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अगर आप अच्छा फसल उत्पादन लेना चाहते है तो मिटटी की उर्वरक क्षमता बढ़ाने के उपाय कर लेना चाहिए। अगर आप अच्छी फसल के लिए मिट्टी की उर्वरक क्षमता बढ़ाने के आसान तरीके खोज रहे है, तो यहाँ पर इसके बारे में जानकारी दी गयी है। उपजाऊ मिट्टी में सही मात्रा में आवश्यक पोषक तत्व होते हैं, जैसे नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटेशियम, कैल्शियम, मैग्नीशियम, सल्फर और ट्रेस तत्व, जो पौधों की वृद्धि और विकास के लिए आवश्यक हैं।
मिट्टी की उर्वरता विभिन्न प्रकार के कारकों से प्रभावित होती है, जिसमें जलवायु, स्थलाकृति, मूल सामग्री, समय, जीव और मानव गतिविधि शामिल हैं। मिट्टी की उर्वरता को कार्बनिक पदार्थों को जोड़ने, उर्वरकों को लागू करने, फसलों को घुमाने और मिट्टी के कटाव और संघनन को प्रबंधित करने जैसी प्रथाओं के माध्यम से सुधारा जा सकता है।
मृदा की उर्वरता बढ़ाने के उपाय
स्थायी कृषि और खाद्य सुरक्षा के लिए मिट्टी की उर्वरता बनाए रखना आवश्यक है, क्योंकि यह सीधे फसल की उपज और गुणवत्ता को प्रभावित करता है। उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग और खराब मिट्टी प्रबंधन प्रथाओं से समय के साथ मिट्टी का क्षरण और उर्वरता में कमी आ सकती है, जिससे मिट्टी के संसाधनों का सावधानीपूर्वक प्रबंधन करना महत्वपूर्ण हो जाता है।
अगर आप खेती करते हैं तो आप खेत की मिट्टी की अहमियत अच्छी तरह समझते होंगे। यह मिट्टी पूरी फसल का आधार होती है। ऐसे में अगर खेत की मृदा की उर्वरता कम हो जाए तो उससे फसल की गुणवत्ता एवं उत्पादकता पर सीधा असर पड़ता है। इसलिए हम मिट्टी की उर्वरक क्षमता बढ़ाने के लिए सबसे अच्छे तरीकों का प्रयोग करते हैं तथा अच्छी फसल प्राप्त करने के प्रयास किए जाते हैं।
मृदा की उर्वरक क्षमता बढ़ाने वाले कारक
- मिट्टी की उर्वरा क्षमता बढ़ाने के लिए फसल चक्र का पालन करें
- खेत की जुताई के बाद खेत कुछ समय के लिए खाली छोड़ जाएं
- समय-समय पर हरी खाद की बुवाई करते रहे तथा उसे खेत में ही सड़ने दें। ढैंचा की हरी खाद को सर्वोत्तम माना गया है। जिसमें नाइट्रोजन, फास्फोरस, सल्फर, पोटाश की कुछ मात्रा की कमी को पूरा किया जा सकता है।
- खेत की मिट्टी की उर्वरता घटने का कारण हानिकारक उर्वरको का प्रयोग है। मृदा में रासायनिक उर्वरको का प्रयोग कम करने से मृदा स्वास्थ्य में सुधार संभव है।
- उर्वरता बढ़ाने के लिए ऐसी फसलों का चयन करना चाहिए जो अधिक पत्तेवाली है जैसे सरसों, कपास आदि।
- अपने खेत में दलहनी फसलों को भी जगह दें
- कीटनाशकों के बढ़ते प्रयोग सी मृदा स्वास्थ्य सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है। संभव हो तो इसमें कमी लाएं।
- समय-समय पर गोबर की खाद 8 से 10 ट्राली प्रति हेक्टेयर खेत में डालना चाहिए।
- फसल में उर्वरकों के स्थान पर जैविक खाद, वर्मी कंपोस्ट, स्लरी आदि का प्रयोग करें।
- खेत में होने वाले खरपतवार आदि को खेत में जुताई करके दवा देना चाहिए।
- बरसात के पानी को खेत से निकलने से रोकें।
अगर मिट्टी की उर्वरक क्षमता बढ़ जाए तो फसल का उत्पादन भी बढ़ सकता है। अच्छी फसल के लिए मिट्टी की उर्वरक क्षमता बढ़ाने के तरीके हैं जिनके बारे में आज बात करेंगे। अगर आप उर्वरक क्षमता बढ़ाना चाहते हैं तो इसके लिए कुछ तरीके उपयोग में ला सकते हैं।
मिट्टी की उर्वरक सम्मिलित करें
मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ाना फसल से अच्छा उत्पादन लेने के लिए बहुत जरूरी है। आप मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने के सबसे अच्छे तरीके अपनाकर इससे निजात पा सकते हैं।
- फसल चक्र - अगर आप एक ही प्रकार की खेती कर रहे हैं, तो आपको अपनी फसल चक्र को बदलने की जरूरत पड़ सकती है। फसल चक्र ऐसी प्रक्रिया है। जिसमें फसल को बदलते रहना चाहिए। मान लीजिए अपने गेहू की फसल बोई है, तो अगली बार आपको सरसो की फसल बोनी चाहिए। यह एक आसान व अच्छा तरीका है। जो आपको मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ाने में मदद कर सकता है। इसमें यह भी संभव है कि गेहूं की अपेक्षा सरसों को कम पानी की आवश्यकता होती है।
- हरी खाद - किसान अपने खेत में समय-समय पर हरी खाद की खेती भी करते हैं। हरी खाद मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ाने का अच्छा तरीका है। ढैंचा की खेती से मृदा में नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश आदि की मात्रा में वृद्धि संभव है। जो फसल को आवश्यकतानुसार मृदा से प्राप्त होता रहता है। ढैंचा की खेती का प्रयोग काफी लंबे समय से हरी खाद के रूप में किया जाता है। इसमें हरी पत्तियों की संख्या बहुत अधिक होती है। जो खेत की मृदा में सड़कर वायु संसार को सुगम बनाती है तथा मिट्टी भुरभुरी हो जाती है। यह सभी तरह की फसलो के लिए उपयोगी है।
- रासायनिक उर्वरकों से परहेज - किसान अधिक उत्पादन लेने के लिए मृदा में रासायनिक उर्वरकों का अधिक प्रयोग कर रहा है। यह केमिकल युक्त उर्वरक खेत की मिट्टी की सेहत पर बहुत गहरा असर डालते हैं। यह उर्वरक मृदा से किसान के मित्र कीटों के लिए हानिकारक साबित हो रहे हैं। तथा मृदा के नीचे जाकर इकट्टा हो रहे हैं। जो लंबे समय तक अपना प्रभाव डालते हैं। किसान मित्र सीटों की संख्या समाप्त हो गई है। यह रासायनिक युक्त उर्वरक खेती के साथ मानव जीवन पर डालते हैं। इसलिए इन उर्वरकों से किसान को परहेज करना चाहिए।
- कीटनाशक दवाओं से परहेज - अगर आप फसल उगाते हैं, तो समय के साथ उसमें रोग व कीटों का साथ देखने को मिलता है। यह कीट फसल को काफी हानि पहुंचाते हैं। यहां तक की पूरी फसल को खत्म करने की क्षमता रखते हैं। ऐसे में किसानों कीटों की रोकथाम के लिए कीटनाशक दवाओं का प्रयोग करते हैं। जिससे स्तेमाल करने से कुछ ही समय में कीट खत्म हो जाते हैं। इस दवा का असर इतना होता है कि कुछ ही समय में सभी कीट नष्ट हो जाते हैं। इसके साथ ही मृदा पर भी इसका प्रभाव पड़ता है। जिसमें मृदा में उपलब्ध सूक्ष्म जीवाणु मृदा से खत्म हो जाते हैं। इससे मृदा उर्वरता कम हो जाती है।
- गोबर की खाद का प्रयोग - लगातार फसल उत्पादन लेने से मृदा की उर्वरता कम होती जाती है। मृदा में आवश्यक जीवाणुओं की संख्या में कमी हो जाती है। साथ ही मृदा में जल धारण क्षमता की कमी हो जाती है। इससे वायुसंचार प्रभावित होता है। ऐसे में किसानों के पास आसान व संसस्ता विकल्प के तौर पर गोबर की खाद का इस्तेमाल करना है। यह खाद सभी किसानों के पास आसानी से उपलब्ध हो जाता है। जो मृदा स्वास्थ्य में लाभदायक सिद्ध होता है।
- जैविक खाद का उपयोग - यह खाद गोबर की खाद से बना होता है। जिसमें नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटास, सल्फर आदि आदि की प्रचुर मात्रा पाई जाती है। जैविक खाद बनाने में 6 महीने तक का समय लग सकता है। इसे केचुए से खास विधि द्वारा बनाया जाता है। इसीलिए इसे केंचुआ खाद भी कहते हैं। केंचुआ खाद दानेदार होता है। जिसे घर पर ही तैयार किया जा सकता है। आप चाहे तो उसे खरीद कर भी ला सकते हैं। यह बाजार में आसानी से उपलब्ध है। यह फसल में बहुत अच्छा काम करता है।
- बारिश का पानी खेत में रुके - मृदा में मौजूद पोषक तत्व पानी के साथ निकल जाते हैं। जो मृदा एवं फसल की पैदावार पर सीधा असर डालते हैं। अगर हम बारिश के पानी को खेत में जमा कर लेते हैं। तो यह मृदा स्वास्थ्य में अहम भूमिका निभा सकता है। बारिश का पानी अत्यंत उपयोगिता है। खेत में पानी भरने से खेत में मौजूद जीवाणु पानी की सहायता से ऊपर आ जाते हैं। इन्हे बाहर निकालने से रोकना चाहिए।
- मृदा परीक्षण कराये - मृदा टेस्टिंग एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसके माध्यम से मृदा में मौजूद पोषक तत्वों का आकलन किया जाता है। जिससे आवश्यकताअनुसार सही मात्रा में पोषक तत्वों का उपयोग करके मिट्टी की गुणवत्ता को बढ़ाया जा सकता है। मृदा परीक्षण जिले के कृषि विज्ञानं केंद्र में योजना के तहत निशुल्क करा सकते हैं। मृदा उर्वरता बढ़ाने के लिए मृदा परीक्षण जरूर कराना चाहिए। यह फसल को सही उर्वरक तथा सही मात्रा की जानकारी दे सकता है। जिससे आपकी लागत एवं समय की बचत संभव है।
भूमि की उम्र बढ़ाने के लिए फसल उगाएं
किसान भूमि की उर्वरता बनाए रखने के लिए रासायनिक खादों का चयन करते हैं। यह एक आसान तरीका है।लेकिन कुछ समय बाद इसके दुष्परिणाम देखने को मिलते हैं। भूमि की उर्वरता बढ़ाने में फसलों का सहारा लिया जा सकता है। फसलों की सहायता से उर्वरता को बनाए रखने में मदद मिलती है। इसका कोई दुष्परिणाम भी नहीं होता। मृदा उर्वरता बढ़ाने के लिए कई ऐसी फसलें हैं। ढैंचा की खेती, सनई की खेती, मूंग की खेती, कपास की खेती, ग्वार की खेती, बाजरा की खेती की हरी खाद आदि इन फसलों की खेती की जा सकती है। यह एक सुरक्षित तरीका माना जाता है।
मृदा उर्वरता की गणना
मृदा का उर्वरक होना महत्वपूर्ण है। इसमें बोई जाने वाली फसल अपना पूरा जीवन व्यतीत करती है। अंत में परिणाम स्वरूप फसल उत्पादन प्राप्त होता है तथा फसल का जीवन समाप्त हो जाता है। इस पूरी प्रक्रिया में फसल को जीवन यापन के लिए खाद्य सामग्री पोषक तत्वों तथा कीटों से लड़ने की शक्ति सभी आवश्यक सामग्री मृदा से प्राप्त होती है। वास्तव में मृदा उर्वरता वहां के स्थान जलवायु परिस्थिति एवं कार्यप्रणाली पर निर्भर करती है। हमारे देश में कई तरह की खेत की मिट्टी पाई जाती है। जैसे दोमट मिट्टी, बलुई मिट्टी, दोमट मिट्टी, काली मिट्टी, लाल मिट्टी, लेटेटाडाइट मिट्टी, पर्वतीय मिट्टी, मरुस्थली मिट्टी, क्षारीय मिट्टी (पीठ मिट्टी) आदि।
इन मिट्टी में अपनी अपनी खासियत है। जिसमें प्राकृतिक खनिज एवं पोषक तत्व विद्यमान रहते हैं। यह फसल उत्पादन में सहायक सिद्ध होते हैं। यह मिट्टियां अपने क्षेत्र जलवायु एवं फसल के अनुसार अपने पोषक तत्वों का उपयोग करती है। यह अच्छी फसल के लिए मिट्टी की उर्वरक क्षमता बढ़ाने के आसान तरीके है। इन तरीकों की सहायता से अच्छी फसल उत्पादन ले सकते है।
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