सकते है। इसकी खेती रोजगार की दृष्टि से भी कर सकते है। भारत में इसकी मांग काफी बढ़ रही है।

आपके खेत में ड्रैगन फ्रूट को उगाकर अच्छा मुनाफा कमा सकते है। यह फल कई तरह की बीमारियों में कारगर है। मरीजों को इसका सेवन अवश्य करना चाहिए। इसकी खेती के साथ सरसों,गन्ना, मूँग, आदि फसल की दुसरी खेती भी कर सकते है।ड्रैगन फ्रूट को पिटाया फार्मिंग के रूप में भी जाना जाता है।

यह फल खाने में मीठा एवं स्वादिष्ट होता है। यह एक प्रकार की कृषि पद्धति है। जिसमें व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए ड्रैगन फ्रूट के पौधों की खेती शामिल है। यह फल लाभदायक विटामिन्स का अच्छा स्त्रोत माना जाता है। यह फल वैज्ञानिक रूप से हिलोसेरियस और सेलेनिकेरियस के रूप में जाना जाता है।

ड्रैगन फ्रूट की खेती करने की विधि

ड्रैगन फ्रूट को पिटाया फार्मिंग के रूप में भी जाना जाता है। यह फल खाने में मीठा एवं स्वादिष्ट होता है। यह एक प्रकार की कृषि पद्धति है। जिसमें व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए ड्रैगन फ्रूट के पौधों की खेती शामिल है। यह फल लाभदायक विटामिन्स का अच्छा स्त्रोत माना जाता है। यह फल वैज्ञानिक रूप से हिलोसेरियस और सेलेनिकेरियस के रूप में जाना जाता है।

अगर आप ड्रैगन फ्रूट की खेती कर रहे है, तो भारत में इसे महाराष्ट्र, गुजरात, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडू, कर्नाटक आदि राज्यों में ड्रैगन फ्रूट उगाया जाता है। इसमें विटामिन B, C एवं विटामिन 2, आयरन और कैल्सियम पाया जाता है। पिटाया को नागफनी परिवार का मुख्य सदस्य है। ड्रैगन फ्रूट को अन्य फ्रूट की अपेक्षा भिन्न तरीके से उगाया जाता है।

ड्रैगन फ्रूट के पौधे को पूर्ण विकसित होने में २-३ साल लग जाते है। इसके पौधे को सीमेंट पोल के साथ आगे बढ़ाना जाता है। ड्रैगन फ्रूट के पौधे की सही देखभाल के साथ यह ५-६ साल में फल देने लगता है। इसके साथ अन्य सब्जी वर्गीय फसल को लगाकर अतिरिक्त पैदावार ली जा सकती है। 

ड्रैगन फ्रूट की प्रजाति

विश्व में ड्रैगन फ्रूट की लगभग 2000 वैराइटी पायी जाती है। जिनमे से Dragon Fruit  की तीन Varieties India में उगाई जाती है।

  • लाल गूदे बाला लाल रंग का फल
  • सफेद गूदे बाला लाल रंग का फल
  • सफेद गूदे बाला लाल पीले रंग का फल

जलवायु और बढ़ने की स्थिति

ड्रैगन फ्रूट के पौधे उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पनपते हैं। यह पौधे गर्म तापमान पसंद करते हैं। जहाँ पर  65°F से 90°F (18°C से 32°C) तक तापमान उचित माना जाता है।कमलम के पौधों को 6 और 7.5 तक के बीच पीएच स्तर के साथ अच्छी तरह से सूखा मिट्टी, अधिमानतः रेतीली दोमट या दोमट मिट्टी की आवश्यकता होती है।

खेती की तकनीक

ड्रैगन फ्रूट के पौधे आमतौर पर कंक्रीट के पोल से बने सहायक संरचनाओं के सहारे पर उगाए जाते हैं। ताकि उन्हें आवश्यक सहायता प्रदान की जा सके। क्योंकि वे एपिफाइटिक पर्वतारोही हैं। उनके पास सूछ्म जड़ें होती हैं जो पोल के समर्थन से जुड़ी होती हैं।

पौधे के तने एक विशाल, कैक्टस जैसी संरचना बनाते हैं। अच्छे वायु प्रवाह, प्रकाश पैठ और कुशल कीट प्रबंधन के लिए पोल से पोल की उचित दूरी 6 फ़ीट एवं लाइन से लाइन की दूरी 9 - 10 फ़ीट और छंटाई आवश्यक है।

खेती की देखभाल

ड्रैगन फ्रूट के पौधों को न्यूनतम रखरखाव की आवश्यकता होती है और ये अपेक्षाकृत कीट-प्रतिरोधी होते हैं। इष्टतम विकास के लिए नियमित निराई और सिंचाई आवश्यक है। ड्रैगन फ्रूट के पौधे पर फूल से फल बनाने की अवस्था में चीटियों की रोकथाम आवश्यक है। इस समय 4 - 5 दिन के अंतराल पर नीम के तेल का छिड़काव कर सकते है। पौधे के समग्र स्वास्थ्य के लिए जैविक खाद या सिंगल सुपर फास्फेट खाद का प्रयोग फायदेमंद होता है। पिटाया के पौधे को आमतौर पर तेज हवाओं से भी सुरक्षा की आवश्यकता होती है, क्योंकि उनकी नाजुक शाखाएँ होती हैं।

रोपण और प्रसार

इसके पोधो की कलमों से रोपाई सबसे आम तरीका है क्योंकि यह किसानों को मूल पौधे की वांछित विशेषताओं को बनाए रखने की अनुमति देता है। ड्रैगन फ्रूट के एक पौधे की कीमत लगभग 40 रु के आसपास होती है। इसकी कलम के रोपाई का सही समय जुलाई के महीने से शुरू कर सकते है। रोपाई करते समय लाइन से लाइन की दूरी १० से १२ फ़ीट होनी चाहिए। इसके पौधे से पौधे की दूरी ७ से ८ फ़ीट होनी चाहिए।

कलमों को उपयुक्त मिट्टी में लगाया जाता है, और युवा पौधों को चढ़ने के लिए सहायक संरचनाएं दी जाती हैं। कटिंग आमतौर पर 12 से 18 इंच (30 से 45 सेंटीमीटर) लंबी होती हैं। उन्हें अच्छी तरह से तैयार मिट्टी या कंटेनरों में लगाया जाता है। कैक्टस जैसी लताओं के बढ़ने के लिए एक ट्रेलिस या सपोर्ट सिस्टम आवश्यक है।

पानी और पोषक तत्वों का प्रबंधन

पोधो को उचित उर्वरीकरण के साथ पर्याप्त सिंचाई, स्वस्थ पौधों के विकास और इष्टतम फल उत्पादन के लिए महत्वपूर्ण है। आवश्यक पोषक तत्व प्रदान करने के लिए संतुलित उर्वरक या जैविक खाद का उपयोग किया जा सकता है।

ड्रैगन फ्रूट से बेहतर उत्पादन लेने के लिए इनकी बेहतर ग्रोथ होना आवश्यक है। भारत में पिटाया की जल्दी ग्रोथ पाने के लिए इन तरीको को अपनाया जा सकता है। प्रति पोल 4 - 5 किलोग्राम गोबर की सड़ी खाद या जैविक खाद डालनी चाहिए। इसके आलावा 250 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट को प्रति पोल की मिटटी में मिलकर डालना चाहिए।30 दिन बाद इस प्रक्रिया को दोहरा सकते है। बाद में पानी देना चाहिए। 

ड्रैगन फ्रूट में बीमारियों, कीटों का प्रबंधित

ड्रैगन फ्रूट की खेती को बीमारियों, कीटों सामान्य बीमारियों में फंगल संक्रमण और जीवाणु सड़ांध शामिल हैं। जिन्हें उचित स्वच्छता प्रथाओं और समय पर उपचार के माध्यम से प्रबंधित किया जा सकता है। मिलीबग और फल मक्खी जैसे कीट भी फसल को प्रभावित कर सकते हैं।

सतर्कता और एकीकृत कीट प्रबंधन रणनीतियों को लागू करने से इन चुनौतियों को कम करने में मदद मिल सकती है। हालांकि सामान्य कीट जैसे स्केल कीड़े, मिलीबग और एफिड्स कभी-कभी पौधों को प्रभावित कर सकते हैं। नियमित निगरानी, ​​जैविक कीटनाशकों का उपयोग और पौधों की अच्छी स्वच्छता बनाए रखना प्रभावी निवारक उपाय हैं।

कटाई और कटाई के बाद की देखभाल

ड्रैगन फ्रूट के पोंधो को विकसित होने में 8 महीने का समय लगता है। इसके आलावा इनसे उत्पादन की बात की जाय तो लगभग, ड्रैगन फ्रूट की फसल से आमतौर पर रोपण के एक से दो साल के भीतर फल देना शुरू कर देते हैं। फल की तुड़ाई फल पूरी तरह से लाल हो जाने पर करनी चाहिए।

ड्रैगन फ्रूट की खेती की लागत प्रति एकड़

किसान ड्रैगन फ्रूट की खेती शुरू करना चाहते है तो इसमें लगने बाला शुरूआती खर्च के बारे में भी जानकारी होनी चाहिए। इसकी खेती की शुरुआत में आपको कई चीजों की आवशयकता होती है। जिनमे पौधे, सीमेंट के पोल, पानी का साधन आदि खर्च शामिल है। एक अनुमान के मुताबिक ड्रैगन फ्रूट की खेती की लागत 5 लाख रुपये से लेकर 7 लाख रुपये प्रति एकड़ तक हो सकती है. जो कि शुरुआत लगती है. एक बार लगाने के बाद यह 25 से 30 साल तक उत्पादन देता है।

कुल मिलाकर, ड्रैगन फ्रूट की खेती उष्णकटिबंधीय फलों की खेती में रुचि रखने वालों के लिए एक आशाजनक उद्यम है। अपनी आकर्षक उपस्थिति, अद्वितीय स्वाद और बढ़ती मांग के साथ, यह किसानों के लिए अपने फसल पोर्टफोलियो में विविधता लाने और एक लाभदायक बाजार में टैप करने के अवसर प्रस्तुत करता है।

ड्रैगन फ्रूट की उत्पत्ति

यह फल अमेरिका, रुस, वियतनाम, चीन से होते हुए भारत आया है। स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय बाजारों में इस विदेशी फल की बढ़ती मांग के कारण Dragon Fruit को लोकप्रियता मिली है। यह फल अपने जीवंत रंगों, अद्वितीय उपस्थिति और ताज़ा स्वाद के लिए प्रसिद्ध है।

जिसे पिटाया की खेती के रूप में भी जाना जाता है। जो एक उष्णकटिबंधीय फल है जो अपने जीवंत रूप और अनोखे स्वाद के लिए जाना जाता है। ड्रैगन फ्रूट को भारत की हिन्दी भाषा में कमलम के नांम से भी जाना जाता है। जिससे इस फल को नाम के साथ नई पहचान मिली है।

हाल के वर्षों में, पिटाया फ्रूट की खेती ने अपनी व्यावसायिक क्षमता और स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय दोनों बाजारों में उच्च मांग के कारण दुनिया भर के कई क्षेत्रों में लोकप्रियता हासिल की है।

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