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संधारणीय कृषि: एक जिम्मेदार भविष्य का निर्माण

सतत कृषि का मतलब है फसल को इस तरह उगाना जो अभी और भविष्य में भी पर्यावरण के लिए अनुकूल हो, किसानों के लिए सही हो, और समुदायों के लिए सुरक्षित हो। हानिकारक रसायनों का उपयोग करने या मिट्टी को नुकसान पहुँचाने के बजाय यह फसलों को बदलने, खाद का उपयोग करने और पानी बचाने जैसे प्राकृतिक तरीकों पर ध्यान केंद्रित करता है। यह दृष्टिकोण न केवल प्रकृति की रक्षा करने में मदद करता है, बल्कि किसानों की लागत कम करके और उन्हें एक स्थिर आय अर्जित करने में भी मदद करता है। इसका मतलब यह भी है कि हम जो खाना खाते हैं वह ताज़ा, स्वस्थ और अधिक जिम्मेदारी से उत्पादित हो सकता है। ऐसी दुनिया में जहाँ जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण और खाद्य असुरक्षा वास्तविक समस्याएँ हैं, टिकाऊ कृषि एक बेहतर, दीर्घकालिक समाधान प्रदान करती है जो सभी को लाभान्वित करती है - हमारी फसल को उगाने वाले लोगों से लेकर इसे खाने वाले लोगों तक। छात्रों सहित युवा लोगों को यह सीखकर महत्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए कि उनका भोजन कहाँ से आता है और ऐसे विकल्प चुनें जो एक स्वस्थ ग्रह का समर्थन करते हैं। संधारणीय कृषि क्या है? मृदा अपरदन, जलवायु परिवर्तन और खा...

गेहूं की वैज्ञानिक खेती से बढ़ेगी पैदावार

HOW TO DO WHEAT FARMING, गेहूं की वैज्ञानिक खेती कैसे करें

गेहूं भारत की प्रमुख खाद्यान फसल है। इसे सर्वाधिक उत्तर प्रदेश, राजस्थान, बिहार, मध्य प्रदेश, हरियाणा आदि राज्यों में वोया जाता है। इसकी रोटी रसोई की प्रमुख खाद्य सामग्री है। जिसमें प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट उच्च मात्रा में पाया जाता है। यह शरीर मेंऊर्जा का संचार करती है। भारत में इसकी फसल काफी समय से की जा रही है। गेहूं का भूसा दुधारू पशुओं को सूखा चारा के रूप में दिया जाता है।

भूसे को पशु बड़े चाव से खाते हैं। उनका मुख्य आहार भूसा है। कुछ समय पहले पशुपालक गेहूं की खेती पारम्परिक तरीके से करते थे। किसान अपने पशुओं की मदद से खेत की जुताई, बुबाई और प्रबंधन का कार्य करते थे। खेती में पशुओं का बड़ा योगदान रहा है इस समय भारत में गेहूं की वैज्ञानिक खेती को किसान अपना रहे हैं जो उन्हें अच्छा उत्पादन दे रही है।

गेहूं की खेती करने की विधि

गेहूं रवि सीजन की प्रमुख फसल है। इसकी खेती भारत के कई राज्यों में की जाती है। इसकी बुवाई से पहले खेत की तैयारी करना जरूरी है। खेत में पर्याप्त नमी होना आवश्यक है। साथ ही खाद एवं उर्वरक की सही मात्रा देनी चाहिए। गेहूं बुवाई के लिए प्रचलित विधि का प्रयोग करें। गेहूं में पानी की देरी न होने दें।

खाद का उपयुक्त प्रयोग करें। खरपतवार की निगरानी एवं निस्तारण का प्रबंध करें। आवश्यकता होने पर अतिरिक्त उर्वरकों को अपनायें। बेहतर उपज प्राप्त करने के लिए पोषक तत्वों का सही प्रबंधन जरूरी है। गेहूं की कटाई करते समय सावधानी रखनी चाहिए। इससे बालियों की हानि होती है। उत्पादन गिरता है।

बालियों से गेहूं निकालने के लिए स्थानीय थ्रेसर मशीन का प्रयोग करें। जो आपको गेहूं और भूसा अलग करके देता है। गेहूं का भंडारण स्वच्छ एवं सुखी जगह पर करें। गेहूं को घुन से बचाए, गेहूं की खेती करने के लिए सर्वोत्तम पद्धतियां अपनाकर गेहूं का उत्पादन बढ़ा सकते हैं।

खेत की तैयारी

गेहू की बुबाई करने के लिए खेत में पर्याप्त नमी बनाए रखें। अगर ऐसा नहीं है तो उपज में हानि हो सकती है। गेहूं बबाई के लिए 6.5 से 7.5 PH वाली बलुई दोमट एवं दोमट मटियार मिट्टी उपयुक्त रहती है। जिसे दो बार हैरों से व दो बार देसी हल या कल्टीवेटर से 5 से 6 इंच गहरी जुताई करनी चाहिए। खेत की जुताई के समय 10 से 12 क्विंटल प्रति हेक्टेयर गोबर की खाद एवं 100 किलो प्रति हेक्टेयर डीएपी उर्वरक बुबाई के समय देने से अंकुरण समृद्ध होगा। अंत में पटा लगाकर खेत कोभुरभुरा एवं समतल करना जरुरी हैं।

बीज उपचार विधि

गेहूं बुबाई से पहले बीज उपहार जरुरी है। बीज को फफूँदी से बचाने के लिए 2 ग्राम बाबिस्टीन/ किलो बीज की दर से बीजोपचार करें। गेहूँ में दीमक से बचाने हेतु 60ML क्लोरपाइरीफोस प्रति 40 किलो बीज या 200ML इथिनोल प्रति 40 किलो बीज की मात्रा से उपचारित करें। गेहूं के बीजोपचार के लिए 4 पैकेट एजेटोवेक्टर और 4 पैकेट फास्फोटिका 40 किलो बीज के लिए पर्याप्त है। बीज शोधन करते समय सबसे पहले कीटनाशक, फफूंदी नाशक और आखिर में जैविक खाद से बीज उपचार विधि को अपनाएं। 

बीज बुवाई का सही तरीका

सफल एवं अधिक उत्पादन लेने के लिए समय से बुवाई होना जरूरी है। उनकी किस्म की आधार पर बुवाई की समय अवधि निर्धारित होती है। गेहूं की  अगेती किस्म की बुवाई 20अक्टूबर से 15नवंबर तक करनी चाहिए। गेहूं की बुवाई के समय अधिकतम तापमान 24 डिग्री सेंटीग्रेड से अधिक नहीं होना चाहिए। अधिक तापमान में गेहूं के जमाव में बाधा उत्पन्न कर सकते हैं।

गेहूं की अगेती व सामान्य विधि से बुवाई करने पर 100 से 110 किलोग्राम बीज प्रति हैक्टेयर की आवश्यकता होती है। (1 बीघा में अधिकतम 12 किलो गेहूँ पर्याप्त होता है) गेहूँ को उपचारित करके बोना चाहिए। उपचारित बीज में रोग व हानिकारक विषयों से बचाव होता है। अगर आप पछेती किस्म लगा रहे हैं तो आपको 150 किलो प्रति हेक्टेयर गेहूं के बीज की जरूरत हो सकती है। जिसे दिसंबर तक लगा सकते हैं। गेहूं के बीज को चार सेंटीमीटर से अधिक गहरा नहीं बोना चाहिए जिसे 20 सेंटीमीटर दूरी की पंक्तियों में बुवाई करनी चाहिए।

फसल में सिंचाई प्रवंधन

गेहूं के पौधे की जड़े 5 से 10 सेंटीमीटर तक गहरी होती है जो मिट्टी की ऊपरी सतह के नजदीक रहती है। गेहूं की जड़ें अधिक गहरी न होने के कारण इसमें हर 20 से 25 दिन के अंतराल पर पानी की आवश्यकता हो सकती है।इसमें कम लेकिन जल्दी पानी की आवश्यकता होती है।

अगर गेहूं की बुवाई पर्याप्त नमी में नहीं की गई है। तो पहला हल्का पानी 25 दिन में, दूसरा पानी 60 दिन में, तीसरा पानी 85 दिन में अंतिम पानी 100 दिन में देना चाहिए। लेकिन भुरभुरी मिट्टी में बुवाई करने पर इसमें 20 दिन बाद पहला पानी लगना चाहिए। लेकिन पानी की मात्रा सीमित रखें। पहले पानी के साथ गेहूं की फसल में नाइट्रोजन की आधी मात्रा देने से फसल में अधिक कल्ले विकसित होने में सहायक हैं।

गेहूं की उन्नत किस्में

देश में गेहूं की कई किस्में हैं जो अपने क्षेत्र और जलवायु के लिए उपयुक्त हैं। ऊंचे एवं पहाड़ी क्षेत्रों के लिए पूसा किरण एचएस-542, हिमाचल गेहूं एचपीडब्ल्यू-360 तथा 15 नवंबर तक बुआई के लिए एचपीडब्ल्यू-349, एचएस-507, हिमालय गेहूं 2, एचपीडब्ल्यू-368 प्रमुख हैं।

बिहार में गेहूं की किस्म HP 2967, सबौर समृद्धि, DBW-187, DBW-139 किस्में 15 नवंबर तक बोने के लिए उपयुक्त हैं. यदि आप देर से बुआई कर रहे हैं तो गेहूं की सबोर श्रेष्ठ, डीबीडब्ल्यू-107 और डीबीडब्ल्यू-14 किस्में देर से बुआई के लिए उपयुक्त मानी जाती हैं।

उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में अधिकतम 15नबम्बर तक बुबाई करने के लिए HD 2967, UP-2382, HUW-468, PBW-17, PBW-314, WH-1105, HUW-510, K-9423, K-424, HD-2888, मालवीय-533, केआरएल-213, केआरएल-210 गेहूं की किस्म लगाई जा सकती है।

गेहूँ की पछेती किस्म

WH-1021, WH-1124, DBW-90, DBW-107, DBW-173 पछेती किस्मे है जिन्हे 15 दिसम्बर तक जरूर लगा दे।

फसल में खाद एवं उर्वरक प्रवंधन

खेत में संतुलित उर्वरकों का सही प्रवंधन करना आवश्यक है। गेहूं में उर्बरीकरण करने से पहले मृदा परीक्षण करना आवश्यक है। जिससे की सही मात्रा में पोषक तत्वों का प्रबंधन हो सके। गेहूं की संपूर्ण फसल में 150 किलो यूरिया (नाइट्रोजन) को दोबार में प्रयोग करें।

गेहूँ की बुबाई के समय 60 किलो फास्फोरस, खेत तैयारी के समय 40 किलो पोटाश और 30 किलो सल्फर प्रति एकड़ की आवश्यकता होती है। गेहूँ की फसल में इफको सागरिका अच्छा काम करती है।जिप्सम भी मृदा में जरुरी है। फसल में दो से तीन बार यूरिया का प्रयोग कर सकते है। पहली सिचाई के दौरान गेहूं में नाइट्रोजन की आधी मात्रा का प्रयोग करें।

पछेती गेहूँ में उर्वरक प्रबंधन

फसल में उचित मात्रा में पोषक तत्व उपलब्ध कराये। उर्वरको का अधिक प्रयोग लाभ की जगह हानि कर सकता है जिससे आपकी जेब पर बोझ बढ़ेगा।फसल में उर्वरक प्रवंधन से पहले मिट्टी की जांच कराकर निर्णय ले। गेहूं में खाद की संतुलित मात्रा नाइट्रोजन 60 किलो, फास्फोरस-24 किलो, पोटास-12 किलो, डी ए पी 50 किलो और २० किलो एन ओ पी के साथ 10 किलो ज़िंक प्रति हेक्टेयर अलग से मिटटी में मिलाये। पछेती गेहूं को अधिक देर से न बोएं।

फसल में खरपतवार नियंत्रण

फसल के साथ खरपतवार उगते हैं। समय रहते इनका नियंत्रण जरूरी है। यह फसल पर अपना प्रभाव दिखने रखते हैं। गेहूं की फसल में मुख्य रूप से सख्त दतने वाले एवं सकरी पत्ते वाले खरपतवार होते हैं। जिनमें जंगली घास, बथुआ, मौथा, मकोय, हिरनखुरी आदि खरपतवार प्रमुख हैं। इनका समय रहते निस्तारण करना जरूरी है।खरपतवार निवारण के लिए खुरपी की सहायता से खेत से बाहर निकाल देना चाहिए। बुवाई की 25 दिन के बाद पेंडिमथिन का प्रयोग करना चाहिए। यह खरपतवार नियंत्रण में सहायक है।

गेहूँ कटाई, मढ़ाई एवं भंडारण प्रक्रिया

गेहूं की कटाई बालिया परिपक्व होने की अवस्था में करते हैं। गेहूं की फसल 120 दिन की खेती है। जिसमें तीन से पांच बार पानी की आवश्यकता होती है। किन्हीं परिस्थितियों में दो बार सिंचाई करने पर भी गेहूं का उत्पादन ले सकते हैं। गेहूं कटाई के समय बालिया में लगभग 20% कमी हो सकती है। इसे 2 दिन के लिए खेत में सूखने के लिए छोड़ना है। इसका बंडल बनाते समय यह सुखा होना चाहिए। साथ ही तीन-चार दिन के लिए खेत में इकट्ठा करके छोड़ दें। अनाज निकालने के लिए थ्रेसर का प्रयोग किया जाता है। अनाज भंडारण करते समय सुनिश्चित करें कि गेहूं का दाना पूरी तरह सुखा हो। जिससे अधिकतर समय तक भंडारा में रखा जा सकता है।

गेहूं के लिए सटीक कृषि उपकरण

समय रहते गेहूं की बुवाई करना जरूरी है। खेत में विधिवत बुबाई करने से देरी हो सकती है। इसके साथ ही धान की पराली भी किसान के सामने एक समस्या है। किसान फसल अवशेषों का प्रबंध करने के अलावा जल्दी बुबाई करने के लिए बिना जुताई किए गेहूं की बुवाई कर सकते हैं। जिसे शून्य जुताई से गेहूं की खेती करना कहते हैं। इस कार्य को करने के लिए जीरो टिलेज मशीन का उपयोग कर सकते हैं।

यह कृषि उपकरण ऐसी जगह फायदेमंद हो सकता है जहां किसान फसल अवशेषों के लिए युक्तियां ढूंढ रहे हैं। इस समस्या के समाधान के लिए वैज्ञानिकों ने जीरो टिलेज मशीन बनाई है। यह मशीन धान के बचे ठूठ के बीच गेहूं की बुवाई करने में सक्षम है। यह मशीन 7 कतर वाली, 9 कतर वाली और 11 कतार में बुवाई कर सकती है। अपनी आवश्यकता अनुसार मशीन का चयन कर सकते हैं। यह मशीन एक सीड ड्रिल की तरह काम करती है। जिसे ट्रैक्टर के पीछे लगा दिया जाता है। यह खेत में बुवाई करते समय धारीनुमा संरचना बनती है। जो इसके बीच लाइन से गेहूं की बुवाई करती है।

यह बीज की मात्रा को 50% तक कम कर सकती है। जीरो टिलेज मशीन से गेहूं की बुवाई करने पर 40 किलो बीज प्रति एकड़ की आवश्यकता हो सकती है। यह मशीन पराली के बीच से बुवाई कर सकती है। खेत में पराली उर्वरक का काम करती है जो कि बाद में खेत में ही सड़ जाती है। जो खेत में नाइट्रोजन को बढ़ाती है। जीरो टिलेज मशीन से प्रति घंटे 3 से 4 लीटर डीजल का खर्च एवं एक एकड़ खेत की बुवाई की जा सकती है। यह मशीन जल्दी गेहूं बुवाई में सबसे सटीक उपकरण है।

गेहूं में पाले से बचाव

ठंड के मौसम में गेहूं की फसल पर पाला पड़ सकता है। जिसका असर फसल उत्पादन पर पड़ सकता है। खेत में नमी की कमी गेहूं की खेती में पाले का मुख्य कारण है। अगर खेत में नमी कम है तो हल्की सिंचाई करने से पाले का असर कम हो सकता है। इसका फसल पर कोई असर नहीं होता। इसके अलावा, छिड़काव से पाले से बचाव में मदद मिल सकती है। यह आम तरीका गेहूं को पाले से बचाने में मदद करता है। लंबे समय तक चलने वाली ठंडी हवाओं से भी गेहूं को नुकसान हो सकता है। इसलिए पाले से बचाव के लिए नमी की जरूरत होती है। अगर खेत में अतिरिक्त पानी जमा हो जाए तो जलभराव से फसल को नुकसान हो सकता है। खेत से अतिरिक्त पानी निकाल दें। फिर जिंक सुपर फॉस्फेट डालना चाहिए। जब ​​गेहूं पीला पड़ने लगे तो जिंक का इस्तेमाल करना चाहिए। किसानों को नियमित रूप से फसलों की निगरानी करनी चाहिए। अगर फसल पर पाले का बहुत ज्यादा असर हो तो स्थानीय विशेषज्ञ से बात करें।

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