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हरी मिर्च की खेती कैसे करें

मिर्च का उपयोग हर दिन किया जाता है। यह कभी खत्म ना होने वाली आवश्यकता है। घर हो या शादी या कोई अन्य मौका मसालों में मिर्च को सबसे आवश्यक मसालों की श्रेणी में रखा गया है। इसके बिना मसाला अधूरा माना जाता है। ऐसे में मिर्ची की खेती किसानों के लिए फायदे का सौदा हो सकता है।

मिर्च की खेती खेती करने का तरीका

मिर्च को देश में कई हिस्सों में उगाया जाता है। जहां से इसे अन्य हिस्सों में भी भेजा जाता है। जहां से इसका अच्छा मूल्य मिल सकता है। मिर्च को साल में दो बार सकते हैं। गर्मियों में मिर्ची की फसल की बुवाई की जाती है। जो 180 दिन की होती है। साथ ही सर्दियों में भी इसकी खेती की जाती है। मिर्च की फसल को 6 महीने में पूरा उत्पादन देने वाली फसल है।

मिर्च सभी मसालों का प्रमुख, यह भोजन को स्वादिष्ट बनाने का कार्य करती है। भारत में मिर्च की फसल अधिक क्षेत्रफल पर की जाती है। जो मसालों का बड़ा उपभोक्ता है। साथ ही भारत सबसे बड़ा मसाला उत्पादक देश है। इसलिए मिर्च की खेती भारत के अतिरिक्त अन्य देश भी करते हैं।

मिर्ची को अमेरिका में उष्णकटिबंधीय इलाकों में प्रमुखता से करते हैं। भारत में मिर्च की फसल कई राज्यों में उगाते हैं। जिनमें उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल आदि प्रमुख है।

भूमि का चयन

मिर्ची को लगाने के लिए उचित जल निकास वाली भूमि का चयन करना चाहिए। मिर्च के लिए 6.5 - 8 PH वाली मिटटी उपयुक्त रहती है। जलभराव मिर्च की फसल के लिए हानिकारक होती है। मिर्ची की फसल के लिए काली मिट्टी सबसे उपयुक्त रहती है। साथ ही काली चिकनी दोमट मिट्टी में भी मिर्ची की खेती कर सकते हैं।

अगर सिंचाई की उचित व्यवस्था है तो मिर्ची को बलुई दोमट मिट्टी एवं हल्की दोमट मिट्टी में भी लगा सकती हैं। जिसमें जीवाश्म खाद का इस्तेमाल करना चाहिए। मिर्च के लिए छत्तीसगढ़ की भूमि सबसे उपयुक्त है।

मिर्ची लगाने के लिए खेत की तैयारी करते समय सुनिश्चित करें, की जुताई के बाद पाटा अवश्य लगाएं। अगर खेत में पर्याप्त नमी नहीं है। तो हल्की सिंचाई अवश्य करें। एक हफ्ते बाद गोबर की खाद अवश्य डालें। खाद की मात्रा 100 -150 कुंतल गोबर की खाद का प्रयोग करना चाहिए। साथ ही मिट्टी पलट हल से जुताई अवश्य करें। बाद में पाटा लगाकर खेत समतल करते हैं। अंतिम जुताई करने के बाद पाटा लगाएं।

उन्नतशील किस्मों का चयन

मिर्च की उन्नत किस्मों का चयन करते समय ध्यान रखें कि मिर्ची का बीज किसी प्रमाणिक संस्थान से ही लेना चाहिए। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान नई दिल्ली समस्त भारत देश के लिए बीज प्राप्त कर सकते हैं। इसी तरह कुछ निजी विश्वसनीय कंपनियां से भी बीज प्राप्त कर सकते हैं। मिर्च की उन्नत किस्मों का चयन अपनी मिटटी, जलवायु आवश्यकता के अनुसार करना चाहिए। इसके साथ कई तरह अच्छी किस्म आती है।

  1. शिमला मिर्च - अगर आप शिमला मिर्ची की खेती कर रहे हैं। तो इस मिर्च की सबसे अच्छी किस्म कैलिफोर्निया बंडर एवं पूसा दीप्ति है। यह दोनों प्रजाति अच्छी पैदावार देने में सक्षम है। यह रोगों के प्रति सहनशील है।
  2. हरी मिर्च - जो किसान हरी मिर्च की खेती कर रहे हैं। उन्हें इसकी सबसे अच्छी किस्म पूसा सदाबहार, पंथ सी - 1, एपी 46A , चंचल, पूसा ज्वाला, आदि मिर्च की प्रजाति अच्छी मानी जाती है।
  3. लाल मिर्च - जो लोग लाल मिर्च की खेती कर रहे हैं। वह किसान पेपरिका प्रजाति को लगा सकते हैं। इसमें बाकी किस्मों से बड़ी मिर्ची निकलती है। तथा उत्पादन भी अधिक है। यह प्रजाति रोग के प्रति सहनशील है। इस प्रजाति में रोगों का प्रकोप कम होता है।
  4. पूसा ज्वाला - यह हल्के रंग की मिर्च होती है। तथा यह औसतन लंबाई में पाई जाती है। यह किस्म 120 से 130 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक की उपज देती है। तथा बीमारियों तथा रोगों के प्रति अधिक सहनशील है। इसमें मरोड़ बीमारी तथा चंपावत सफेद मक्खी का प्रकोप कम रहता है।
  5. पूसा सदाबहार - यह किस्म 2 -3 साल तक उत्पादन देने में सक्षम है। इसमें मनोरिया का प्रकोप नहीं रहता। यह काफी अच्छी किस्म है। इस किस्म में चेंपा तथा सफेद मक्खी का प्रकोप बहुत कम देखने को मिलता है।

जलवायु

  • कुछ किस्में भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान वाराणसी में विकसित की है। काशीर अनमोल, काशी सुर्ख, उन्नत किस्म का विकसित किया है
  • दक्षिण भारत के किसानों के लिए भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान ने शंकर किस्म की प्रजातियां विकसित की है जिनमें अरखा मेघना, अरखा श्वेता, अरघा लोही, आदि किस्में विकसित की है
  • पंजाब के किसानों के लिए पंजाब कृषि विश्वविद्यालय ने किसानों के लिए काफी अच्छी किस्में विकसित की है जिनमें से पंजाब सुर्ख, साथ ही शंकर किस में भी विकसित की है। पंजाब हाइब्रिड - 1, यह किस्म काफी प्रचलित है।
  • महाराष्ट्र के किसानों के लिए महाराष्ट्र के कृषि विश्वविद्यालय में कुछ अच्छी किस्में विकसित की है। जिनमें से फुले ज्योति, फुले मुग्धा, आदि अच्छी किस्में किसानों के लिए विकसित की है।
  • पंतनगर से भी अच्छी किस्मों विकसित की है। जिनमें पंत मिर्च - 1, पंत मिर्च - 2, आदि उन्नत किस्में विकसित की है।

  • उन्नत किस्में - काशी अनमोल, काशी विश्वनाथ - उपज औसतन 220 - 250 क्विंटल /हे.

  • संकर किस्में - काशी अर्ली, काशी हरिता - उपज औसतन 300 - 350 क्विंटल /हे.

बीज की मात्रा

मिर्च का बीज आवश्यकतानुसार निर्धारित करते समय सावधानी बरतनी जरूरी है यह बीज भजन में काफी अलका होता है जिस की सही मात्रा का ध्यान रखना आवश्यक है मिर्च का बीज एक हेक्टेयर खेत के लिए अधिकतम डेढ़ किलो बीज पर्याप्त होता है। जो नर्सरी के लिए उपयोग किया जाता है।

बीच का उपचार बीज का चयन करने के बाद एवं जुताई से पहले बीच उपचारित करना जरूरी है बीज का उपचार करने के लिए सीरम बापस्टीन कैप्टन आदि दवाओं का प्रयोग किया जाता है जन्नत से मिर्च के बीज का उपचार कर सकते हैं बीज उपचारित करने से पहले बीच में नमी होना जरूरी है।

  • सीरम इस दवा का 250 ग्राम की मात्रा को 1 किलो बीच के साथ उपचारित कर सकते हैं।
  • बविष्टिन यह डेढ़ ग्राम की मात्रा 1 किलो बीज उपचारित करने के लिए पर्याप्त है।
  • कैप्टन इसकी 2 ग्राम मात्रा 1 किलो बीज उपचार के लिए पर्याप्त होती है।

मिर्च की नर्सरी की तैयारी

मिर्च की पौध पॉलीहाउस में भी तैयार कर सकते है। मिर्च का बीज उपचारित करने के बाद इस की नर्सरी तैयार की जाती है। 

  • जिसके लिए डेढ़ किलो बीज की मात्रा को 1 हेक्टेयर खेत की बुवाई करते हैं। 
  • जिसकी नर्सरी छोटी छोटी क्यारी में इसकी बुबाई की जाती है। 
  • क्यारी बनाते समय उनकी आकार का ध्यान रखना जरूरी है।
  • मिर्च की पौध तैयार करने के लिए क्यारी की चौड़ाई 1- 90 सेमी मीटर तथा लंबाई अधिकतम 3 - 5 मीटर तक आवश्यकतानुसार रख सकते हैं।
  • क्यारी बनाते समय ध्यान रखें कि, यह सतह से 15 सेमी ऊंची होनी चाहिए। एक क्यारी से दुसरी क्यारी की बीच में 30 - 40 सेमी की दूरी रखें।
  • क्यारी में किसी तरह का जलभराव एवं खरपतवार ना होने पाए। मिट्टी में गोवर की खाद एवं जीवाणु खाद तथा बालू की मात्रा, प्राकृतिक खाद का प्रयोग अवश्य करना चाहिए।

इसके बाद बीज की बुवाई कर सकते हैं। बीज की बुबाई क्यारी में लाइन से करें। बीच की बुवाई के बाद उसे ढकना आवश्यक है। तथा फव्वारा के माध्यम से बीच के ऊपर पानी की बौछार करते रहे। कुछ दिनों के बाद बीज की नर्सरी तैयार हो जाती है।

रोपाई विधि

मिर्च की रोपाई करने से पहले नर्सरी से मिर्च की पौध को सावधानीपूर्वक निकाले मिर्च की पौध की जड़ों को कोई नुकसान ना हो। तथा स्वस्थ एवं रोग मुक्त पौधों का चयन करें। तत्पश्चात 1% बाबस्तीन के घोल में मिर्च की पौध की जड़ों को 1 घंटे के लिए डाल दे। बाद में इन्हें रोपाई के लिए ले जाया जाता है।

अगर आप शिमला मिर्च की रोपाई कर रहे हैं तो रोपाई करते समय पौधे से पौधे की दूरी 60 से 65 सेंटीमीटर रखें तथा पौधे से पौधे की दूरी 40 से 50 सेंटीमीटर देखें। अगर सामान्य मिर्च की खेती कर रहे हैं तो लाइन से लाइन की दूरी 40 से 50 सेंटीमीटर तथा पौधे से पौधे की दूरी 30 से 40 सेंटीमीटर होनी चाहिए। इस विधि से रोपाई करना मिर्च की फसल को अच्छी ग्रोथ करता है। किसान ध्यान रखें कि मिर्च की रोपाई के बाद मिर्च की पौध में तत्काल हल्की सिंचाई अवश्य करें।

बुबाई का समय

मिर्ची की बुबाई साल में दो बार की जाती सकती है। मिर्च को जायद और दूसरी बार खरीफ के मौसम में बुवाई की जाती है। गर्मियों में मिर्ची की फसल (जायद) लगाने का उचित समय 15 फरवरी से 15 मार्च तक बुवाई कर लेनी चाहिए। बरसात (खरीफ)में मिर्च की फसल बुवाई का सही समय 15 जून से 15 जुलाई की मध्य अवश्य रोपाई कर लेनी चाहिए। यह इसकी बुवाई का सबसे उचित समय होता है।

खाद एवं उर्वरक

मिर्च की फसल में सबसे शुरुआती कार्यप्रणाली में खेती की तैयारी के समय 100 से १५० कुंतल देसी गोबर की खाद का प्रयोग करते हैं। साथ ही 60 किलो नाइट्रोजन, 50 किलो फास्फोरस, 50 किलो पोटाश को खेत की तैयारी के समय खेत में डाला जाता है। तथा पाटा से खेत समतल कर देते हैं। फसल में फूल आने की अवस्था में 60 किलो नाइट्रोजन एक या दो बार में 15 दिन के अंतराल में प्रयोग करना चाहिए। तथा सिंचाई कर देनी चाहिए।

सिंचाई की आवश्यकता

मिर्च की फसल में सिंचाई बहुत जरूरी है। पौध की रोपाई के बाद तुरंत सिंचाई आवश्यक है। अगर आप खरीफ मिर्च की बुवाई कर रहे हैं, तो बारिश होने की दशा में सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती। बारिश में देरी होने पर आवश्यकताअनुसार 12 से 15 दिन के अंतराल में हल्की सिंचाई फायदेमंद रहती है।

गर्मियों में मिर्ची की खेती करने पर शुरुआती सिंचाई 10 से 12 दिन में करनी चाहिए। तथा तापमान के बढ़ने के साथ ही मिर्ची में सिंचाई अंतराल में कमी कर देनी चाहिए। याद रखें कि गर्मी में मिर्च की फसल करने पर 5 से 7 दिन की अवधि पर मिर्च में हल्की सिंचाई कर देनी चाहिए। मिर्च की फसल में पर्याप्त नमी होना अत्यंत आवश्यक है।

फसल में खरपतवार की रोकथाम

खरपतवार एक ऐसी समस्या है, जो फसल के साथ स्वयं ही बढ़ते हैं। जो फसल के लिए अत्यंत हानिकारक होते हैं। ऐसी दशा में किसानों को मिर्ची की निराई गुड़ाई करनी चाहिए। मिर्च की फसल में हानिकारक कीटनाशक का प्रयोग फसल को हानि पहुंचा सकता है। ऐसे में 15 से 20 दिन के अंतराल में फसल की निराई गुड़ाई आवश्यक है।

मिर्च की फसल से लाभ

  • फसल की निराई गुड़ाई करने से फसल पर दुष्परिणाम नहीं होता।
  • खरपतवार पूर्ण तरह नष्ट हो जाता है।
  • मिट्टी में बायुसंचार सुगम हो जाता है।
  • मृदा में बायुसंचार की मात्रा बढ़ जाती है।
  • मृदा में पोषक तत्व ग्रहण करने की क्षमता का विकास होता है।
  • निराई गुड़ाई करने के साथ ही पौधों पर मिट्टी चढ़ाना आवश्यक है।
  • मिर्ची को मसाले के रूप में प्रयोग किया जाता है।
  • मिर्च को सब्जी एवं चटनी के रूप में अधिक प्रयोग किया जाता है।
  • मिर्ची में कई तरह के औषधि गुण पाए जाते हैं।

रोग निवारण

मिर्च की फसल में कई तरह के रोग लग सकते हैं। जिनमें पौधों में आद्र गलन होना सबसे प्रमुख रोग है। इसकी रोकथाम सबसे पहले करनी चाहिए। इस रोग के प्रभाव से पूरा पौधा गलकर खत्म हो जाता है। इसकी रोकथाम के लिए एप्रोन एएसडीएफ - 35 का प्रयोग करने से इससे निजात मिल सकती है। इसका प्रयोग करने के लिए 2 ग्राम प्रति किलो के हिसाब से बीज उपचारित करना चाहिए।

  • एन्थ्रेनोज - यह बीमारी मिर्च की फसल में समय के साथ आती है। इसके लिए डाइथेनियम 45 को 2 ग्राम प्रति लीटर घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर छिड़काव करना चाहिए।
  • उक्टा रोग - यह एक वायरस है। जिसके प्रभाव से पत्तियां सिकुड़ जाती है। धीरे-धीरे पूरा पौधा सिकुड़ कर खत्म हो जाता है। इसकी रोकथाम के लिए ऐसे पौधों को खेत से बाहर निकाल दें। साथ ही 1.1 मैटासिस्टाक्स और 1.2 डाइथेनियम 45 का घोल बनाकर पूरी फसल पर समान रूप से छिड़काव करते हैं। उक्टारोग से ग्रसित पौधों को फसल से निकालना बेहतर होता है।

मिर्च की तुड़ाई

फसल की तुड़ाई करते समय ध्यान रखें कि हरी मिर्च को मंडी में बेचने के लिए तोड़ रहे हैं, तो मिर्ची सामान्य अवस्था में ही निकाल लें। मिर्च में बीज बनने पर इसकी कीमत कम हो सकती है। यह प्रक्रिया सभी तरह की मिर्च पर लागू होती है।

उत्पादन

मिर्च का उत्पादन मिर्च की किस्मो के मुताबिक अलग हो सकता है। मिर्ची की पेपरिका किस्म 200 -250 कुंतल प्रति हेक्टेयर उपज देने वाली किस्म है। कुछ किस्मत छोटी होती है। जो खाने में तीखी होती हैं। जिसमें 100 कुंतल प्रति हेक्टेयर तक उत्पादन दे सकती हैं।

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