कृषि के कई लाभ हैं जो समाज, अर्थव्यवस्था और पर्यावरण को लाभ पहुँचाते हैं। किसान खेती करके फसल उत्पादन और पशुपालन का काम भी कर सकते है। यहाँ कुछ प्रमुख लाभों का विवरण दिया गया है। जिनकी मदद से अतिरिक्त आमदनी कर सकते है।
खेती करने के फायदे
कृषि खाद्य उत्पादन की नींव है। यह अनाज, सब्जियाँ, फल की खेती के साथ पशु उत्पाद (मांस, दूध, अंडे) जैसे बुनियादी पोषण युक्त खाद्य पदार्थ का उत्पादन किया जाता है जिससे यह सुनिश्चित होता है कि लोगों को अच्छी तरह से भोजन की पोषण युक्त आपूर्ति मिल सके। लोगों की स्थानीय खपत और उत्पाद निर्यात दोनों के लिए खाद्य की स्थिर आपूर्ति करके देश की खाद्य सुरक्षा को बनाये रखने में खेती(krishi) एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह लोगों को आवश्यक खाद्य पदार्थों को उपलब्ध कराके भूख और कुपोषण को कम करने में मदद करती है।
रोज़गार के अवसर देना
कृषि रोज़गार का एक प्रमुख स्रोत है खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में यह अधिक महत्वपूर्ण है। यह न केवल खेती-किसानी पर बल्कि खाद्य प्रसंस्करण, पैकेजिंग, परिवहन और खुदरा जैसे संबंधित क्षेत्रों में भी रोज़गार के अवसर प्रदान करता है। कृषि(खेती) ग्रामीण क्षेत्रों में लाखों लोगों की आजीविका का प्रमुख साधन है। यह ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी को कम करने और ग्रामीण अर्थव्यवस्थाओं को बढ़ावा देने में मदद करती है। यह कई विकासशील देशों में ग्रामीण अर्थव्यवस्थाओं की रीढ़ है।
आर्थिक विकास
कृषि किसी भी देश की अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण योगदन दे सकती है। खासकर यह विकासशील देशों में अधिक उपयोगी है। जहाँ यह जीडीपी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह कपड़ा, खाद्य उत्पादन और जैव ऊर्जा सहित विभिन्न क्षेत्रों के लिए कच्चे माल की आपूर्ति करके औद्योगिक विकास को बढ़ावा देता है। कृषि कई देशों में कॉफी, चाय, कपास और मसालों जैसे उत्पादों के लिए निर्यात आय का एक प्रमुख स्रोत है। यह आय राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं और व्यापार संबंधों को बढ़ावा देने में मदद करती है।
सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व
कृषि(krishi) अक्सर सांस्कृतिक रीतियों, परंपराओं और स्थानीय त्योहारों के साथ गहराई से जुड़ी होती है। कई समुदाय संस्कृतियों में खेती न केवल एक आर्थिक गतिविधि है बल्कि जीवन का एक तरीका भी है। जो लोगों को खेती और उनकी विरासत से जोड़ती है। कृषि गतिविधियाँ अक्सर घनिष्ठ समुदायों को बढ़ावा देती हैं जहाँ लोग खेती के कार्यों में सहयोग करते हैं, अपना ज्ञान साझा करते हैं और ज़रूरत के समय एक-दूसरे की मदद करते हैं। किसान खेती के कार्यों को सम्मलित होकर भी जल्दी पूरा कर लेते है।
अन्य उद्योगों के लिए कच्चा माल उपलब्ध कराना
खेती(कृषि) से कई उद्योगों के लिए कच्चा माल प्रप्त हो जाता है। जिसमें कपड़ा (कपास, ऊन), फार्मास्यूटिकल्स (हर्बल दवाइयाँ), और निर्माण (लकड़ी, बाँस) तथा अनाज उत्पादन होता हैं। यह जैव ईंधन उद्योग का आधार भी है जो वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों का उत्पादन करता है। कृषि उत्पादों को विभिन्न प्रकार के खाद्य उत्पादों में संसाधित किया जाता है। जिससे आर्थिक गतिविधि की एक और परत बनती है और अर्थव्यवस्था में कृषि क्षेत्र के प्रभाव का विस्तार होता है।
खेती से पर्यावरणीय लाभ
जब स्थायी रूप से खेती प्रबंधित कि जाती है तो कृषि मृदा स्वास्थ्य को बेहतर बनाने, नमी बनाए रखने और मृदा कटाव को कम करने में मदद कर सकती है। कृषि वानिकी (फसलों के साथ पेड़ों को लगाना) और जैविक खेती भी कार्बन पृथक्करण में योगदान दे सकती है जो जलवायु परिवर्तन को कम करने में मदद करती है। संधारणीय खेती के तरीके से फसल प्रणालियों का उपयोग करके प्राकृतिक आवासों को संरक्षित करके और हानिकारक रसायनों के उपयोग को कम करके स्थानीय जैव विविधता को संरक्षित और बढ़ा सकते हैं।
नवीकरणीय संसाधन प्रबंधन
कृषि का फसल चक्रण, जैविक खेती और पुनर्योजी कृषि जैसी संधारणीय कृषि प्रथाएँ मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाती हैं और पारिस्थितिकी तंत्र संतुलन बनाए रखती हैं। ये विधियाँ क्षरित भूमि को बहाल करने, जल संसाधनों के संधारणीय उपयोग को बढ़ावा देने और प्राकृतिक संसाधनों को बचाने में मदद कर सकती हैं।
खेती में तकनीकी और वैज्ञानिक प्रयोग उन्नति
कृषि क्षेत्र में विज्ञान और प्रौद्योगिकी में काफी विकास किया है। आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलें (जीएमओ), सटीक खेती तकनीक (जैसे, जीपीएस और ड्रोन का उपयोग करना), और अधिक आसान सिंचाई प्रणालियों जैसे नवाचारों ने कृषि उत्पादकता में बहुत अनुसंधान करके खेती में उपयोग किया है। ऐसे क्षेत्र जहाँ पर्यावरणीय चुनौतियों का सामना करना पड़ता है जैव प्रौद्योगिकी कीट प्रतिरोधी फसलों, सूखा-सहिष्णु किस्मों और उच्च उपज वाली फसलों की खोज करके खाद्य उत्पादन को बढ़ाने में मदद करता है।
जलवायु विनियमन
कुछ कृषि पद्धतियाँ जैसे कृषि वानिकी और संरक्षण जुताई आदि वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करने में मदद करती हैं। यह जलवायु विनियमन में भूमिका निभाती हैं और ग्लोबल वार्मिंग के प्रभावों को कम करने में मदद करती हैं। भूमि विशेष रूप से आर्द्रभूमि और घास के मैदान प्राकृतिक जल चक्र को बनाए रखने, भूजल स्तर को विनियमित करने और बाढ़ से बचाने में मदद कर सकते हैं।
बेहतर बुनियादी ढांचा
जैसे-जैसे कृषि अधिक उन्नत व बढ़ती है इससे अक्सर स्थानीय बुनियादी ढांचे में सुधार होता है। जैसे सड़कें, सिंचाई प्रणाली, बाजार, स्कूल और स्वास्थ्य सेवा का विकास होना। इससे न केवल किसानों को लाभ होता है बल्कि ग्रामीण क्षेत्रो में जीवन की सुविधाओं का विकास भी होता है।
टिकाऊ ग्रामीण आजीविका
छोटे किसानों के लिए कृषि आत्मनिर्भरता का आधार प्रदान करती है। यह ग्रामीण किसानों को आत्मनिर्भर बनाने में मदद कर सकती है। ग्रामीण समुदायों को अपनी फसल खुद उगाने के लिए प्रोत्साहित करना जिससे बाहरी खाद्य स्रोतों पर निर्भरता कम करने में मदद मिल सकती है। कुछ क्षेत्रों में किसान कई तरह की फसलें उगाकर या पशुधन पालकर अपनी कृषि गतिविधियों में विविधता लाते हैं जिससे फसल खराब होने का खतरा कम होता है और अधिक टिकाऊ आय मिलती है।
ऊर्जा और ईंधन उत्पादन
मक्का, सोयाबीन, गन्ना और शैवाल जैसी फसलों का उपयोग जैव ईंधन के उत्पादन के लिए किया जाता है, जो जीवाश्म ईंधन के विकल्प के रूप में काम करते हैं। यह गैर-नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों पर निर्भरता को कम करने में मदद करता है और स्वच्छ ऊर्जा में संक्रमण के प्रयासों को बढ़ावा देता है।
खेती करने की विधि
किसान अपने खेतों में फसल उगाने के लिए जो रणनीति और तरकीब अपनाते हैं उन्हें खेती के तरीके कहा जाता है। फसल के प्रकार, मिट्टी के प्रकार, जलवायु और तकनीक के आधार पर विभिन्न तकनीकों का इस्तेमाल किया जाता है। यहाँ कुछ विशिष्ट खेती तकनीकें दी गई हैं।
पारंपरिक कृषि
किसानों द्वारा पुरानी खेती की तकनीकें जो पीढ़ियों से चली आ रही हैं पारंपरिक खेती के तरीकों की मत्वपूर्ण नींव रखती हैं। मिट्टी की उर्वरता को बनाए रखने के लिए अक्सर फसल चक्र, प्राकृतिक खाद और हाथ के औजारों का इस्तेमाल किया जाता है।
महत्वपूर्ण विशेषताएँ
खेती में पशु शक्ति और शारीरिक श्रम का उपयोग किया जाता है। वर्तमान में किसान श्रम का काम आधुनिक मशीनों से कर रहे है। पारम्परिक खेती में फसल में किसी सिंथेटिक कीटनाशक या उर्वरक का उपयोग सबसे कम या बिलकुल नहीं किया जाता है। फसलों में अंतर-फसल करना और फसल चक्रण अपनाने से मिट्टी के स्वास्थ्य को बनाए रखने के दो तरीके हैं।इसका उपयोग अक्सर छोटे पैमाने की निर्वाह खेती में किया जाता है। यदि इसे सही तरीके से किया जाए तो यह पर्यावरण के अनुकूल और टिकाऊ दोनों हो सकता है। खेती में प्राकृतिक तरीकों का उपयोग करके मिट्टी के स्वास्थ्य को बेहतर बनाया जा सकता है।
आधुनिक/औद्योगिक खेती
खेती में हार्वेस्टर और ट्रैक्टर जैसी मशीनरी का उपयोग करके जुताई, खेत में पाटा लगाना, पोषक तत्वों को मिलाना के साथ ही खेत की गहराई तक मिट्टी को भुरभुरा बना दिया जाता है। फसल में कीटों को नियंत्रित करने और फसल की वृद्धि को बढ़ावा देने के लिए रासायनिक कीटनाशक और उर्वरक का प्रयोग किया जाता है। मोनोक्रॉपिंग का मतलब अत्यधिक भूमि और पानी का उपयोग करके एक ही फसल का बड़े पैमाने पर उत्पादन करना है।
जैविक खेती करने से लाभ
जैविक रसायन मुक्त खेती मृदा स्वास्थ्य, कीट नियंत्रण और उर्वरक की जरुरत होने पर जैविक खेती कृत्रिम रसायनों और उर्वरकों के बजाय प्राकृतिक आधारित विकल्पों से उपलब्ध पोषक तत्व का उपयोग करती है। यह पर्यावरण संरक्षण और स्थिरता पर जोर देता है।
महत्वपूर्ण विशेषताएँ
खेत में बीज की बुबाई करने से पहले मिटटी की अच्छी तैयारी करने के लिए हरी खाद, गोबर की खाद जैसे जैविक उर्वरकों का उपयोग करना चाहिए। फसल चक्र, जैविक कीटनाशक और प्राकृतिक शिकारी कीटों को नियंत्रित करने के तरीके हैं। जिसमें कोई कृत्रिम रसायन या आनुवंशिक रूप से कोई संशोधित जीव (जीएमओ) का उपयोग नहीं किया जाता। यह जैव विविधता और मृदा संरक्षण पर ध्यान केंद्रित करता है। जैविक पर्यावरण के अनुकूल और पर्यावरण को कम प्रदूषित करने वाला पोषक तत्व है। इससे उपलब्ध उत्पाद ऐसी खाद्य सामिग्री है जो स्वस्थ है क्योंकि यह रासायनिक अवशेषों से मुक्त है। प्रकृतिक खेती करने से समय के साथ खेत की मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार होता है।
हाइड्रोपोनिक्स
हाइड्रोपोनिक्स खेती विधि से पौधों को मिट्टी के ऊपर खास तकनीक से उगाने की एक विधि है। इसमें पौधों को मिट्टी के बजाय पानी के जरिये पोषक तत्वों को पौधों तक पहुँचाया जाता है। यह एक अत्यधिक कुशल तकनीक है जिसका उपयोग अक्सर ग्रीनहाउस जैसे नियंत्रित वातावरण में सब्जियाँ उगाने के लिए किया जाता है।
मुख्य विशेषताएँ
हाइड्रोपोनिक तकनीक में पौधे अतिरिक्त खनिजों और पोषक तत्वों के साथ पानी में उगते हैं। यह मिट्टी को परलाइट या नारियल की भूसी जैसे निष्क्रिय माध्यम से बदल दिया जाता है। इसके अंतर्गत अक्सर सब्जी वर्गीय छोटी जड़ों वाली कम गहराई की फसलों की खेती की जाती है। इन पौधों को घर के अंदर या खराब मिट्टी की गुणवत्ता वाले क्षेत्रों में उगाया जा सकता है। ग्रीन हाउस में वातावरण को नियंत्रित करके पौधों का तेज़ विकास और अधिक उपज ली जा सकती है। हाइड्रोपोनिक्स खेती में पारंपरिक खेती की तुलना में कम पानी का उपयोग किया जाता है।
एक्वापोनिक्स खेती
एक्वापोनिक्स खेती को जलीय कृषि (मछली पालन) कहते है और हाइड्रोपोनिक्स खेती पानी में पौधे उगाने की विधि है। यह आपस में एक दूसरे दूसरे के काम आते है। पानी में मछली का अपशिष्ट पौधों के लिए पोषक तत्व का काम करता है और पौधे मछली के लिए पानी को छानने और साफ करने में मदद करते हैं।
मुख्य विशेषताएँ
जलीय खेती में मछली और पौधों को एक बंद लूप प्रणाली में एक साथ उगाया जाता है। पौधे पानी में उगाए जाते हैं जबकि मछली अपशिष्ट प्रदान करती है जो पौधों को निषेचित करती है। दोनों को प्रभावी ढंग से काम करने के लिए एक संतुलित पारिस्थितिकी तंत्र की आवश्यकता होती है। यह टिकाऊ और कुशल संसाधन प्रकिया है। जिसमें दोहरे उत्पाद की खेती की जाती है जो मछली और फसल उगाना है। इसमें पारंपरिक खेती की तुलना में कम पानी की आवश्यकता होती है।
टेरेस फार्मिंग
टेरेस फार्मिंग पहाड़ी या पर्वतीय इलाकों में की जाती है। यह मिट्टी के कटाव को कम करने, पानी के प्रवाह को प्रबंधित करने और खेती के लिए समतल सतह बनाने के लिए खेत को सीढ़ियों या सीढ़ीनुमा बनाया जाता है।
मुख्य विशेषताएँ
यह मिट्टी के कटाव को रोकने के लिए ढलान वाली भूमि पर सपाट सीढ़ियाँ बनाता है। सीढ़ीनुमा खेतों में पानी को बनाए रखता है। जिससे सूखे इलाकों में पौधों को बढ़ने में मदद मिलती है। यह खेती अक्सर हिमालय या एंडीज जैसे कठिन इलाकों में इसका इस्तेमाल किया जाता है। यह मिट्टी के क्षरण को कम करता है।
कृषि वानिकी
कृषि वानिकी एक ऐसी तकनीक है। जिसमें एक ही भूमि पर पेड़ों और झाड़ियों को फसलों या पशुओं के साथ एकीकृत किया जाता है। इसका उद्देश्य प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र की नकल करना और जैव विविधता को बढ़ावा देना है।
मुख्य विशेषताएँ
इस तकनीक में पेड़ या झाड़ियाँ फसलों या पशुओं को एकसाथ सम्मलित किया जा सकता हैं। यह फसलों के अलावा सब्जियाँ, पेड़, फल जैसे कई उत्पाद की खेती की जा सकती है। यह मिट्टी के संरक्षण को बढ़ावा देता है और हवा और पानी से कटाव को कम करता है। कृषि वानिकी जैव विविधता को बढ़ाता है। मिट्टी की उर्वरता और नमी बनाए रखने में सुधार करता है। किसानों के लिए आय के स्रोतों में विविधता लाता है।कृषि संरक्षण
संरक्षण के लिए कृषि पर्यावरणीय प्रभाव को कम करना और मृदा स्वास्थ्य को संरक्षित और बेहतर बनाना संरक्षण कृषि के मुख्य लक्ष्य हैं। यह फसल चक्रण, मृदा आवरण को संरक्षित करना और मृदा में थोड़ी गड़बड़ी पैदा करना ये सभी इसके अंग हैं।
महत्वपूर्ण विशेषताएँ
संरक्षण खेती को न्यूनतम जुताई या कम या बिना जुताई के रूप में भी जाना जाता है। इसमें आवरण फसलों का उपयोग मृदा को संरक्षित करने के लिए किया जाता है। खेत में कीटों और पतंगों को नियंत्रित करने के लिए फसलों को घुमाना मृदा के स्वास्थ्य को संरक्षित करता है। यह जल प्रतिधारण और मृदा संरचना को बढ़ाता है। इससे मृदा क्षरण और कटाव कम होता है। खेत की दीर्घकालिक स्थिरता को प्रोत्साहित करता है।
शून्य जुताई: बिना जुताई वाली कृषि
जीरो टिलेज (नो-टिल फार्मिंग) खेत की मिट्टी की जुताई किए बिना फसल बोना शून्य जुताई कहलाता है। यह तकनीक मिट्टी की नमी और संरचना को बनाए रखते हुए श्रम और ईंधन लागत को कम करती है।
महत्वपूर्ण विशेषताएँ
इसमें मिट्टी को नुकसान पहुँचाए बिना सीधे उसमें फसल बोई जाती है। पिछली फसल से बनी गीली घास अभी भी खेत में मौजूद है। विशेष उपकरण जैसे कि बिना जुताई वाली सीडर की आवश्यकता होती है। मिट्टी के क्षरण को कम करता है। यह मिट्टी में पानी की मात्रा को बढ़ाता है और श्रम और ईंधन के खर्च को कम करता है। जीरो-टिलेज जलवायु, मिट्टी के प्रकार और संसाधनों की उपलब्धता जैसे चरों के आधार पर इनमें से प्रत्येक दृष्टिकोण के अपने फायदे और नुकसान हैं। आपका पसंदीदा तरीका कौन सा है? या आप किसी विशेष फसल या खेती के स्थान पर विचार कर रहे हैं?
निष्कर्ष
कृषि(खेती) न केवल अन्न के उत्पादन के लिए बल्कि आर्थिक विकास करने, संस्कृतियों को बनाए रखने, रोजगार पैदा करने और पर्यावरणीय स्थिरता में योगदान देने के लिए भी आवश्यक है। जब स्थायी रूप से खेती की जाती है तो कृषि समाज को कई लाभ पहुंचा सकती है। जिससे दीर्घकालिक खाद्य सुरक्षा और समृद्धि सुनिश्चित होती है।
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