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भारत में कृषि: किसानों की मेहनत का खजाना

किसान मित्रों आप सभी कई सालों से खेती कर रहे हैं। लेकिन खेती से जुड़ी सही जानकारी होने से आप कम लागत में अधिक उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं। आज हम कृषि के बारे में बात करने जा रहे हैं। इसके साथ ही हम खेती की आवश्यकता और मिट्टी की उपयोगिता के बारे में भी बात करेंगे। फसल उत्पादन में विभिन्न प्रकार के अनाज, सब्जियां और फलों की रोपाई और कटाई शामिल है

जबकि पशुपालन में मवेशी, मुर्गी और भेड़ जैसे पशुधन के प्रजनन और पालन पर ध्यान केंद्रित किया जाता है। मिट्टी के स्वास्थ्य को बनाए रखने और पानी के कुशल उपयोग को सुनिश्चित करने के लिए प्रभावी मिट्टी और जल प्रबंधन अभ्यास महत्वपूर्ण हैं। जो टिकाऊ फसल और पशुधन उत्पादन के लिए महत्वपूर्ण है। यह मानव सभ्यता की रीढ़ है, जो जीविका और विकास के लिए आवश्यक संसाधन प्रदान करके अर्थव्यवस्थाओं और समाजों का समर्थन करती है।

कृषि क्या है।

इस लेख में हम कृषि के बारे में बात करेंगे और कृषि की बढ़ती उपयोगिता को देखते हुए इसका महत्व बढ़ता जा रहा है। यह एक ऐसा कार्य है जिसमें मनुष्य भूमि को जोतता है और उसकी मिट्टी में फसल के बीज बोता है। और निरंतर निगरानी में वे बीज फसलों का रूप लेते हैं। और अपनी क्षमता के अनुसार उत्पादन देते हैं। इस प्रक्रिया को कृषि कहा जाता है और इस कार्य को करने वाले व्यक्ति को किसान कहा जाता है।

कृषि का अर्थ क्या है?

बीज से फसल उगाने, उत्पादन, पशुपालन, फसल सुरक्षा और मशीनरी की नई तकनीक विकसित करने की प्रक्रिया को कृषि कहा जाता है। भारत में कृषि की जरूरतों को पूरा करने के लिए हाईटेक मशीनों की मदद से कृषि कार्य तेजी से किया जाता है। कृषि में भूमि में उगाए जाने वाले अनाज, फल, फूल, सब्जियां, पशुपालन और खाद उर्वरक आदि भी शामिल हैं। इन सभी का उपयोग करके प्राप्त फसल को कृषि कहा जाता है। भारत में कृषि की जरूरतों को पूरा करने के लिए हाईटेक मशीनों की मदद से कृषि कार्य तेजी से किया जाता है।

कृषि का इतिहास

कृषि के इतिहास के बारे में कई मत हैं। सभी शोधकर्ता अपने-अपने अनुभव और प्रमाण के अनुसार अलग-अलग विचार व्यक्त करते हैं। कुछ शोधकर्ताओं का मानना ​​है कि ईसा के जन्म से पहले ही कृषि शुरू हो गई थी। कुछ शोधकर्ता कृषि की शुरुआत को सिंधु घाटी सभ्यता से जोड़ते हैं। इस पर कोई सटीक प्रमाण नहीं है।

जिससे कृषि के इतिहास को पूरी तरह से साबित किया जा सके। अगर भारत में कृषि की उत्पत्ति की बात करें तो ऐसा कहा जाता है कि इसकी शुरुआत 9000 साल पहले हुई थी। तब तक मनुष्य ने पेड़-पौधे लगाना, उगाना और मानसून में बदलाव के हिसाब से एक से ज़्यादा फ़सल उगाना सीख लिया था।

भारत में पाषाण युग में कृषि का विकास कैसे और कितना हुआ, इस बारे में कोई ठोस प्रमाणित जानकारी नहीं है। लेकिन सिंधु सभ्यता से कृषि के अवशेष मिले हैं। कहा जाता है कि शोधकर्ताओं को मोहनजोदड़ो में गेहूँ और जौ बोए जाने के पहले प्रमाण मिले थे।

कृषि की आवश्यकता

कृषि किसी भी देश की नींव होती है। भारत एक कृषि प्रधान देश है। भारत की कुल आबादी का लगभग 70% हिस्सा कृषि पर निर्भर है। देश में कृषि की अहम भूमिका है। कृषि से उत्पादित खाद्य उत्पादों को विदेशों में भेजकर अधिक आय अर्जित की जा सकती है। जिससे देश की जीडीपी में सुधार होगा। कृषि की आवश्यकता जीव के जन्म से ही शुरू हो जाती है। किसी भी जीव को भोजन की आवश्यकता होती है। कृषि एक ऐसा माध्यम है जिसके माध्यम से खाद्य समस्या का समाधान किया जा सकता है।

कृषि से हम खाने योग्य अनाज, फल, फूल, सब्जियां आदि प्राप्त कर सकते हैं। पशुपालन में कृषि की अहम भूमिका होती है। कृषि के माध्यम से पशुपालन आसान हो जाता है। कृषि के माध्यम से पशुओं के लिए हरे चारे की आवश्यकता को पूरा किया जा सकता है। जिससे हमें शुद्ध और ताजा दूध मिलता है। जो मानव शरीर के लिए बहुत फायदेमंद होता है। साथ ही पशुओं का मलमूत्र खेत की मिट्टी और फसलों के लिए अमृत से कम नहीं होता है। पशुओं के गोबर से हमें जैविक खाद मिलती है। इससे फसल उत्पादन बढ़ता है और खेत की मिट्टी स्वस्थ और उपजाऊ रहती है। और हमें पर्यावरण प्रदूषण से मुक्ति मिलती है।

भारत में कृषि के प्रकार

  1. स्थानांतरित कृषि
  2. निर्वाह कृषि
  3. गहन कृषि
  4. व्यापक कृषि
  5. वाणिज्यिक कृषि
  6. वागवानी कृषि
  7. रोपड़ कृषि
  8. मिश्रित कृषि

  • निर्वाह कृषि - इस प्रकार की खेती किसान अपने परिवार के पालन पोषण हेतु एवमं अपने निजी जीवन की आवश्यकताओ की पूर्ति हेतु करता है। इसमें किसान अपने परिवार के सदस्यों के साथ खेत में काम करके निर्वहन के लिए फसल उत्पादन करता है। इस खेती में 1 -5 श्रमिक कार्य करते है। यहाँ मजदूर की जगह परिवार के सदस्य स्वम कार्य करते है। इसमें खेत का क्षेत्रफल कम होता है।यहाँ उत्पादन कम मिलता है।

यह खेती दो प्रकार की होती है

गहन कृषि ऐसी खेती जो किसान की समतल जमीन न होकर ऊँची - नीची दालान वाली  होती है। जिसमे से जमीन का कुछ हिस्से पर श्रमिक एवं ओजारो की मदद से खेती की जाती है। इस तरह खेत के छोटे छोटे हिस्सों पर खेती की जाती है।

इसमें घर सदस्य भी काम कर सकते है तथा पूरी साल काम मिलता रहता है। इसमें एक से अधिक फसल पैदा की जा सकती है।जिन क्षेत्रो में पानी की पूर्ण सुविधा होती है वहां पर धन की खेती की जा सकती है। तथा पानी के आभाव में अन्य फसलों की बुबाई कर सकते है। किसान की जमीन अपने बढ़ते परिवार सदस्यों में विभाजित होती जाती है।

  1. प्राचीन निर्वाह कृषि - प्राचीन समय में खेती करने के दो तरीके होते थे।

  • स्थानांतरण खेतीइस प्रकार की खेती करने के लिए जंगलो को खेतो में परिवर्तित करते थे और जांगले की जमीन पर खेती की जाती थी इस प्रक्रिया में ऐसे क्षेत्र जहां जांगले एवं उबड़ खाबड़ क्षेत्र होते थे वहां पर जंगलो को काटकर उन्हें जलाया जाता था।

  • उससे प्राप्त होने बली राख को उस  मिलाकर खेती की जाती थी। जिससे वहां की मिटटी अधिक उपजाऊ एवं  भुरभुरी बनी रहती है । इस  तरह की खेती में कंद एवं सब्जी बाली फसल अधिक उत्पादन देती है।

  • खानाबदोश पशुपालन - ऐसे पशुपालक जो ऐसे स्थानों  पर रहते है जहाँ पर उन्हें अपने पालतू पशुओ के लिए निरंतर चारे की खोज में एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाना पड़ता है। ऐसे पशुपालक सालभर अपने पशुओ के साथ कई राज्यों में भ्रमड़ करते है और निश्चित समय पर वः अपने स्थान पर आ जाते है। तथा उनसे प्राप्त होने वाले पदार्थ दूध ,ऊन , मास ,खाल आदि को बेचकर अपने परिवार का जीवन यापन करते है।

व्यावसायिक खेती

इस तरह की खेती में फसल उत्पादन अधिक लिया जाता है। उसे बाजार में बेचकर धन अर्जित किया जाता है।व्यावसायिक खेती अधिक क्षेत्रफल पर की जाती है। तथा अधिक प्रमादित बीजो की आवश्यकता होती है।

इसे व्यावसायिक उद्देश्य की पूर्ति के लिए खेत में गेहूँ ,तथा धान की खेती अधिक मात्रा में की जाती है। यह खेती व्यावसायिक उद्देश्यों की पूर्ति हेतु अधिक उत्पादन लेने के लिए किसान एक फसल के साथ अन्य दुसरी फसल भी बोते है।

  • मिश्रित खेतीइसके अन्तर्गत किसान अपने खेत में एक से अलग अलग तरहग की फसल को उगते है।  जिससे अधिक उत्पादन लिया जा सके। जिसे बेचने पर अधिक आय हो।  तरह की खेती को मिश्रित खेती कहते है।

  • बागवानीबागवानी समतल क्षेत्र वाले इलाके में की जाती है। इसके अन्तर्गत किसान किसी एक या अलग अलग तरह के पेड़ो की बागवानी लगा सकते है। जिन्हे एक बार लगाकर उनसे लगातार उत्पादन लिया जा सकता है। जैसे की - केला,चाय, कॉफी रबर आदि।

  • पशुपालनपशुपालन भी कृषि का मह्त्वपूर्ण भाग है। इसके बिना कृषि को अधूरा माना जाता है। क्योकि यह दोनों एक दूसरे के बिना संभव नहीं है। सभी किसान पशु पालन करते है किसानो की आय का एक अन्य स्त्रोत पशुपालन है।

किसान पशुओ को पालकर दूध एवं अन्य दूध से बनी सामान को बेचकर परिवार के लिए एक अन्य आय अरिजीत करते है। किसान मुख्यतः गाय ,भैंस ,भेड़ ,बकरी, ऊँट, घोड़ा , आदि पशुओ को पालते है। जिनसे उन्हें आय होती है।

  • कृषि उपकरणकृषि में अधिक मेहनत एवं उपकरण की आवश्यकता होती है।जिसे किसान लम्बे समय से करते आ रहे है। समय समय पर कृषि में विकास एवं बदलाब होता रहा है। हरित क्रांति के बाद तो मनो कृषि में क्रांति ही आ गयी। किसानो ने अपने खेतो में लगन और मेहनत से पुरे देश का पेट भरा है।

  • इसी के साथ सरकार ने किसानो का पूरा साथ दिया। सारकर ने समय समय पर पैसा और मशीन की आवश्यकता को पूरा किया साथ ही खेती के लिए ऋण योजनाए लाकर खेती के खर्चे में योगदान दिया है। साथ ही साथ उन्नत एवं सफल खेती के लिए मकिसनो को खेती उपकरण भी मुहैया कराती है।

  • जिससे किसान कम मेहनत में अच्छी तैयारी कर सके। उपकरण पर किसानो को छूट भी दी जाती है। जिससे किसानो को कृषि उपकरण खरीदने में परेशानी न हो।

कृषि में उपयोग होने बाले प्रमुख उपकरण

किसान कृषि में फसल की तैयारी से फसल की कटाई तक आवश्यकतानुसार बहुत से कृषि उपकरण से कार्य करता है जैसे फावड़ा, ट्रैक्टर, कल्टीवेटर, मिटटी पलट हल, हैरो, रोटावेटर, बीज बुबाई तथा बिजाई की मशीन आदि। किसान खेती में ड्रोन का उपयोग भी कर रहे है। खेती में ड्रोन की तकनीक किसानों को लाभ दे रही है। अपनी अद्भुद क्षमता के कारण ड्रोन का उपयोग निगरानी, द्रव्य छिड़काव आदि कार्य सुलभ हो गए है। अपनी आवश्यकतानुसार किसान बाजार से ड्रोन खरीद सकते है। यह उपकरण लगभग सभी तरह की खेती में उपयोग किये जाते है।

कृषि में बोने वाली फसल - कृषि में फसल बोई जाती है। किसान उस फसल को बोने के बाद निरंतर उसकी देखरेख करता है। तथा उसी फसल से वहअपने परिवार की सभी आवश्यकताओ की पूर्ति है। किसान के परिवार की सभी जरूरते इसी फसल पर निर्भर करती है। इसलिए किसान हमेशा अपने क्षेत्र में अच्छी उपज देने बाले बीजों का चयन करता है। गेहूँ, धान, मक्का, आलू, बाजरा,सरसों, तिलहनी एवं दलहनी फसल,कपास,बागवानी,सब्जियाँ आदि फसल किसान अपने खेत में बुबाई करता है।

कृषि से आमदनी - किसानो का सबसे प्रमुख एवं पसंदीदा काम है कृषि। खेती करने वाला व्यक्ति किसान कहलाता है। कृषि से सभी व्यक्ति किसी न किसी तरह जुड़े हुए है। आज के समय में कृषि एक व्यवसाय बनकर उभर रहा है। जिससे गाँव व शहर में व्यावसायिक गतिविधियाँ की रही है।

कृषि को हम वंशवाद प्रक्रिया कह सकते है जो पीढ़ी दर पीढ़ी चलती रहती है। वंशवाद व्यापारिक काम है। व्यवसाय से निश्चित आमदनी में उतार चढ़ाव देखने को मिलते है। एव समय उत्पादन माँग के अनुसार भाव में तेजी या मंडी देखने को मिलती है।

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