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ग्रीष्मकालीन मूंग की खेती के बारे में जानकारी

मूँग भारत में बोई जाने बाली एक प्रमुख फसल है। किसान साथियो मूँग की बुबाई का समय आ रहा है। इसकी खेती शीत कालीन फसल के बाद कर सकते है। इसका अच्छा भाव किसानो को मिल सकता है। जिससे कम लगत में अधिक उत्पादन प्राप्त कर सकते है। मूंग की खेती सामान्यतः मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, उत्तरप्रदेश आदि राज्यों में की जाती है। इसकी बुबाई ग्रीष्म कालीन एवं खरीफ सीजन में की जाती है। इसकी दाल पुरे भारत में पसंद की जाती है। तो जानते है की मूँग की खेती करने का तरीका क्या है।

गर्मियों में मूँग की खेती

मूंग की खेती उत्तर प्रदेश, भारत

किसान साथियो शीतकालीन फसल सरसो एवं आलू की फसल के बाद मूंग की खेती कर सकते है। ग्रीष्मकालीन मूंग की बुबाई 15 मार्च से 15 अप्रैल तक कर सकते है। इसकी खेती की सम्पूर्ण जानकारी आप यहाँ से ले सकते है। यहाँ पर गर्मियों में मूँग की खेती के बारे में जानेगे। मूंग एक प्रमुख दलहनी फसल है। इसकी खेती कम समय में अधिक मुनाफा देने बाली है। मूंग जायद में बोई जाने बाली प्रमुख फसलों में से एक है।

मूंग का सबसे अधिक उपयोग मूंग की दाल किया जाता है। पोस्टिक एवं बिटमिंस से भरपूर होता है। इसका उपयोग खाद्य सामिग्री के रूप में किया जाता है। इसे हलवा, दाल, कचौड़ी आदि बनाने में उपयोग किया जाता है। अधिक जानकारी के लिए आगे बने रहें। राजस्थान में मूंग की खेती लगभग 10-12 लाख हेक्टेयर में की जाती है।

मूंग में 25 % प्रोटीन , 55 - 60 % कार्बोहाइड्रेट , 1.3 % वसा पाया जाता है। मूंग ग्रीष्म एवं खरीफ मौसम में जल्दी पकने वाली फसल है। जायद में इसकी बुबाई मार्च-अप्रैल में की जाती है। यहाँ मूंग की खेती कैसे करें और इसके बोने के समय के बारे में पूरी जानकारी मिलने वाली है।

बुबाई से पहले खेत की तैयारी करें

अगर आप मार्च में मूंग की खेती करना चाहते हैं तो आपको गेहूं सरसों आदि फसल काटने के बाद से ही इसकी तैयारी शुरू कर देनी चाहिए। फसल को काटने के बाद दो बार मिट्टी पलट हल या कल्टीवेटर से खेत की जुताई करनी चाहिए। जैसे ही खेत की मिट्टी मुलायम हो जाए। तथा खेत में पाटा लगाकर खेत समतल कर दे। खेत में सही उर्वरीकरण के लिए मिट्टी की जाँच कराकर मृदा स्वाथ्य की को जाँचे।

फसल को काटने के बाद दो बार मिट्टी पलट हल या कल्टीवेटर से खेत की जुताई करनी चाहिए। जैसे ही खेत की मिट्टी मुलायम हो जाए। तथा खेत में पाटा लगाकर खेत समतल कर दे। यह जल्दी पकने वाली दलहनी फसल है। इसकी जड़ों में गाँठ पाई जाती है। इसके पौधे की लम्बाई लगभग 1.5 फ़ीट तक होती है। मूंग की खेती के लिए खेत की तैयारी करना बहुत जरूरी है। अच्छी तैयारी होने पर पौधो की संख्या अधिक होने की संभावना बढ़ जाती है। मूँग में दीमक की रोकथाम के लिए तैयार रहें।

मूंग की बुवाई

अगर आप मूंग की खेती करना चाहते है। तो इसकी खेती का समय का ध्यान रखना जरुरी है। इसका आपको पता होना चाहिए। मूंग का सही समय पर बुबाई करने से इसकी उत्पदकता लगभग 10- 20% की बृद्धि होती है। तथा इसमें अनेक कीट एवं बीमारियों से मुक्त रहने की क्षमता बिकसित होती है। मूंग की बुबाई का सही समय आने वाला है।

अगर आप ग्रीष्म कालीन (गर्मी) मूंग की खेती कर रहे हैं तो 15 अप्रैल से पहले बुवाई कर लेनी चाहिए। बुबाई के समय तापमान 25 .c से 35.c के आसपास तापमान उचित रहता है। बुबाई के लिए 60 -70cm. वर्षा बाले क्षेत्र सही रहते है। अगर आप खरीफ मूंग की बुबाई करने जा रहे है तो जून से 10 जुलाई तक इसकी बुबाई अवशय कर लेनी चाहिए। मूंग की बुवाई सुबह या शाम के समय ही करें। खरीफ मूंग की बुवाई करने का सही समय जून से जुलाई प्रथम सप्ताह उपयुक्त माना जाता है।

उन्नत किस्मों का चयन

मूंग की बहुत सी किस्म बाजार में उपलब्ध है। जो आपको अच्छी उपज दे सकती है आपको अपनी जमीन एवं स्थान की अनुकूलता के मुताविक किस्मो का चयन करना चाहिए। उन्नत किस्मों की अपनी अलग खासियत होती है। अगर आपके यहाँ शुष्क वातावरण है तो RMG - 62, RMG -268, Moong k- 268 आदि। यह किस्म शुष्क वातावरण एवं असिंचित छेत्र के लिए उपयुक्त मानी गयी है।  यह किस्मे 70 -80 दिनों में पकने वाली किस्म है। इसकी औसत उपज  8-10 क्विंटल / हेक्टेयर प्राप्त होती है। 

  1. जवाहर मूंग - 3 - यह 60 - 70 दिन में पकने वाली किस्म है यह किस्म ग्रीष्म एवं खरीफ दोनों मौसम में बोई जा सकती है यह 10 - 12 क्विंटल / हेक्टेयर की उपज प्राप्त होती है।
  2. जवाहर मूंग - 721 | k-851- यह 70 - 75 दिन में पकने वाली किस्म है यह किस्म ग्रीष्म एवं खरीफ दोनों मौसम में बोई जा सकती है यह 12 - 14 क्विंटल / हेक्टेयर की उपज प्राप्त होती है।
  3. पूसा विशाल- यह 60 - 65 दिन में पकने वाली किस्म है यह किस्म ग्रीष्म एवं खरीफ दोनों मौसम में बोई जा सकती  है यह 12 - 14  क्विंटल / हेक्टेयर की उपज प्राप्त होती है। HMU-16, PDM- 11, PDM- 81 यह 65 - 70 दिन में पकने वाली किस्म है यह किस्म ग्रीष्म एवं खरीफ दोनों मौसम में बोई जा सकती  है यह 8-12  क्विंटल / हेक्टेयर की उपज प्राप्त होती है। अपनी आवश्यकतानुसार किस्मो का चयन कर सकते है। 

बीज उपचार एवं मात्रा

कोई भी बीज बोने से पहले उसका उपचार करना बहुत जरूरी होता है। यह बीज में लगने वाले रोगों से बीज को बचाता है। गर्मी में मूंग करने के लिए 25 से 30 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। खरीफ में मूंग करने के लिए 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की मात्रा होनी चाहिए जरूरी है। 

इसमें कतार विधि का पयोग करना चाहिए |बुबाई से पूर्व बीज का उपचार करना जरूरी है। बीज उपचार के लिए कार्बनडाईजिम और कैप्टन 3 ग्राम मात्रा प्रति किलो बीज की दर से उपचार करें। उपचारित बीज को राइजोबियम कल्चर की 5 ग्राम मात्रा प्रति किलो बीज की दर से करे।

बुवाई का तरीका

मूंग की बुवाई कतार विधि से करना उचित रहता है। खरीफ एवं जायद में बुवाई के लिए कतार से कतार की दूरी 20 से 25 सेंटीमीटर तथा पौधे से पौधे की दूरी 10 से 15 सेंटीमीटर उपयुक्त मानी जाती है। मूंग को हल से बोना तथा कतार विधि से बुवाई करने से उत्पादन अच्छा मिलता है। जिसमें कतार से कतर की दूरी 30 से 40 सेंटीमीटर होनी चाहिए।

खाद एवं उर्वरक की मात्रा

फसलों को अपनी वृद्धि के लिए उर्वरक की निरंतर आवश्यकता होती है। इसकी मात्रा एवं दर भूमि मैं उपस्थित पोषक तत्वों की मात्रा पर निर्भर करता है। इसके साथ ही फसल को नाइट्रोजन की आवश्यकता निरंतर रहती ही है। साथ ही ध्यान रखे की खेत में ढेले न हो। खेत में पर्याप्त नमी का होना बहुत जरुरी है अगर खेत में कम नमी है तो सिचाई करना जरुरी है। तैयारी करते समय खरपतबार का निस्तारण अवश्य कर ले। साथ ही 5 क्विंटल /हेक्टेयर गोवर की खाद का प्रयोग लाभप्रद होता है।

फसल को जरूरत होने पर नाइट्रोजन के साथ बाकी पोषक तत्व को उपलब्ध कराना फसल उत्पादन के लिए बहुत जरूरी है। मूंग की फसल में खाद की जरूरत की बात करें तो गोबर की खाद एवं जैविक खाद को फसल में किसी भी अवस्था में दे सकते हैं। यह प्राकृतिक खाद होती है। जो फसल को कोई हानि नहीं पहुंचाती। गोबर की खाद एवं जैविक खाद हमें बिबाई से पूर्व ही मिट्टी में मिला देना चाहिए।अगर नाइट्रोजन की बात करें तो मूंग की फसल में नाइट्रोजन की कमी होने पर उसके लक्षण दिखाई दे |

तो किसान यूरिया का प्रयोग कर सकते हैं। इसमें आप दानेदार यूरिया या लिक्विड नैनो यूरिया का प्रयोग कर सकते हैं नैनो यूरिया छिड़काव विधि से फसल को प्राप्त होता है। मूंग में नाइट्रोजन, फास्फोरस,पोटास एवं सल्फर का प्रयोग जाता है। फसल बुबाई के समय उर्वरको का प्रयोग कर सकते है।

  1. नाइट्रोजन             20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर
  2. फास्फोरस            40 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर
  3. पोटाश                 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर
  4. सल्फर                 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर

इसमें नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटास को बुवाई के समय प्रयोग करना चाहिए। सल्फर का प्रयोग फूल बनने की अवस्थ में कर सकते है।

खेती का जैविक तरीका

कुछ समय पहले किसान रासायनिक उर्वरको की बजाय जैविक खाद पर निर्भर रहता था। किसान लबे समय से जैविक खाद का प्रयोग कर रहा है। जिसे जैविक खेती कहते है। फसल के अधिक उत्पादन के लालच में जैविक खेती छोड़कर रासायनिक उर्वरको पर निर्भर होने लगा। 

इसके प्रयोग से उत्पादन बढ़ने के साथ पर्यावरण प्रदूषण भी बढ़ने लगा। जिससे मनुष्य के जीवन पर इसका असर होने लगा।  लेकिन अब धीरे धीरे किसान जैविक खेती को अपना रहा है। जैविक विधि से मूंग की खेती करने पर खरीफ में 8-12 क्विंटल \ हेक्टेयर तथा जायद में 6-9 क्विंटल \ हेक्टेयर की उपज प्राप्त होती है।

सिचाई की आवश्यकता

खरीफ में मूंग की उन्नत खेती के लिए सिंचाई की आवश्यकता के साथ जल निकासी की भी जरूरत होती है। ज्यादा पानी फसल को हानि पंहुचा सकता है अगर फसल में पानी भर जाय तो पानी की निकासी जरुरी है। जायद में मूंग करने पर जल निकासी की आवश्यकता नहीं होती। इसमें 10 से 15 दिन के अंतराल पर सिंचाई कर देनी चाहिए। फसल पर फूल आने तथा फली बनते समय पानी की कमी नहीं होनी चाहिए।

इस समय फसल को अधिक पानी एवं पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है। जिससे उत्पादन पर असर दिखता है। वर्षा ऋतू में बोने वाली फसल में जल निकासी की आवश्यकता होती है वर्षा ऋतु में मूंग की खेती करने पर सिचाई की जरूरत नहीं होती। परंतु फूल आने व फली बनते समय खेत में नमी होना जरूरी है। अगर खेत में नमी कम है तो हल्की सिंचाई कर देना ठीक रहता है।

खरपतवार से मुक्त रखें

खरपतवार मुक्त मूंग, उत्तर प्रदेश, भारत

मूंग की फसल में खरपतवार नियंत्रण होना जरूरी है। इसके लिए निराई गुड़ाई एक बेहतर विकल्प हो सकता है। निराई गुड़ाई खरपतवार नियंत्रण के साथ फसल बृद्धि में अहम भूमिका निभाता है। इससे 10-15 % की अतिरिक्त बृद्धि देखि जा सकती है। रासायनिक दवाये फसल में जहर का काम करती है। इसका उपयोग सावधानी एवं सही मात्रा में होना अनिवार्य है। खरपतवार होने से कीटों का प्रकोप बढ़ जाता है। जो पौधे को नष्ट कर सकते हैं।

मूँग की खेती में दूब घास, मोथा, लहसुआ एवं चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार नियंत्रण के लिए पेन्डीमैथिलीन की 700 ग्राम मात्रा को प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई के 3 दिन तक उपयोग कर सकते हैं। एमेजे थापायर 100 gm की मात्रा बुबाई के २० दिन बाद प्रति हे , न्यूज़ालोफाप इथायन 40-50 gm मात्रा को बुबाई के 15 दिन बाद प्रयोग करे। यह बांस एवं चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार ओं को नियंत्रण करता है।

फसल में कीट नियंत्रण करें

कीट किसी भी फसल को सबसे ज्यादा हानि पहुंचने वाले ऐसे कीड़े होते है जो पूरी फसल के लिए बहुत बड़ा खतरा होते है। मूंग की फसल में लगने वाले प्रमुख कीट माहू, कंबल कीट, फली भृंग आदि कीटों के साथ ही रस चूसक कीट भी मूंग की फसल को भारी नुकसान पहुंचाते हैं। यह कीट पूरी खेती को नष्ट कर देते हैं। 

इसलिए समय रहते इसका नियंत्रण बहुत जरूरी है। मूंग की पत्ती को खाने वाले कीटो के लिए क्विनॉलफास की 1.5 ली. या मोनोक्रोटोफॉस की 750 ml मात्रा एवं रास चूसक कीड़ो के लिए डाई मिथोएट 1000ml को 600 लीटर पानी में या इमिडाक्लोप्रीड 17.8 sl प्रति 600 लीटर पानी में 125ml दबा के हिसाब से प्रति हेक्टेयर छिड़काव करना चाहिए।

फसल को रोगों से दूर रखें

किसी भी फसल में रोग एक प्रमुख समस्या है फसल में कई तरह के रोग आते है। रोग आने पर फसल बृद्धि रुक जाती है। पौधा कमजोर हो जाता है। इसके साथ ही उत्पादन में गिरावट देखि जा सकती है। मूंग की फसल में पीत रोग, पर्ण रोग एवं भूतिया रोग का खतरा ज्यादा होता है। इन रोगों की रोकथाम के लिए रोग निरोधी किस्म का प्रयोग फसल को रोगो से बचा सकता है।

मूँग में रोग नियंत्रण वाली किस्म हम-1,पंत मूंग-1, पंत मूंग- 2, TJM-3, जेएम 727 आदि का उपयोग करना चाहिए। पित रोग सफेद मक्खी द्वारा फैलता है। इसके नियंत्रण हेतु मेड़ता सिटी 25 सीसी 750 से 1000 ml का 600 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर छिड़काव करे। इसका छिड़काव दो बार 15 दिन के अंतराल पर करें। अगर मूंग में फफूंद जनित रोगों  की आशंका दिखाई दे तो इसके नियंत्रण हेतु मेटासिटॉस्क 25 ईसी 750 -1000 ml, 600 ली. पानी में घोल प्रति हेक्टेयर २ बार छिड़काव करे।

फफूदी रोगो के लिए डायइथेन m45 को 2.5 एमएम प्रति लीटर या कार्वनडाइजिम डाइइथेन m45 को  मिश्रित दवा बनाकर 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर खुले मौसम में छिड़काव करें। आवश्यकतानुसार 10 से 15 दिन बाद फिर से दुबारा स्प्रे करें।

मूंग की कटाई

मूँग की फसल परिपक्व होने के बाद अब मूंग को तोड़ने और काटने का काम आता है। इसे पकने में लगभग 70 दिन तक का समय लग सकता है। मार्च में बोने वाली मूंग मई में पककर तैयार हो जाती है। और जुलाई में बुबाई वाली मूँग को अक्टूबर में कटाई कर सकते हैं। मूंग के पकने की अवस्था में इसकी फलिया काली हो जाती है।

यह अवस्था इसकी कटाई का सही समय होता है। ज्यादा पकने पर यह अपने आप चटक जाती हैं और भूमि पर बिखर जाती है। जिससे उत्पादन में कमी आती है। मूंग की तुड़ाई लगभग 3 बार तक कर सकते हैं। इसे 1 या 2 दिन छांव में सुखाकर डंडे से पीट कर या बैलों को चलाकर इसकी गहाई कर सकते हैं।

मूँग की उत्पादकता

सही समय पर मूंग की बुबाई करने तथा उन्नति तरीके का उपयोग करने पर लगभग 10 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उत्पादन मिल सकता है। सहायक फसल जैसे उड़द या गन्ना के साथ इसकी खेती करने पर उत्पादन 3 से 5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक मिलता है। अगर आप अपने घर पर इसका भंडारण करते हैं तो इसे अच्छी तरह सुखाना जरूरी है। अच्छी तरह सुखाने के बाद ही इसका भंडारण करना चाहिए।

मूँग की खेती करते समय इन बातो का ख्याल रखें

  • मूंग बोते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए
  • स्वास्थ्य एवं प्रमाणित बीज का चयन करे।
  • उर्वरकों का प्रयोग करने से पहले मिट्टी की जांच जरूर करा ले
  • मृदा परीक्षण के मुताबिक उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए
  • उर्वरक एवं खरपतवार नाशक कीटनाशक रोग नाशक दबाएं प्रमाणित एवं भरोसेमंद दुकान संस्था से ही खरीदें
  • मूंग की बुवाई खरीफ में नाली पद्धति से करें
  • मूंग की फसल में खरपतवार एवं रोग कीटों का नियंत्रण समय पर कर ले।

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